आप अपने घर में, परिवार में, या किसी दोस्त के साथ बैठे रहते हैं.. तभी आपके whatsapp पर मैसेज आता है “फलानी जगह, फ़लाने ने फलाने की ह्त्या कर दी, ह्त्या करने वाले का नाम ये था”.. आप नाम देखते हैं, आपका धर्म उस से कनेक्ट करते हैं, और फिर आपका बीपी बढ़ता है.. आप गुस्सा होते हैं.. और फिर आप ये गुस्सा आगे फॉरवर्ड करते और मिर्च मसाला लगा कर.. आप स्वयम डिस्टर्ब होते है, फिर अपने आसपास के लोगों को डिस्टर्ब करते हैं.. जबकि जिसने ये न्यूज़ छापी थी, उसका मकसद कुछ और ही था.. वो चाहता था कि इसे ऐसा मुद्दा बनाया जाय कि उसके न्यूज़ के व्यू बढ़ जाएँ.. व्यू ज्यादा तो पैसा ज्यादा.. जबकि लिखने वाला भली भाँती ये जाता था कि उसी इलाके में बीते दो महीनों में ऐसी जाने कितनी हत्याएं हुई हैं, मगर वो जानता है कि वहां धर्म वाला मामला काम नहीं आएगा
आप बड़े सॉफ्ट टारगेट हैं.. व्यूज बढाने के लिए.. पैसा कमवाने के लिए.. सत्ता में बनाये रखने के लिए.. और इस समय ये इतना आसान है कि बस एक दो एंगल से चीज़ों को दिखाना है बस.. आप अच्छे भले अपने घरों में बैठे रहते हैं.. अपने बच्चों के साथ खेल रहे होते हैं और एकदम से आपका बीपी बढ़ जाता है.. और बस दो तीन दिनों में ही आप उस ख़बर को भूल जायेंगे क्यूंकि आपका असल में उस ख़बर से कोई रिश्ता होता नहीं है.. आपके घर से 500 किलोमीटर दूर किसी की आपसी रंजिश थी, ह्त्या हुई और आप को उस ह्त्या में शामिल कर लिया गया सिर्फ़ इसलिए क्यूंकि न्यूज़ लिखने वाले को व्यूज चाहिए थे, उस इलाके के MLA को अपने क्षेत्र के बहुसंख्यकों का वोट चाहिए था.. आप को इसलिए इसमें शामिल किया गया
और अब ये इतने दिनों से चल रहा है कि हर दिन आपका बीपी और गुस्सा ऊपर नीचे होता रहता है.. अब केजरीवाल हार जाए तो आप दुखी हो जाते हैं, मोदी जीत जाए तो आप सुखी.. ये जो तंत्र इन लोगों ने मीडिया, इनफार्मेशन, संस्कृति, सभ्यता के नाम पर बनाया है ये आपको कण्ट्रोल करने का तंत्र है.. आपकी भावनाओं और सोच को कण्ट्रोल करने का तंत्र है
आपको क्या लगता है कि ये 24 घंटे वाले न्यूज़ चैनल की क्या आवश्यकता है हम सबको? क्यूँ हमें और आपको 24 घंटे न्यूज़ सुननी या देखनी है? ये इसीलिए है ताकि आपको एक सेकंड का भी टाइम न मिले अपनी मौलिक सोच को बनाने का.. ये समाज आपका बाज़ार ने डिज़ाइन ही ऐसा किया है.. इस समाज में कोई किसी को भी एक सेकंड के लिए “फ़्री” नहीं छोड़ता है.. इस समाज ने हर घंटे के धार्मिक कार्यक्रम और कर्मकांड बना दिए हैं, हर दूसरे दिन एक नया त्यौहार बना दिया है, हर दूसरे दिन कोई न कोई रिश्तों वाले “डे” ये बनाते जा रहे हैं.. ये सब सिर्फ़ इसलिए ताकि आपको सोचने का भी समय न मिले अपने रिश्ते, नाते, धर्म और तमाम “काल्पनिक” मान्यताओं के बारे में सोचने का
क्या आप जानते हैं कि इस समय भारत का समाज 99.9% फिक्शन या काल्पनिक बातों, कहानियों और रीति रिवाजों पर जीवन जी रहा है? आपके दिन के 24 घंटे सिर्फ़ और सिर्फ़ काल्पनिक चीज़ों और उनके बारे में बनी रीति रिवाजों पर बीतता है? आपके सारे रिश्ते नाते, सब कुछ बस एक कल्पना हैं.. मौसी, चची, बुआ और ये सब, सिर्फ़ हमारे द्वारा बनाये काल्पनिक रिश्ते और शब्द हैं.. ध्यान दीजियेगा कि हम सब बस एक दूसरे पैदा होते जाते हैं और हम इंसानों की भीड़ बनाते जाते हैं.. इसके सिवा और कुछ भी सत्य नहीं है.. मगर सारी उम्र कल्पनाओं द्वारा बनाये गए बंधन, रिश्ते और उनकी काल्पनिक ज़िम्मेदारियें ढोते रहते हैं और उसी के लिए जीते और मरते रहते हैं
और ये दिन पर दिन अब बढ़ता ही जा रहा है.. सिर्फ़ फिक्शन और कल्पना पर आधारित दुश्मनियाँ हैं एक दूसरे से और उसी फिक्शन पर आधारित नफ़रत.. उसी फिक्शन पर आधारित सत्ता और और उसी फिक्शन या कल्पना पर आधारित सुख और दुःख.. और कोई भी समाज जब पूरी तरह से फिक्शन यानि कल्पना पर जीने लगता है तब वो पतन की ओर बढ़ना शुरू कर देता है और प्रकृति इतने “मूर्छित” लोगों को समाप्त करने लगती है.. क्यूंकि ये समाज फिर “ज़ोंबी” समाज बन जाता है जो समूची पृथ्वी के लिए “ख़तरा” होता है
साभार सहित ~सिद्धार्थ ताबिश