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(वरिष्ठ पत्रकार एवं आध्यात्मिक चिंतक)
चिठिया हो तो हर कोई बांचे…! पर हर चिट्ठी सिर्फ़ पढ़ने के लिए नहीं होती, कुछ चिट्ठियाँ महसूस करने के लिए लिखी जाती हैं। कुछ शब्द आँखों से नहीं, दिल से पढ़े जाते हैं। जब किसी अपने का लिखा पत्र हाथों में आता है, तो उसमें सिर्फ़ स्याही से बने शब्द नहीं होते, बल्कि उसमें वो भावनाएँ होती हैं, जो लिखते समय उस व्यक्ति के मन में उमड़ी थीं। वो आत्मीयता से सराबोर सम्बोधन, वो खुद की कुशलता के साथ सामने वाले की कुशलता की कामना, वो प्यार निचोड़कर लिखा गया एक-एक शब्द, कभी शिकायत, कभी उलाहना, कभी अधीरता भरा प्रतीक्षा का भाव—सब कुछ एक छोटे से कागज़ के टुकड़े में समाया होता था।कभी पोस्टकार्ड,कभी अंतर्देशीय पत्र तो कभी टिकट चिपका हुआ लिफाफा…!
चिट्ठी सिर्फ़ संवाद का माध्यम नहीं थी, यह रिश्तों की आत्मा हुआ करती थी। माँ का बेटे को लिखा पत्र, जिसमें सिर्फ़ हालचाल नहीं, बल्कि उसकी चिंता में डूबी ममता होती थी। पिता की सख्त भाषा में छिपी फिक्र होती थी। प्रेमिका के खत में इंतज़ार की बेचैनी और प्रेम की गहराई होती थी। दोस्त की चिट्ठी में वो बीते दिनों की यादें, वो मज़ाक, वो किस्से होते थे, जो एक-दूसरे से दूर होते हुए भी दिलों को करीब रखते थे। चिट्ठियाँ सिर्फ़ संदेश नहीं, बल्कि आत्माओं का संवाद होती थीं, जहाँ शब्द, भावनाओं का साक्षात रूप धारण कर लेते थे।
एक जमाना था जब रिश्तों की मजबूती की डोर चिट्ठियों से बंधी होती थी। लोग महीनों तक उत्तर की प्रतीक्षा करते, और जब कोई पत्र आता, तो उसे बार-बार पढ़ने का आनंद कुछ और ही होता। शब्दों को महसूस किया जाता, पत्र की तहों में छुपी भावनाओं को खोजा जाता। एक पत्र आने की खुशी वैसी ही होती थी, जैसी आज किसी प्रियजन के अचानक सामने आ जाने की होती है। उस जमाने में संवाद के साधन सीमित थे, लेकिन रिश्तों में वो गहराई थी, जो आज के डिजिटल युग में दुर्लभ हो गई है।
पोस्टमैन का घर के दरवाजे पर आकर नाम पुकारना किसी उत्सव से कम नहीं होता था। गाँवों में लोग एक-दूसरे की चिट्ठियाँ पढ़कर सुनाते, क्योंकि हर कोई अक्षरज्ञान नहीं रखता था। कभी-कभी घर के बुज़ुर्ग पोते-पोतियों को बिठाकर पुरानी चिट्ठियाँ पढ़वाते और उन लफ्ज़ों में खो जाते। शब्दों में जज़्बात बसते थे, और उन्हीं जज़्बातों ने रिश्तों को मजबूत बनाए रखा था।
इतिहास में चिट्ठियों की अहमियत को देखिए, तो पाएँगे कि ये सिर्फ़ प्रेमियों या परिवारजनों तक सीमित नहीं थीं, बल्कि राजा-महाराजाओं से लेकर स्वतंत्रता सेनानियों तक, चिट्ठियों ने हमेशा इंसान की सबसे गहरी भावनाओं को शब्दों में ढाला है। भगत सिंह की जेल से लिखी गई चिट्ठियाँ उनकी विचारधारा और साहस की गवाही देती हैं। पंडित नेहरू द्वारा अपनी बेटी इंदिरा को लिखे गए पत्र आज भी प्रेरणा के स्रोत हैं। मीरा के कृष्ण के प्रति प्रेम का इज़हार भी उनके लिखे पदों के रूप में हमारे सामने आता है। इतिहास गवाह है कि जब भी कोई मनुष्य अपनी भावनाओं को अमर करना चाहता है, तो वह उन्हें किसी न किसी रूप में लिखता है, और चिट्ठियाँ इसका सबसे सहज और सजीव माध्यम रही हैं।
महान वैज्ञानिक आइंस्टीन की चिट्ठियाँ उनकी वैज्ञानिक सोच और मानवीय भावनाओं को दर्शाती हैं। प्रसिद्ध लेखक प्रेमचंद की चिट्ठियाँ उनके संघर्ष और समाज के प्रति संवेदनशीलता का आईना थीं। गांधीजी ने भी अनगिनत चिट्ठियाँ लिखीं, जिनमें उन्होंने सत्य, अहिंसा और स्वतंत्रता संग्राम की भावना को उकेरा।
पहले प्रेम पत्र लिखे जाते थे और फिर उन्हें डाक से भेजने के बाद इंतज़ार की एक लंबी रात शुरू होती थी। उत्तर आने में हफ्ते लगते, और हर बीता दिन उम्मीद और बेचैनी से भरा होता। प्रेम सिर्फ़ मिलने तक सीमित नहीं था, बल्कि शब्दों में ढला प्रेम, दिल में बसा प्रेम, सबसे गहरा और सबसे सच्चा था। लिफ़ाफ़ा खोलने से पहले ही उसकी खुशबू, लिखने वाले की मौजूदगी का एहसास करा देती थी। हर अक्षर में स्पर्श छुपा होता था, हर शब्द में धड़कन।
आज के डिजिटल युग में संवाद की गति तेज़ हो गई है। अब एक पल में संदेश भेजे और पढ़े जा सकते हैं। ईमेल, व्हाट्सएप, सोशल मीडिया—हर तरफ़ संवाद के साधन हैं, लेकिन क्या संवाद की आत्मा भी बची है? क्या कोई संदेश, कोई ईमेल, कोई वॉयस नोट उस एहसास को छू सकता है, जो एक चिट्ठी में होता है? शायद नहीं… आज रिश्तों में संवाद है, लेकिन गहराई कहीं खो गई है। जहाँ पहले एक पत्र के शब्दों को पढ़ने और महसूस करने का सुख था, वहाँ अब टाइप किए गए संक्षिप्त उत्तरों की औपचारिकता रह गई है। ‘ओके’, ‘ठीक है’, ‘चलो देखते हैं’ जैसे संदेशों ने उन विस्तृत चिट्ठियों की जगह ले ली है, जिनमें प्यार, चिंता, प्रतीक्षा और आत्मीयता के रंग भरे होते थे।
कभी-कभी सोचता हूँ कि जब प्रेम इतना अमूल्य है, तो उसके इज़हार के तरीके इतने यांत्रिक क्यों हो गए हैं? आज भी अगर कोई हमें हाथ से लिखी चिट्ठी भेजे, तो वह दिल को छू जाती है। उसमें लिखावट की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ भी सुंदर लगती हैं, क्योंकि वे मशीन से टाइप किए गए शब्दों की तरह नीरस नहीं होतीं। वे उस व्यक्ति की मौजूदगी का एहसास कराती हैं।
अगर आपने कभी किसी के लिए चिट्ठी नहीं लिखी, तो लिखिए। रिश्तों को फिर से उसी आत्मीयता में पिरोइए, जिसमें कभी हमारे पूर्वजों ने उन्हें पिरोया था। कुछ बातें काग़ज़ पर उतरकर ही अमर होती हैं… और चिट्ठी उन्हीं अनमोल बातों का सबसे सच्चा दस्तावेज़ होती है।
-up18News