नई दिल्ली। सनातन धर्म को अपने बुजुर्गों के सम्मान करने के चलते ही दुनिया में विशेष सम्मान मिलता रहा है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अपने बुजुर्ग पिता का मान रखने के लिए राजसी ठाट-बाट को छोड़कर 14 वर्ष के वनवास को सहर्ष स्वीकार कर लिया था। इसलिए उन्हें अतुलनीय कहा जाता है। उन्हीं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में उम्र का हवाला देकर राम मंदिर आंदोलन के सूत्राधार लालकृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी को अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले समारोह में उम्र का हवाला देकर नहीं आने का अनुरोध राम मंदिर ट्रस्ट ने किया है।
राम मंदिर ट्रस्ट ने पूर्व उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को अलग करके श्रवण कुमार बनने का मौका खो दिया है। देश-दुनिया की तमाम हस्तियों को बुलाया जा रहा है। इस बीच राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी से उद्घाटन समारोह में न पहुंचने की अपील की है। समारोह से इन बुजुर्गों को अलग-थलग करके आयोजन समिति सनातनियों की नई पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहती है?
चंपत राय ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा है कि मुरली मनोहर जोशी और लाल कृष्ण आडवाणी स्वास्थ्य और उम्र संबंधी कारणों के चलते उद्घाटन समारोह में शामिल नहीं हो पाएंगे। दोनों बुजुर्ग हैं। इसलिए उनकी उम्र को देखते हुए उनसे न आने का अनुरोध किया गया है, जिसे दोनों ने स्वीकार भी कर लिया है। सवाल यह उठता है कि अगर ये दोनों अति बुजुर्ग हो चुके हैं तो देश और दुनिया के दूसरे बुजुर्गों को क्यों बुलाया जा रहा है? और क्या देश के हिंदुओं को ये संदेश दिया जा रहा है कि अयोध्या में प्रभू श्रीराम के दर्शन करने आएं तो अपने साथ घर के बुजुर्गों को न लाएं? आयोजन समिति का ये फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन दुनिया के सबसे बड़े जनआंदोलनों में रहा है। इसलिए आयोजन समित जनता के प्रति भी जवाबदेह है। समिति को जनता के इन सवालों का जवाब देना होगा।
अगर आयोजन समिति ने उम्र के आधार पर लाल कृष्ण आडवाणी (96) और मुरली मनोहर जोशी (89) को समारोह में न आने के लिए मना लिया है तो किस आधार पर पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा (91), तिब्बत के निर्वासित नेता दलाई लामा (88) को बुलाया गया है। खुद राम जन्म भूमि मंदिर के कर्ताधर्ता और पीसी कर रहे चंपत राय भी इस उम्र के हो चुके हैं कि उन्हें मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया जाए। उम्र के आधार पर तो उन्हें इतने बड़े मंदिर और आयोजन की जिम्मेदारी को सौंपना भी अन्याय करने के समान है। भारत में किसी भी घरेलू आयोजन में अपने पूर्वजों को भी बुलाने की परंपरा रही है। बहुत जगहों पर पूर्वजों के नाम से इन्विटेशन कार्ड लिखकर रख दिया जाता है। आयोजन समित को भी इन बुजुर्गों को बुलाना चाहिए था। उनके आने का फैसला उनके और उनके परिवारजनों पर छोड़ना चाहिए था। कम से कम इस उम्र में वे अपने को अलग-थलग तो नहीं महसूस करते।
अगर आयोजन समिति इन बुजुर्गों को समारोह स्थल पर लाने में सक्षम नहीं हैं तो इन बुजुर्गों के प्रति सम्मान दिखाने और राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए किए गए उनके महती योगदान को देखते हुए कुछ ऐसे कार्य करने चाहिए थे जिससे उनके प्रति सम्मान को प्रकट किया जा सके। आयोजन समिति इन दोनों नेताओं के घर पर बड़े स्क्रीन लगाकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से समारोह में शामिल करा सकती है। जिसे आयोजन स्थल पर इन बुजुर्गों को आम जनता भी देख सके। पहले शिलान्यास के मौके पर भी इन लोगों को नहीं बुलाया गया था। उदघाटन के मौके पर सम्मान दिखाकर उस गलती का प्रायश्चित भी कर सकेगी आयोजन समिति।
-एजेंसी
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