सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति में हो रही देरी के मामलों में लॉ सेक्रेटरी को नोटिस भेजा है। कोलेजियम ने उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के लिए नामों का प्रस्ताव दिया था, जिनकी अभी तक नियुक्ति नहीं हुई है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सवाल उठाने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। कोलेजियम द्वारा प्रस्तावित नामों की नियुक्ति करने में केंद्र सरकार की तरफ से हो रही देरी पर कोर्ट ने कहा कि नामों को होल्ड पर रखना स्वीकार्य नहीं है।
जस्टिस संजय किशन कौल और एएस ओका की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि नामों को होल्ड पर रखना स्वीकार्य नहीं है, यह इन व्यक्तियों को अपना नाम वापस लेने के लिए मजबूर करने के लिए एक उपकरण बनता जा रहा है, जैसा कि हुआ भी है।
कोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन बेंगलुरु द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इसमें कहा गया कि नियुक्ति के लिए सुझाए गए नामों की नियुक्ति करने में केंद्र की विफलता दूसरे न्यायाधीशों के मामले का सीधा उल्लंघन है। शुक्रवार (11 नवंबर, 2022) को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि जस्टिस दीपांकर दत्ता के नाम का प्रस्ताव दिए हुए 5 हफ्ते हो चुके हैं। इसे कुछ दिनों में ही मंजूरी मिल जानी चाहिए थी। इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि ऐसा क्यों हो रहा है, ये हमारी समझ से बाहर है।
बेंच ने कहा, “उच्च न्यायालयों में नियुक्तियों में महत्वपूर्ण देरी के चलते उच्चतम न्यायालय को 2021 में आदेश पारित कर समयरेखा दी थी, जिसमें प्रक्रिया पूरी की जानी चाहिए। यदि इस प्रक्रिया में और देरी होती है, तो यह बार के सदस्यों की बेंस में पदोन्नति स्वीकार करने की प्रक्रिया में देरी करती है। 6 महीने पहले नाम भेजने की समय अवधि की कल्पना इस सिद्धांत पर की गई थी कि इतनी समय अवधि पर्याप्त होगी।”
न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि कोलेजियम ने 11 नामों का प्रस्ताव दिया था, जिन्हें केंद्र सरकार की मंजूरी मिलनी थी, जो कि लंबित है। इनमें से सबसे पुराना मामला सितंबर 2021 का है। कोर्ट ने कहा कि नामों को मंजूरी देने में देरी करना, पदोन्नति की सिफारिश के लिए दिए गए वकीलों के नाम को अपना नाम वापस लेने के लिए प्रेरित करता है।
कोलेजियम द्वारा प्रस्तावित नामों में शामिल जयतोष नाम के एक व्यक्ति का हाल ही में निधन भी हो गया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि जब तक सक्षम जजों द्वारा पीठ को सुशोभित नहीं किया जाता है, तब तक कानून और न्याय की प्रक्रिया प्रभावित होती है। हम देरी के कारणों को समझने में असमर्थ हैं।
-एजेंसी