बच्चों की सेहत के दुश्मन बनते जा रहे हैं ये खतरनाक SSS

Health

सबसे पहले S यानी शुगर के बारे में जानते हैं। दूसरा S सॉल्ट है और तीसरा है S स्क्रीन है। अब तक यही लगता था कि नमक या चीनी खाने से बड़ों को ही नुकसान होता है। लेकिन यह बच्चों के भी जानी दुश्मन हैं। उजली रंगत लिए चीनी और नमक बच्चे की किडनी, दांतों और इम्यूनिटी कमजोर कर सकते हैं। जब तक बच्चा 6 महीने का नहीं हो जाता तब तक उसे चीनी और नमक देना ही नहीं चाहिए।

अक्सर माता-पिता परेशान होते हैं कि बच्चे को नमक नहीं दिया जाएगा तो उन्हें सोडियम कैसे मिलेगा, जबकि उनकी यह जरूरत मां के दूध से ही पूरी हो जाती है।

ब्रिटल बोन का खतरा

नमक का इस्तेमाल बच्चों की हड्डियां कमजोर करता है। कैल्शियम की कमी से हड्डियां कमजोर होनी शुरू हो जाएंगी। इससे हड्डियों में फ्रैक्चर भी हो सकता है जो बढ़ते बच्चों के लिए ठीक नहीं होता।

डिहाइड्रेशन का खतरा

जिन बच्चों की डाइट में सोडियम ज्यादा होता है वे डिहाइड्रेशन के शिकार हो सकते हैं। शरीर का पानी पसीने या यूरिन के जरिए बाहर निकलता है। इससे किडनी स्टोन, बॉडी पेन, कब्ज और लिवर डैमेज होने का खतरा बना रहता है।

हाई ब्लड प्रेशर की समस्या

बच्चों की डाइट में ज्यादा नमक होने से बीपी लेवल बढ़ जाता है। इससे हाइपर टेंशन की समस्या हो सकती है। आगे चलकर यह समस्या बच्चे में दिल की बीमारी का रिस्क बढ़ा सकती है।

बच्चों की डाइट में नमक-चीनी मात्रा

6 महीने से 1 साल- 1 ग्राम नमक देना चाहिए।

1-3 साल-दिन में दो ग्राम नमक देना चाहिए।

4-6 साल- दिन में 3 ग्राम नमक देना चाहिए।

किडनी स्टोन की समस्या

बच्चों में ज्यादा सोडियम की वजह से यूरिन में कैल्शियम निकलता है। यह कैल्शियम किडनी में पथरी बना सकता है। जिससे बच्चे के शरीर में दर्द, ठंड लगना, बुखार और जी मिचलाने जैसी समस्या हो सकती है। यूरिन के साथ ब्लड भी आ सकता है।

आइए अब बात करते हैं तीसरे ‘S’ यानी स्क्रीन के बारे में।

बच्चों पर भारी है स्क्रीन

इंटरनेट बच्चों के लिए ज्ञान का खजाना है। स्मार्टफोन के लगातार इस्तेमाल और स्क्रीन के एक्सपोजर की वजह से बच्चे पर गलत असर पड़ता है।

ट्यूमर- विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिसर्च में पता चला है कि बच्चे ज्यादा समय के लिए फोन का इस्तेमाल करते हैं, तो उन्हें मेलिग्नंट होने का खतरा होता है, एक तरह का ट्यूमर है।

ब्रेन एक्टिविटी में गड़बड़ी- बच्चों में फोन से तरंगें दिमाग के अंदरूनी हिस्से में आसानी से पहुंच सकती है। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन की वेबसाइट पर प्रकाशित शोध से पता चला है कि सिर्फ 2 मिनट तक फोन पर बात करने से बच्चे के दिमाग के अंदर की इलेक्ट्रिक एक्टिविटी को बदला जा सकता है। यह गतिविधि मूड पैटर्न और व्यवहार में बदलाव की वजह बन सकती है, और बच्चों को नई चीजें सीखने में या ठीक से ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होती है।

पढ़ाई-लिखाई में दिक्कतें- कई बच्चे स्कूलों में भी फोन ले जाते हैं। स्कूल ब्रेक टाइम या क्लास में भी दोस्तों के साथ चैटिंग या गेम खेलना बढ़ता जा रहा है। यह बच्चों को क्लास में फोकस और लेसन याद करने में मुश्किल पैदा करता है। इसका पढ़ाई और एग्जाम पर गलत असर पड़ता है।

नींद में खलल- बच्चे दोस्तों से बात करने, गेम खेलने या सोशल मीडिया की वजह से देर तक जागे रह सकते हैं, जो समय के साथ थकान और बेचैनी का कारण बनता है।

नींद पढ़ाई में भी रूकावट डालती है, क्योंकि बच्चों को स्कूल में पढ़ाई जाने वाली चीजों पर फोकस करते समय बहुत नींद आती है। इसका गलत असर पड़ता है जो भविष्य के लिए चरणों सही नहीं है।

मेडिकल इश्यू – जो बच्चे अपने खाली समय में मोबाइल फोन से चिपके रहते हैं, उन्हें मोटापा और बीमारियों का खतरा होता है, जो बाद में डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी हानिकारक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य- सोशल मीडिया पर बच्चे साइबर बुली की चपेट में आ सकते हैं जहां उन्हें इंटरनेट पर परेशान करते हैं और धमकाते हैं।

बच्चों के लिए मोबाइल फोन सेफ्टी टिप्स

16 साल से कम उम्र के बच्चों को सेल फोन देने से बचें।
बच्चों के दिमाग की हड्डियों में प्रोटेक्शन टिश्यू का विकास नहीं होता है.

ट्रैवलिंग के दौरान बच्चे को लगातार मोबाइल फोन देने से बचें।

गाड़ी का मेटल सिग्नल ब्लॉक करता है इसलिए फोन अपनी पॉवर बढ़ाता है, जो कि बच्चों के लिए नुकसानदेह है।
बच्चों को उन क्षेत्रों में मोबाइल फोन का उपयोग न करने दें जहां सिग्नल कमजोर है।

Compiled: up18 News