उत्तर प्रदेश के आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल का बड़ा बयान सामने आया है। यह बयान दिल्ली की आबकारी नीति 2021-22 के खिलाफ है, जिसको लेकर भ्रष्टाचार के आरोप केजरीवाल सरकार पर लगाए जा रहे हैं। आबकारी मंत्री और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया जांच के दायरे में घिर गए हैं। सीबीआई के बाद ईडी की कार्रवाई शुरू हो गई है। वहीं, दिल्ली की आबकारी नीति से प्रभावित रहने वाले उत्तर प्रदेश के मंत्री भी अब हमलावर हो गए हैं। दरअसल, दिल्ली की आबकारी नीति के कारण खरीदारों को एक के साथ एक बोतल शराब फ्री में मिलने लगी थी। इस स्थिति ने एनसीआर के तहत आने वाले गाजियाबाद और नोएडा में शराब की बिक्री को खासा प्रभावित किया था।
दिल्ली की शराब नीति के कारण यूपी को सीमा पर चेकिंग बढ़ानी पड़ी। लोगों को दिल्ली की तरफ से दो से अधिक बोतल शराब लेकर आने पर रोक लगाई गई। अब जब शराब नीति में घोटाले के आरोप लगे हैं तो यूपी के आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल हमलावर हैं। वे कह रहे हैं कि यूपी की आबकारी नीति मॉडल है। इसमें किसी भी पार्टी को फायदा पहुंचाने जैसी कोई बात नहीं है। यही कारण है कि इससे प्रदेश में एक्साइज ड्यूटी में इजाफा हुआ है। वहीं, इस नीति को राष्ट्रीय स्तर पर लोग सराहते हैं और फॉलो करते हैं। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि दोनों राज्यों की एक्साइज पॉलिसी में कहां, क्या और कितना अंतर दिखता है।
दिल्ली की किस नीति पर मचा है हंगामा?
दिल्ली सरकार की ओर से वर्ष 2021-22 के लिए आबकारी नीति का निर्माण किया गया था। दिल्ली सरकार नई आबकारी नीति के जरिए दिल्ली सरकार शराब खरीदने का अनुभव बदलना चाहती थी। नई नीति में होटलों के बार, क्लब्स और रेस्टोरेंट्स को रात तीन बजे तक ओपन रखने की छूट दी गई। उन्हें छत समेत किसी भी जगह शराब परोसने का अधिकार मिलने वाला था। दिल्ली में इससे पहले तक खुले में शराब परोसने पर रोक लगी हुई थी। बार में किसी भी तरह के मनोरंजन का इंतजाम किए जाने का प्रस्ताव था। माना जा रहा था कि इससे बार कल्चर को बढ़ावा मिलता। इसके अलावा बार काउंटर पर खुल चुकीं बोतलों की शेल्फ लाइफ पर कोई पाबंदी नहीं रखी गई थी। केजरीवाल सरकार की इसी एक्साइज पॉलिसी पर बवाल मचा।
दिल्ली की नई शराब नीति के तहत प्रदेश को 32 जोन में बांटा जाना था। नीति के तहत बाजार में केवल 16 पार्टियों को ही शराब के धंधे क इजाजत दी जा सकती थी। इस मामले में आरोप यह लगा कि इससे एकाधिकार को बढ़ावा मिलेगा। विपक्षी दलों की ओर से आरोप लगाया गया कि नई आबकारी नीति के जरिए केजरीवाल सरकार ने भ्रष्टाचार किया। दिल्ली में शराब के कई छोटे वेंडर्स दुकानें बंद कर चुके हैं। उनका कहना है कि कुछ बड़े प्लेयर्स अपने यहां स्टोर्स पर भारी डिस्काउंट से लेकर आफर्स देते रहे हैं, इससे उनके लिए बिजनेस कर पाना नामुमकिन हो गया है।
शराब नीति को लेकर जब मामला कोर्ट में पहुंचा तो वकीलों की ओर से कहा गया कि हमें थोक कीमत के बारे में तो पता है। हालांकि, यह साफ नहीं है कि रिटेलर्स को उसे किस दाम पर बेचना है। कई रिपोर्ट सामने आई, जिसमें भ्रष्टाचार के आरोप लगे। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि दिल्ली सरकार ने कोरोना के नाम पर शराब ठेकेदारों को पक्षपातपूर्ण तरीके से फायदा पहुंचाया। उनकी 144.36 करोड़ की लाइसेंस फीस माफ कर दी। इससे दिल्ली के राजस्व को भारी नुकसान हुआ। इसी मसले पर हंगामा मचा। बाद में सरकार ने इस नीति को वापस लेते हुए पुरानी नीति पर जाने का फैसला किया। लेकिन, केंद्रीय एजेंसियां कथित घोटाले की जांच कर रही हैं।
यूपी की नीति को बता रहे पारदर्शी
आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल प्रदेश की आबकारी नीति को पारदर्शी बता रहे हैं। दरअसल, यूपी सरकार की ओर से वर्ष 2022-23 में शराब की खरीद-बिक्री को नियंत्रित करने के लिए नई नीति जारी की। इसमें हर विषय को स्पष्ट किया है। शराब की बिक्री के लिए वेंडर्स के चयन को महत्वूपर्ण बताया गया है। शराब की खरीद-बिक्री पर नियंत्रण के साथ राजस्व बढ़ाने पर जोर भी दिया गया है। सरकार की ओर से बियर और विदेशी शराब की दर में कोई बदलाव नहीं किया गया। देसी शराब के दाम कम किए गए। देसी की बिक्री बढ़ने की स्थिति को देखते हुए सरकार ने लाइसेंस फीस में वृद्धि कर राजस्व बढ़ाने का इंतजाम जरूर कर लिया।
यूपी सरकार की एक्साइज पॉलिसी को अगर गौर से देखेंगे तो आप पाएंगे कि वर्ष 2022-23 में देसी शराब के अधिकतम फुटकर विक्रय मूल्य तक को तय कर दिया गया है। यूपी मेड लिकर के 200 मिलीलीटर की बोतल का अधिकतम मूल्य 80 रुपये रखा गया है। 36 प्रतिशत तीव्रता वाले देसी मसाला 200 मिलीलीटर का पव्वा का दाम 65 रुपये और 25 प्रतिशत तीव्रता वाले 200 मिलीलीटर के पव्वे का मूल्य 50 रुपये निर्धारित किया गया है। मतलब साफ है कि अगर आपको देसी या विदेशी शराब बेचनी है तो उसका अधिकतम खुदरा मूल्य यह रहेगा।
आबकारी विभाग के अधिकारियों का भी कहना है कि अगर आप शराब के मूल्य को रिटेलर्स के हाथों में छोड़ देंगे तो इससे अव्यवस्था फैलेगी। मांग अधिक होने के समय वे इसकी कीमत को बढ़ा देंगे। मांग घटेगी तो मूल्य कम कर देंगे। इससे उनको तो फायदा हो जाएगा, लेकिन सरकार को राजस्व का नुकसान होता है। साथ ही, कस्टमर को भी इससे नुकसान होता है। हर स्थिति के लिए शराब की कीमत एक वित्तीय वर्ष में एक समान रहनी चाहिए। उसे बाजार पर छोड़ने अव्यवस्था को जन्म देता है। दिल्ली में इसी का फायदा उठाकर मांग कम होने की स्थिति में एक बोतल पर एक फ्री तक का ऑफर दे दिया गया था।
यूपी में दिखा है व्यवस्था में बदलाव का असर
यूपी में खुले में शराब परोसने को अनुमति नहीं है। हालांकि, पारदर्शी शराब नीति का असर दिखा है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान यूपी सरकार ने शराब की दुकानों पर लगे लाइसेंस शुल्क और एक्साइज टैक्स के जरिए 36,208 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल किया। वित्तीय वर्ष 2020-21 में आबकारी राजस्व 30,061.44 करोड़ रुपये था। इस प्रकार एक वित्तीय वर्ष में करीब 6147 करोड़ रुपये की कमाई बढ़ी। इस प्रकार एक साल में करीब 20.45 फीसदी राजस्व का इजाफा हुआ। प्रदेश के राजस्व का करीब 10 फीसदी हिस्सा शराब के राजस्व का होता है।
दिल्ली में व्यवस्था बदली, तो दिख रहा असर
दिल्ली सरकार की बात करें तो यहां पर नई नीति आने के बाद शराब राजस्व में बड़ा उछाल देखने को मिला। वित्तीय वर्ष 2019-20 में शराब राजस्व से दिल्ली सरकार को 5400 करोड़ रुपये का राजस्व मिला था।
वित्त वर्ष 2020-21 में दिल्ली में कोरोना का असर दिखा। लॉकडाउन और अन्य वजहों से आबकारी विभाग के लिए अनुमानित राजस्व से 41 प्रतिशत कम राजस्व की प्राप्ति हुई। लेकिन, नई आबकारी नीति के लागू होने के बाद स्थिति बदल गई।
वर्ष 2021-22 के लिए दिल्ली भर के लिए बनाए गए 32 जोन को बेचने के निकाले गए टेंडर का कुल रिजर्व प्राइस 7039 करोड़ रखा गया था। ये सभी जोन मिलाकर 8917 करोड़ रुपये में बिके। यह वित्तीय वर्ष 2019-20 के मुकाबले 3517 करोड़ से अधिक राशि थी। हालांकि, अब पुरानी व्यवस्था लागू होने से स्थिति बदली है।
-एजेंसी
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