दुनिया में दो अरब से ज़्यादा लोगों के लिए ऑनलाइन शॉपिंग आम बात है. हम फ़िक्र तक नहीं करते कि ऑनलाइन शॉपिंग की दुनिया चलती कैसे है? दरअसल, पेमेंट करते ही ग्राहक तक सामान पहुंचाने के लिए बनी कंपनियां कड़ी हरक़त में आ जाती है.
सबसे पहले पास के वेयरहाउस में ‘पिकर’ कहे जाने वाले शख़्स तक संदेश पहुंचता है. वो ग्राहक के ऑर्डर के मुताबिक़ सामान तलाशता है. इसके बाद सामान पैक करके डिस्पैच कर दिया जाता है. डिपो दर डिपो आगे बढ़ते हुए सामान कुरियर के जरिए हमारे दरवाज़े तक पहुंचता है.
इस पूरी प्रक्रिया और इसमें लगे लोगों को मैनेज करती है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस यानी एआई.
अब सवाल है कि वेयरहाउस और सप्लाई चेन में एआई का जिस तरह का दखल है, क्या बाकी जगह भी वैसा ही होने जा रहा है?
बड़ा सवाल यह भी है कि क्या कंप्यूटर प्रबंधकों की नौकरी छीन लेंगे?
इंसानों की जगह कंप्यूटर
अमेरिकी टेक कंपनी रिथिंकरी के संस्थापक डेविन फिडलर बताते हैं, ”प्रयोग के लिए हमने कई सिस्टम तैयार किए हैं. हम देखना चाहते हैं कि डिजिटल मैनेजमेंट को कहां तक ले जा सकते हैं.”
डेविन फिडलर ने ऐसे सॉफ्टवेयर तैयार किए हैं जो लोगों को संभालते हैं. वो बताते हैं कि उन्हें कल्पना से ज़्यादा कामयाबी हासिल हो चुकी है.
डेविन फिडलर कहते हैं, ”हमारे पास ऐसा सॉफ्टवेयर है जो फ्रीलांसिंग प्लेटफॉर्म पर जाता है. ये ऐसे प्लेटफॉर्म हैं जहां आप दुनिया भर के फ्रीलांसर्स से संपर्क कर सकते हैं. वहां ये ऐसे लोगों की तलाश करता है जो प्रोजेक्ट पर काम करने के लिहाज से माकूल हों. ये आमतौर पर शुरू में उन्हें छोटा काम देता है ताकि उनकी क्षमता परखी जा सके. टीम में शामिल होने के बाद नतीजे हासिल होने तक ये उनकी मदद करता है.” इससे लगता है कि मानो यहां कोई प्रबंधक ही एक्शन में हो.
डेविन कहते हैं कि इससे साबित हुआ कि सेल्फ ड्राइविंग यानी खुद से चलने वाला रिसर्च प्रोजक्ट तैयार करना मुमकिन है. यहां आप सिर्फ़ बटन दबाते हैं. कंप्यूटर पूरी प्रक्रिया को चलाता है और नतीजा मिल जाता है.
तो क्या ये वो दौर है जहां इंसानी प्रबंधकों की विदाई करीब है?
डेविन फिडलर इसका भी जवाब देते हैं. वो कहते हैं, ”मुझे लगता है कि इंसानी मैनेजर की नई परिभाषा गढ़ी जा रही है, एक तरह से मैनेजमेंट की भूमिका एआई निभाने लगी है. इंसानों की भूमिका बदल रही है. अगर आप उबर के सिस्टम में मैनेजर की भूमिका के बारे में सोचें तो वो वहां इंसान सॉफ्टवेयर की निगरानी करते हैं. ये सॉफ्टवेयर हज़ारों लोगों को मैनेज करता है. 20 साल पहले बतौर मैनेजर एक इंसान के लिए ये नामुमकिन होता.”
डेविन के मुताबिक ऐसे तमाम काम जो प्रबंधकों के जिम्मे हैं, आगे एआई के जरिए होंगे. लेकिन क्या इससे प्रबंधक ख़तरा महसूस नहीं करेंगे.
डेविन कहते हैं कि तकनीक की वजह से मैनेजर की नौकरी ख़तरे में आएगी तो वो बाकी कर्मचारियों को लेकर ज़्यादा संवेदनशील तरीके से फैसले लेंगे.
डेविन का ये भी दावा है कि कि हम जितना सोचते हैं, मशीनें संवेदनाओं को उससे बेहतर तरीके से संभाल सकती हैं.
लेकिन सवाल ये भी है कि ऐसा क्या किया जाए जिससे ये तय हो कि एआई लोगों की ज़िंदगी बेहतर बनाए और तबाही की वजह न बनें.
डेविन फिडलर कहते हैं, ” मुझे लगता है कि इसे होशियारी से इस्तेमाल करना चाहिए. ऐसा सिस्टम बना देना आसान है जो किसी एक चीज़ में इजाफ़ा कर दे, मसलन मुनाफ़ा हासिल करना आसान बात है. ये सिस्टम जिस सामाजिक परिवेश में काम करता है, उसे उसकी जानकारी नहीं होती. उसे पता नहीं होता है कि वो जो कर रहा है वो फायदेमंद है या फिर इसकी वजह से परेशानियां बढ़ सकती हैं.”
डेविन कहते हैं कि यहां ध्यान रखना होगा कि ये भाड़े के सैनिक की तरह है. अगर कोई मुनाफे़ का लालची संगठन एआई का इस्तेमाल कर रहा है तो इसके बुरे नतीजे भी सामने आ सकते हैं.
प्रबंधक की भूमिका
न्यूयॉर्क के कोलंबिया बिज़नेस स्कूल में प्रोफ़ेसर रीटा मैक्ग्राथ कहती हैं, ”मैनेजरों के लिए पुराने समय से जो भूमिका तय है, उसमें वो योजना बनाते हैं. लोगों को प्रोत्साहित करते हैं और काम करने के तरीके को व्यवस्थित करते हैं.”
वो बताती हैं कि एक ऐसा सिस्टम तैयार हो रहा है जहां अनुमति लेने जैसी औपचारिकताओं की ज़रूरत नहीं होती. वहां टीमें डिवाइस के भरोसे होती हैं
रीटा मैक्ग्राथ कहती हैं, ”ऐसे ढांचे में आप फैसले लेने के मामले में प्रबंधन को यथासंभव हाशिए पर धकेल देते हैं. काम की प्रक्रिया को ज़्यादा पारदर्शी और ज्यादा स्पष्ट बनाने के लिए डेटा और तकनीक का इस्तेमाल करते हैं ताकि हर किसी को जानकारी हो सके कि क्या चल रहा है. अब आपको ये काम करने के लिए किसी मैनेजर की ज़रूरत नहीं होती.”
वो कहती हैं कि तकनीक की मदद से सिर्फ़ एक मैनेजर कई लोगों को संभाल सकता है. उनके लिए पहले ऐसा करना मुमकिन नहीं होता. इसे ही “स्पैन ऑफ़ कंट्रोल” कहा जाता है.
रीटा मैक्ग्राथ बताती हैं, ”स्पैन ऑफ़ कंट्रोल का पारंपरिक मतलब है कि आपके मातहत कितने कर्मचारी हैं. ऐसे मामले में प्रबंधक के ऊपर उनकी निगरानी की ज़िम्मेदारी होती है. इसमें करीब सात लोगों की निगरानी का काम काफी माना जाता है. अगर इससे ज़्यादा की ज़िम्मेदारी मिलती है तो आप पर बोझ बढ़ जाएगा.”
वो आगे कहती हैं, “आज हम जो देख रहे हैं, उसमें ये मामला नहीं है. कुशलता से काम करने वाली कंपनियों में अगर 20 या तीस लोग हों तो वो कंप्यूटर सिस्टम के जरिए पता कर सकती हैं कि वो क्या कर रहे हैं. उन्हें पुराने तरीके से निगरानी करने की ज़रूरत नहीं होती.”
अंतर्राष्ट्रीय डिलिवरी कंपनी यूपीएस ने इस स्थिति का फ़ायदा उठाया है. रीटा बताती हैं कि यूपीएस के ड्राइवर मोबाइल फ़ोन की जगह बीस्पोक डिवाइस इस्तेमाल करते हैं. वो यात्रा के दौरान इस डिवाइस पर हर कदम की जानकारी रिकॉर्ड करते हैं.
लेकिन क्या कंप्यूटर बोर्ड रूम की रणनीति को भी संभाल सकते हैं.
रीटा मैक्ग्राथ कहती हैं, ”नहीं. मेरे हिसाब से रणनीति अब भी एक ऐसा क्षेत्र है जहां इंसानी खूबी की ज़रूरत होती है. ऐसी क्षमता की दरकार होती है, जहां भविष्य को लेकर कल्पना की जा सके. कंप्यूटर ये काम बहुत अच्छे तरीके से नहीं कर पाते. रणनीति के लिए कल्पनाशीलता की ज़रूरत होती है.”
कंप्यूटर रणनीति भले ही न बना सकते हों लेकिन प्रबंधन में उनकी भूमिका है. लेकिन उनकी जवाबदेही को लेकर सवाल उठते रहे हैं. इंसानों की जवाबदेही तय करना आसान है. रीटा कहती हैं कि मशीनों को जरूरत से ज़्यादा दखल देने का ये एक स्याह पहलू है.
कुल मिलाकर यह माना जा सकता है कि हाल फिलहाल कंपनियों की रणनीतियां बनाने वाले प्रबंधकों पर कोई ख़तरा नहीं दिखता लेकिन जो लोग मिडिल मैनेजमेंट संभालते हैं, यानी लोगों को बताते हैं कि उन्हें कब और क्या करना है, उन्हें वैकल्पिक करियर को लेकर तैयारी शुरू कर देनी चाहिए.
Compiled: up18 News