नई दिल्ली। ज्ञानवापी केस के बाद प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजंस) एक्ट 1991 लगातार खबरों में है जिसके खिलाफ आज सुप्रीम कोर्ट में अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने उपासना अधिनियम एक्ट 1991 को चुनौती दी है।
उन्होंने बुधवार को पूछा, ‘दिल्ली की संसद ने एक ऐसा एक्ट पास किया कि हम काशी और मथुरा के अपने देव स्थानों के लिए दावा नहीं कर सकते हैं। हम दावा क्यों नहीं कर सकते हैं, यह भला कहां का न्याय है’?
इसलिए हमने आज सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजंस) एक्ट, 1991 यानी उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 और उसकी धाराओं को जनहित याचिका के माध्यम से चैलेंज किया है। हमने मांग की है कि कहीं से भी उपयोगी प्रतीत न होने वाले इस अधिनियम के प्रावधानों से हमें निजात दिलाई जाए।
धर्म पर प्रहार हुआ तो उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम विधेयक लाया गया
स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि भारतीय संविधान में धर्म स्वतंत्रता के मूल अधिकार के अंतर्गत जब हमारे धर्म पर प्रहार हुए तो एक विधेयक लाया गया। उस व्यवस्था को उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम नाम दिया गया। हम भले ही यह कह लें कि हम स्वतंत्र देश के निवासी हैं। मगर, स्वतंत्रता प्राप्ति की तिथि के पूर्व जिस गुलामी के हालात में हमारे देव स्थान थे, हम उन्हें प्राप्त नहीं कर सकते हैं। उन देव स्थानों की बेहतरी के बारे में नहीं सोच सकते हैं।
जितेंद्रानंद सरस्वती की ओर से दाखिल इस अर्जी में कहा गया है कि 1192 से 1947 के बीच विदेशी हमलावरों ने हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध मत के सैकड़ों धार्मिक स्थलों को ध्वस्त किया था। इतिहास में इसका ब्योरा और प्रमाण सभी दर्ज हैं।
स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि संविधान के दायरे में किया है चैलेंज
स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि एक कहावत कही जाती है कि जबरा मारे और रोए ना दे…। हम अपनी शिकायत भी नहीं कर सकते हैं। हमारी संस्कृति और सभ्यता को नष्ट करने का प्रयास किया गया है। जिस समय अयोध्या के पानी को राम भक्तों के खून से लाल कर दिया गया था और पांच लाख रामभक्त जेल में थे। उस समय दिल्ली की संसद ने एक ऐसा एक्ट पास किया कि आज उसकी दुहाई देकर कहा जाता है कि आप काशी और मथुरा पर अपना दावा नहीं कर सकते हैं। इसलिए हमने इस एक्ट को चैलेंज किया है।
-एजेंसी