सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (13 फरवरी) को उस कानून को लागू किए जाने पर रोक लगाने से इंकार कर दिया, जो मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक पैनल के जरिए करने का प्रावधान करता है। इस पैनल में पहले की तरह भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल नहीं किए हैं।
याचिका एक NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने दायर की थी। जिसकी सुनवाई जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता ने की। बेंच ने कहा- माफ करें, हम आपको इस मामले में कोई राहत नहीं दे सकते। संवैधानिक वैधता का मामला कभी भी निरर्थक नहीं होता।
कोर्ट ने केंद्र को भी नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई अप्रैल में होगी। जहां मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम 2023 से जुड़ी बाकी लंबित याचिकाओं पर सुनवाई होनी है।
NGO की दलील- 2 चुनाव आयुक्त रिटायर होने वाले, याचिका बेकार हो जाएगी
NGO के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि कानून, सुप्रीम कोर्ट की कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच के फैसले से उलट है, जिसने निर्देश दिया था कि CJI उस पैनल में होंगे जो CEC और ECs की नियुक्ति करेगा। उन्होंने कहा कि दो चुनाव आयुक्त रिटायर होने वाले हैं। इनमें से एक अनूप चंद्र 14 फरवरी 2024 को रिटायर हो जाएंगे। यदि कानून लागू होने से नहीं रोका गया तो याचिका लगाना बेकार हो जाएगा।
संविधान के अनुच्छेद 324(2) के शून्य को भरने लाया गया नया कानून
नए कानून के खिलाफ दायर याचिका में कहा गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 324(2) के तहत बने शून्य को भरने के लिए 2023 में कानून बनाया गया था। हालांकि, विवादित धारा कानून की पिछली स्थिति को बहाल करती है यानी मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पूरी तरह से कार्यपालिका के जरिए ही की जाएगी। चयन समिति में कार्यपालिका के सदस्यों का वर्चस्व होता है यानी प्रधानमंत्री और केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, जिसे प्रधानमंत्री चुनता है।
-एजेंसी