आगरा। जुकाम-खांसी या हल्की गले की खराश में तुरंत एंटीबायोटिक का सेवन करना और चिकित्सकों द्वारा जरूरत से अधिक दवाएं लिख देना अब गंभीर परिणाम दे रहा है। एसएन मेडिकल कॉलेज में एंटीबायोटिक सप्ताह के समापन पर आयोजित सेमिनार में विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस तेजी से बढ़ रहा है, जिससे दवाएं अपना असर खो रही हैं। डॉक्टरों के अनुसार करीब 25 एंटीबायोटिक गंभीर बीमारियों में असरहीन पाई गई हैं, जिससे संक्रमणों का उपचार कठिन होता जा रहा है।
माइक्रोबायोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. अंकुर गोयल ने बताया कि जिले के चिकित्सक लगभग 35 प्रकार की एंटीबायोटिक का उपयोग कर रहे हैं। कई मामलों में रोग ठीक न होने या देर से असर दिखने पर जब कल्चर जांच की गई, तो करीब 25 दवाएं पूरी तरह बेअसर या मात्र 10–20% प्रभावी पाई गईं। प्रभावित बीमारियों में टायफाइड, निमोनिया और यूरिन इंफेक्शन प्रमुख हैं।
डॉ. विकास गुप्ता ने कहा कि बिना कल्चर रिपोर्ट के एंटीबायोटिक देना स्थिति को और बिगाड़ रहा है। नई दवाओं पर शोध कम हो रहा है, जबकि प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने से उपलब्ध एंटीबायोटिक सीमित होती जा रही हैं। इससे आईसीयू मरीजों का उपचार भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सेमिनार का उद्घाटन प्राचार्य डॉ. प्रशांत गुप्ता ने किया। कार्यक्रम में डॉ. अल्का यादव, डॉ. कामना सिंह, डॉ. अखिल प्रताप सिंह, डॉ. दिव्या श्रीवास्तव, डॉ. गीतू सिंह, डॉ. सपना गोयल, डॉ. प्रज्ञा शाक्य, डॉ. गौरव व डॉ. पारुल गर्ग ने भी अपने विचार रखे।
अस्पतालों में बढ़ते संक्रमण से एंटीबायोटिक का उपयोग बढ़ा
माइक्रोबायोलॉजी विभाग की डॉ. आरती अग्रवाल ने कहा कि अस्पतालों में संक्रमण फैलने से भी एंटीबायोटिक उपयोग बढ़ रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि ओटी, आईसीयू और वार्ड में बेड की उचित दूरी, मास्क-ग्लव्स का इस्तेमाल, हाथों की स्वच्छता और नियमित सावधानियों को अनिवार्य किया जाए।
ओवरडोज बढ़ा रही पेट व फंगल समस्याएं
विशेषज्ञों ने बताया कि एंटीबायोटिक की ओवरडोज से अच्छे बैक्टीरिया नष्ट होते हैं, जिससे दस्त, पेट दर्द और एलर्जी बढ़ती है। लंबे समय तक दवा लेने से रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती है और मुंह व गुप्तांगों में फंगल संक्रमण का खतरा भी रहता है।
सावधानियां
जुकाम-खांसी में स्वयं एंटीबायोटिक न लें।
गंभीर मरीज को दवा देने से पहले कल्चर टेस्ट कराएं।
बैक्टीरियल संक्रमण में पहले फर्स्ट लाइन एंटीबायोटिक का उपयोग करें।
मरीजों को लंबे समय तक एंटीबायोटिक न दें, सिर्फ तय कोर्स पूरा कराएं।
त्वरित फायदा चाहकर झोलाछाप डॉक्टरों पर निर्भर न हों।
अस्पतालों में एंटी-बैक्टीरियल सिस्टम विकसित कर संक्रमण नियंत्रण बढ़ाएं।

