सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया। फैसला सुनाते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को दिसंबर 2018 में जम्मू-कश्मीर में लगाए गए राष्ट्रपति शासन की वैधता पर फैसला देने की जरूरत नहीं है।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की दलील से संकेत मिलता है कि मुख्य चुनौती अनुच्छेद 370 को निरस्त करना है और क्या राष्ट्रपति शासन के दौरान ऐसी कार्रवाई की जा सकती है। उधर, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने निराशा जनक बताया है।
कांग्रेस से अलग होने के बाद डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (DPAP) की स्थापना करने वाले गुलाम नबी आजाद ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निराश हैं। कोर्ट का फैसला दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। जम्मू-कश्मीर के लोग इससे खुश नहीं हैं लेकिन हमें इसे स्वीकार करना होगा।
अनुच्छेद 370 पर कौन कर सकता है फैसला
आजाद ने यहां संवाददाताओं से कहा कि मैंने पहले भी यह कहा है… केवल दो (संस्थाएं) हैं जो जम्मू-कश्मीर के लोगों को अनुच्छेद 370 और 35ए वापस कर सकती हैं और वे संस्थाएं संसद और सुप्रीम कोर्ट हैं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच निष्पक्ष है और हमें उम्मीद थी कि वह जम्मू-कश्मीर के लोगों के पक्ष में फैसला देगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सोमवार को बरकरार रखा और कहा कि अगले साल 30 सितंबर तक विधानसभा चुनाव कराने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए।
Compiled: up18 News