हर भारतीय के लिए खुशी देने वाली खबर है। देश की आस्था और खुशहाली का केंद्र गंगा नदी के सूखने का कोई खतरा नहीं है। कैटो इंस्टीट्यूट के रिसर्च फैलो स्वामीनाथन एस. अंकलेसरिया अय्यर और ग्लेशियोलॉजिस्ट विजय के. रैना के ताजा अध्ययन ने IPCC के उस दावे को खारिज किया है, जिसमें 2035 तक हिमालय के ग्लेशियर गायब हो जाएंगे।
पर्यावरण संबंधी कई जर्नल्स में चेतावनी दी जाती रही है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय क्षेत्र के हजारों ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इससे गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के प्रवाह में भारी कमी आएगी और सूखा पड़ेगा। 2007 में IPCC (इंटरनेशनल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) ने दावा किया था कि 2035 तक सभी हिमालयी ग्लेशियर गायब हो सकते हैं।
इकोनॉमिस्ट ने भी 2019 की विशेष रिपोर्ट में दावा किया था कि गंगा का करीब 70% प्रवाह हिमालय के ग्लेशियरों के पिघले पानी से आता है। चूंकि गंगा बेसिन में उत्तर भारत और बांग्लादेश के भारी आबादी वाले राज्य बसे हैं और यहां करोड़ों लोग रहते हैं इसलिए विश्लेषकों को चिंता थी कि ग्लेशियर पिघलने में तेजी और इनके गायब होने से खेती तबाह हो जाएगी।
11,700 सालों से पिघल रहे ग्लेशियर
कैटो इंस्टीट्यूट के रिसर्च फैलो स्वामीनाथन एस. अंकलेसरिया अय्यर और ग्लेशियोलॉजिस्ट विजय के. रैना का ताजा अध्ययन बताता है कि ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा। अध्ययन के मुताबिक हिमालय में ग्लेशियर पिघलने की प्रक्रिया हाल ही में तापमान बढ़ने से शुरू नहीं हुई है। ये हिमयुग की समाप्ति के बाद यानी 11,700 सालों से पिघल रहे हैं।
इसरो के सैटेलाइट अध्ययन में भी पुष्टि
इसरो के ताजा उपग्रह अध्ययन पुष्टि करते हैं कि 2002 से 2011 के बीच हिमालय में अधिकांश ग्लेशियर स्थिर रहे। कुछ ही ग्लेशियर सिकुड़े हैं। वास्तविकता यह है कि गंगा नदी के स्रोत गंगोत्री ग्लेशियर का पीछे हटना घटकर 33 फीट प्रति वर्ष रह गया है। इस तरह यह 3,000 साल तक बना रहेगा। अय्यर के मुताबिक आम तौर पर गंगा बेसिन में बहुत बर्फबारी होती है, जो 8.60 लाख वर्ग किमी बड़ा है। कई बार यह ग्लेशियर क्षेत्र को ढंक लेता है।
यह बर्फ बसंत में पिघलती है और गर्मियों में गंगा में पानी आता रहता है। दरअसल, ग्लेशियर के पिघलने का गंगा नदी के प्रवाह में योगदान 1% से भी कम है। हालांकि, अब तक यह माना जाता रहा है कि गंगा का स्रोत गंगोत्री ग्लेशियर है लेकिन ऐसा नहीं है। नदियों का प्रवाह बारिश और हिमपात से होता है, जो ग्लेशियर गायब होने के बाद भी जारी रहेगा।
कई अध्ययनों से पता चलता है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते महासागरों से अधिक वाष्पीकरण होगा। वातावरण में अधिक बादल बनेंगे। इसके चलते बर्फबारी और बारिश होती रहेगी। ऐसे में गंगा का प्रवाह बना रहेगा।
-एजेंसियां
Discover more from Up18 News
Subscribe to get the latest posts sent to your email.