हाल ही में एक अध्ययन लैंसेट मैगजीन में प्रकाशित हुआ जिसके मुताबिक वर्ष 2020 में पूरी दुनिया में करीब 1.34 करोड़ बच्चों ने समय से पहले जन्म लिया। यानी इन बच्चों को गर्भावस्था के 37 हफ्ते से पहले ही मां की कोख छोड़कर दुनिया में आना पड़ा। दुनिया में जन्म लेने वाले हर 10 बच्चे में से 1 को समय से पहले जन्म लेना पड़ता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रंस फंड (UNICEF) और लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन द्वारा कराए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि समय से पहले जन्म लेने वाले कुल बच्चों में से 20 फीसदी यानी 30.2 लाख भारत में पैदा हुए।
सबसे पहले यह जानते हैं कि समय से पहले जन्मे बच्चे का क्या मतलब है और इसके क्या मायने हैं
प्रीटर्म या समय से पहले जन्मे बच्चे वे होते हैं, जो 37 महीने की गर्भावस्था के चक्र को पूरा किए बिना ही इस दुनिया में जन्म लेते हैं। इसे तीन हिस्सों में बांटा गया है-
एक्सट्रीमली प्रीटर्म (28 हफ्ते से पहले जन्म)
वेरी प्रीटर्म (28 से 32 हफ्ते के बीच जन्म)
मॉडरेट टू लेट प्रीटर्म (32 से 37 हफ्ते के बीच जन्म)
कितना बड़ा खतरा, इन आंकड़ों से समझिए
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया में वर्ष 2020 में जन्मे प्रीमैच्योर बच्चों में से 24 लाख ने जन्म के पहले महीने में ही दम तोड़ दिया। पूरी दुनिया में हर दिन 6700 नवजात आंखें बंद कर ले रहे हैं। 1990 के बाद से नवजातों की मौत में तेजी आई है, जो 40 फीसदी से बढ़कर अब 47 फीसदी पहुंच गई है।
एक दशक में भी समय से पहले जन्मे बच्चों में आई मामूली कमी
अध्ययन के मुताबिक, इस लिस्ट में भारत के बाद पाकिस्तान, नाइजीरिया, चीन, इथियोपिया, बांग्लादेश, कांगो और अमेरिका शामिल है। वहीं, वैश्विक स्तर पर वर्ष 2010 और 2020 के बीच समय पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों की दर में खास बदलाव नहीं हुआ है। इस एक दशक में महज 0.14 फीसदी की मामूली कमी आई।
10 वर्षों में जन्मे कुल बच्चों में से 15 फीसदी समय से पहले पैदा हुए थे। भारत में भी ऐसे बच्चों की संख्या में कमी नहीं आई। वर्ष 2010 में 34.9 लाख, जबकि वर्ष 2020 में यह संख्या 30.2 लाख पाई गई है। देश में गर्भावस्था के महीने का गलत अनुमान और गर्भवती महिला का खराब स्वास्थ्य रिकॉर्ड रखना इसकी वजह है।
सबसे ज्यादा प्रीटर्म अफ्रीका और दक्षिण एशिया से
WHO में मैटरनल, न्यू बॉर्न, चाइल्ड एंड एडोलसेंट हेल्थ एंड एजिंग की डायरेक्टर डॉ. अंशु बनर्जी कहती हैं- प्रीटर्म बेबीज को जानलेवा खतरे काफी ज्यादा रहते हैं और उन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है।
अध्ययन के अनुसार, समय से पहले जन्म लेने वाले सबसे ज्यादा 65 फीसदी बच्चे सब सहारा अफ्रीका और दक्षिणी एशिया से हैं।
मासूमों पर 5 साल तक ज्यादा खतरा
वैश्विक स्तर पर पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत की वजहों में समय से पहले पैदा होना प्रमुख कारण है। अध्ययन में कहा गया है कि ऐसे बच्चों में दिल की बीमारियां, निमोनिया और डायरिया का खतरा अधिक रहता है।
हालांकि, समय से पहले जन्म के कारण होने वाली मौतों में क्षेत्रीय रूप से भिन्नता है। कम आय वाले देशों में समय से पहले पैदा होने वाले 90 फीसदी से ज्यादा बच्चे बच नहीं पाते। भारत में भी स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं है।
समय से पहले जन्मे बच्चों को हो सकती हैं ये मुश्किलें
समय से पहले जन्मे बच्चों को बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत पड़ती है, वरना उन्हें कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
सांस लेने में मुश्किल होना
प्रीमेच्योर बच्चे का रेस्पिरेट्री सिस्टम पूरी तरह से विकसित नहीं हाेता है, जिससे उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है। वहीं ऐसे बच्चों के फेफड़े सामान्य बच्चों की तरह पूरी तरह से एक्सपैंड और कॉन्ट्रैक्ट भी नहीं हो पाते हैं।
दिल की समस्याएं
समय से पहले जन्मे बच्चों में दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है। खासकर उन्हें पीडीए यानी कि पेटेंट डक्टस आर्टिरियसस और लो ब्लड प्रेशर का खतरा बना रहता है। वहीं समय के साथ हार्ट फेलियर की संभावना बढ़ती जाती है।
मानसिक समस्या
प्रीमेच्योर जन्मे बच्चों में ब्रेन ब्लीडिंग की संभावना काफी ज्यादा होती है, जिसे हम इंटरवेंट्रिकुलर हेमरेज के नाम से जानते हैं। कई बच्चों में यह काफी हल्का होता है और समय के साथ ठीक हो जाता है। वहीं कई बच्चों में परमानेंट ब्रेन इंजरी होने की संभावना बनी रहती है।
पाचन की समस्या
समय से पहले जन्मे बच्चों का गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम अविकसित होता है, जिससे कई तरह की समस्याएं देखने को मिलती हैं। जैसे कि NEC यानी कि नैक्रोटाइजिंग एंटरोकोलाइटिस। जो बच्चे शुरुआत से ही मां का दूध पीते हैं, उनमें इस समस्या के होने की आशंका काफी हद तक कम हो जाती है।
खून की कमी
समय से पहले जन्मे करीब सभी बच्चों में एनीमिया यानी कि खून की कमी होती है। इस स्थिति में बच्चों के शरीर में पर्याप्त मात्रा में रेड ब्लड सेल्स नहीं बन पाते हैं। जिसकी वजह से शरीर में कई अन्य प्रकार की परेशानियों का खतरा बढ़ जाता है।
इसके अलावा भी कई अन्य परेशानियां होती हैं, जैसेकि मेटाबॉलिज्म की समस्या, इम्यून सिस्टम का कमजोर रहना, इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाना इत्यादि।
बच्चे को पूरे जीवन हो सकती हैं ये मुश्किलें
वहीं प्रीमेच्योर बच्चों में कई अन्य प्रकार की गंभीर समस्याएं भी देखने को मिलती हैं, जैसेकि कमजोर विजन, इंपेयर्ड लर्निंग, किसी भी चीज को सुनने में दिक्कत होना, दांतों से जुड़ी समस्या, बिहेवियर और साइकोलॉजिकल दिक्कतें। उनका शारीरिक विकास बाधित हो सकता है। सीखने की क्षमता, कम्यूनिकेशन, अपना ख्याल रखने और दूसरों से मिलने में मुश्किल आना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
प्रीमेच्योर डिलीवरी से बचने के लिए महिला इन बातों का रखे ध्यान
प्रेग्नेंसी प्लानिंग शुरू कर दी है तो गर्भधारण के कुछ महीने पहले से ही अल्कोहल से दूरी बनाएं।
तंबाकू, स्मोकिंग, इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट और सेकंड हैंड स्मोक से पूरी तरह परहेज रखें।
प्रेग्नेंसी के दौरान कम से कम प्रतिदिन 30 मिनट एक्सरसाइज या वॉक करने में गुजारें।
आयरन और फोलिक एसिड से युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित हैं, तो प्रेग्नेंसी के दौरान इन्हें कंट्रोल में रखें।
यदि आप अंडरवेट हैं तो प्रेग्नेंसी के पहले वजन को संतुलित रखें। मोटापे से पीड़ित महिलाएं वजन घटाएं।
प्रेग्नेंसी के दौरान तनाव से बचें। योग, मेडिटेशन करें, घूमें-फिरें और खुश रहें।
Compiled – up18 News
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