आगरा: श्मशान घाट या फिर कब्रिस्तान, जब यह नाम लिया जाता है तो लोगों की जहन में सिर्फ एक ही बात आती है कि किसी की मौत हो गई है तो उसमें शरीक होने के लिए शमशान या फिर कब्रिस्तान पहुंचना है लेकिन क्या कभी आपने सुना है कि शिक्षा ग्रहण करने के लिए कब्रिस्तान पहुंचना है। यह सुनने में अटपटा लगता है लेकिन यह बात सौ फ़ीसदी सच है। आगरा के पंचकुइयां स्थित कब्रिस्तान में गरीब असहाय लोगों के बच्चों को शिक्षित बनाने के लिए विद्या का मंदिर संचालित हो रहा है।
कब्रिस्तान में शिक्षा की अलख
पचकुइयां कब्रिस्तान में दर्श गाह ए इस्लामी जूनियर हाई स्कूल के माध्यम से गरीब असहाय बच्चों को शिक्षा देने का काम किया जा रहा है। कब्रिस्तान और श्मशान के नाम से ही लोग भयभीत हो जाते है और लोग यहां जाने से भी कतराते हैं। वहीं आगरा के ही पचकुइयां स्थित कब्रिस्तान में पंचकुइयां कब्रिस्तान कमेटी द्वारा संचालित किए जा रहे जूनियर हाई स्कूल में पिछले 50 वर्षों से इस शिक्षा की अलख को जलाया जा रहा है।
मुस्लिम समाज के बच्चों को शिक्षा
दर्श गाह ए इस्लामी जूनियर हाई स्कूल के प्रधानाचार्य सैयद शाहीन हाशमी बताते हैं कि यह स्कूल सर्व समाज के बच्चों के लिए खोला गया था लेकिन कब्रिस्तान में होने के कारण से मुस्लिम समाज के लोग ही अपने बच्चों को इस स्कूल में शिक्षा के लिए भेज पाते हैं। अन्य समुदाय के लोग कब्रिस्तान होने के नाते नहीं भेजते लेकिन यह स्कूल वैसे ही संचालित हो रहा है जैसे 50 वर्षों पहले शुरू किया गया था।
‘शिक्षा का दीपक कहीं भी जल सकता है’
दर्श गाह ए इस्लामी जूनियर हाई स्कूल के प्रधानाचार्य सैयद शाहीन हाशमी का कहना है कि शिक्षा का दीपक कहीं भी जल सकता है। सिर्फ आपको थोड़ी हिम्मत दिखानी होगी। इस कब्रिस्तान की कमेटी ने जब स्कूल की स्थापना की थी तो उनकी सोच भी यही थी और इसी सोच के साथ आज यहां के सभी अध्यापक बच्चों को शिक्षित बनाने का काम कर रहे हैं। स्कूल में सभी प्रकार की शिक्षाएं दी जा रही है जिससे बच्चों का ऑल ओवर डेवलपमेंट हो सके।
कई हस्तियों ने इस स्कूल से की है पढ़ाई
दर्श गाह ए इस्लामी जूनियर हाई स्कूल के प्रधानाचार्य सैयद शाहीन हाशमी बताते हैं कि इस बदहाल विद्यालय से ही जुल्फिकार अहमद भुट्टो जैसे पूर्व विधायक निकले हैं जो कि आगरा छावनी से दो बार विधायक रहे हैं। उनके साथ-साथ तमाम हस्तियां ऐसी है जो यहीं से प्राथमिक शिक्षा लेने के बाद आगे बढ़ी हैं लेकिन आज यह विद्यालय उपेक्षा का शिकार है।
कोविड-19 ने बदले हालात
विद्यालय के प्रधानाचार्य का कहना था कि कभी इस विद्यालय में ढाई सौ से 300 नौनिहाल यहां से शिक्षा ग्रहण किया करते थे लेकिन कोविड-19 के बाद हालात बदल गए। अब यहां पर मात्र 75 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। अगर समाज और सरकार थोड़ा सहयोग करें तो अभी मांगने वाले बच्चों को हम शिक्षा मुहैया करा सकते हैं जिससे उनके भविष्य को संवारा जा सकता है।
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