पिछ्ले कुछ सालो से अचानक बीजेपी-आरएसएस कार्यकर्ताओ को तिरंगे से भारी प्रेम उमड़ रहा है इस साल मोदी जी ने अपने करोड़ों बीजेपी कार्यकर्ताओ को 13 से 15 अगस्त के बीच अपने घरों पर तिरंगा फहराने का टारगेट दिया गया है मोदी भी अपनी डीपी में तिरंगा लगा रहे हैं
आरएसएस बीजेपी को यदि इतना ही प्रेम तिरंगे से है तो पहले एक काम करे !….आरएसएस मुख्यालय और उनकी वेबसाइट पर बनी भारत माता की तस्वीर में भारत माता के हाथ में भगवा झंडे की जगह तिरंगा झंडा थमा दे !…..
बोलिए, है हिम्मत ?
दरअसल आरएसएस और तिरंगा दोनो विपरीत ध्रुव पर खड़े हुए हैं और ये हम नहीं कह रहे बल्कि इतिहास ही हमे यह बताता है
1930 से ही आरएसएस को तिरंगा सख्त नापसंद था, तिरंगे ध्वज तले चले 1930 से 1945 तक के आंदोलनों में आरएसएस ने कभी भी भाग नही लिया, जब आजादी मिलना तय हो गई थी तब उसने संविधान सभा का भी कड़ा विरोध किया था
भारत की आजादी की पूर्वसंध्या पर 14 अगस्त 1947 को आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर में एक लेख छपा जिसका शीर्षक था ‘भगवा ध्वज के पीछे रहस्य’, इस लेख में दिल्ली के लाल किले के प्राचीर पर एक तिरंगे के बजाए भगवा ध्वज के लहराने की मांग करते हुए राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगे के चुनाव की निम्न शब्दों में अपमान किया गया …..“जो लोग किस्मत के दांव से सत्ता में आ गए हैं हमारे हाथ में तिरंगा दे सकते हैं, लेकिन इसको हिंदुओं द्वारा कभी अपनाया नहीं जाएगा और न ही इसका कभी हिंदुओं द्वारा सम्मान होगा । शब्द तीन अपने आप में एक बुराई है, और तीन रंगों वाले एक झंडे का निश्चित रूप से एक बहुत बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव होगा और यह देश के लिए हानिकारक है। “
आरएसएस ने सरसंघसंचालक गोलवलकर ने अपनी किताब ‘विचार नवनीत’ जिसे अंग्रेजी में ‘बंच ऑफ थाट्स’ के नाम से अनुवादित किया गया उसमे साफ़ साफ़ लिखा…… ‘हमारे नेताओं ने हमारे लिये एक नया ध्वज चुनने का फैसला किया है। उन्होंने ऐसा क्यों किया? यह हमारी समृद्ध विरासत को अस्वीकृत करने और बिना सोचे-समझे दूसरों की नकल करने का एक स्पष्ट उदाहरण है।’ …….वो आगे लिखते हैं, ‘कौन इसे सही और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण मानेगा? यह सिर्फ एक जल्दबाजी में लिया गया राजनीतिक समाधान है। हमारा देश समृद्ध विरासत से भरपूर प्राचीन और महान देश है। क्या तब भी हमारे पास अपना एक झंडा तक नहीं है? बेशक हमारे पास है। तो फिर यह दिवालियापन क्यों?’
आरएसएस के परम पूज्य नेता सावरकर के हिसाब से भी ‘हिंदू किसी भी कीमत पर वफादारी के साथ अखिल हिंदू ध्वज यानी भगवा ध्वज के सिवा किसी और ध्वज को सलाम नहीं कर सकते……वे कहते है ‘भारतीय संघ द्वारा अपनाये गए नए ध्वज में मौजूद अच्छाईयों, जो कम आपत्तिजनक हैं, का उल्लेख करते हुए मैं जोरदार ढंग से यह बात कहना चाहता हूं कि इसे कभी भी हिंदुस्तान के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता नहीं मिलेगी।’
30 जनवरी 1948 को जब नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गाँधी की ह्त्या कर दी गयी तो इस तरह की खबरें आई कि आरएसएस समर्थक मिठाई बांट रहे हैं और तिरंगे झंडे को पैरों से रौंद रहे है यह खबर उन दिनों के अखबारों में खूब छपी थीं।
24 फ़रवरी 1948 को एक भाषण में, पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि ‘कुछ स्थानों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया गया । वे अच्छी तरह से जानते हैं कि झंडा नीचा दिखाकर वे खुद को गद्दार साबित कर रहे हैं।
सरदार पटेल ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर 1948-49 के दौरान लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए रखी शर्तों के बीच “राष्ट्रीय ध्वज की स्पष्ट स्वीकृति” को भी जगह दी……. उस वक्त के गृह सचिव H.V.R. आयंगर ने गोळवलकर को मई 1949 में, लिखा था “संघ का राष्ट्रीय ध्वज की स्पष्ट स्वीकृति देश को संघ की राज्य के लिए निष्ठा के बारे में संतुष्ट करने के लिए आवश्यक होगा”।
प्रतिबंधों से घबरा कर गोलवलकर जी को तिरंगे को राष्ट्रध्वज मानना पड़ा और उन्होंने बाकी शर्ते भी मान ली
11 जुलाई 1949 को आरएसएस पर प्रतिबंध हटा दिया गया था आरएसएस अपने मुख्यालय में पहली बार 26 जनवरी 1950 पर तिरंगा फहराया। उस वर्ष 15 दिसंबर को सरदार पटेल का निधन हुआ, और फिर आरएसएस ने 2002 तक कभी अपने मुख्यालय में तिरंगा झंडा नहीं फहराया
2002 के बाद आरएसएस को अपने मुख्यालय पर तिरंगा क्यो फहराना पड़ा उसका भी एक कारण है
26 जनवरी 2001 को आरएसएस मुख्यालय नागपुर में तीन युवक बाबा मेंढे, रमेश कलम्बे और दिलीप चटवानी घुस गए और उन्होंने वहा तिरंगा फहराने की कोशिश की
राष्ट्रप्रेमी युवा दल के यह तीनों सदस्य दरअसल इस बात से क्षुब्ध थे कि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे अवसरों पर भी आरएसएस के दफ्तरों में कभी तिरंगा नहीं फहराया जाता. जबकि फ्लैग कोड के अनुसार भी इन विशिष्ट दिनो पर सभी संस्थाओं को तिरंगा फहराने की छूट मिली होती हैं
इस जुर्म के लिए आरएसएस ने उन्हे गिरफ्तार करवाया और उस पर मुकदमा चलाया गया जिसे केस नंबर 176, नागपुर, 2001 के नाम से जाना जाता है…….अगस्त 2013 को नागपुर की एक निचली अदालत ने तीनो आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया
यह है इतिहास आरएसएस और उनकी राजनितिक इकाई बीजेपी का…….इसलिए बीजेपी और आरएसएस जो अभी जुम्मा-जुम्मा 20 साल पहले ही देशभक्त हुए है वे पहले अपने गिरेबान में झांक ले !…….और हमे तिरंगे फहराने या देश भक्ति के पाठ न पढ़ाए !
साभार – गिरीश मालवीय ( लेखक से निजी विचार है)
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