नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फुटपाथ पर चलने के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत लोगों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा बताया। साथ ही कहा कि फुटपाथ लोगों का संवैधानिक अधिकार है। कोर्ट ने देशभर में सड़कों पर फुटपाथ के अभाव और अतिक्रमण पर राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों को आड़े हाथ लेते हुए टिप्पणी की।
जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने दिल्ली सहित सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पैदल यात्रियों के लिए फुटपाथ नहीं होने या उन पर अतिक्रमण हो जाने पर कड़ी नराजगी जाहिर की। शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पैदल चलने वालों लोगों के लिए सड़कों के किनारे फुटपाथ सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश बनाने को कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्बाध फुटपाथ होने का अधिकार निश्चित रूप से एक जरूरी विशेषता है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को 2 महीने के भीतर पैदल यात्रियों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपनी गाइडलाइंस रिकॉर्ड पर लाने का निर्देश दिया।
कहा कि पैदल यात्रियों की सुरक्षा बेहद अहम है और फुटपाथों का निर्माण और रखरखाव इस प्रकार किया जाना चाहिए कि वे दिव्यांग व्यक्तियों के लिए भी सुलभ हों। कोर्ट ने सरकार को राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड के गठन के संबंध में छह महीने का समय दिया और कहा कि और समय नहीं दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या–क्या कहा?
-सभी सार्वजनिक सड़कों पर उपयुक्त फुटपाथ बनाएं।
-फुटपाथों से अतिक्रमण हटाना अनिवार्य।
-दिव्यांगजनों के लिए फुटपाथ हो सुगम्य।
-केंद्र और राज्य सरकारें नीति बनाकर 2 महीने में रिपोर्ट दाखिल करें।
-बंबई हाईकोर्ट के दिशा-निर्देशों को आदर्श मानकर पूरे देश में अपनाया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा कि पैदल यात्रियों के अधिकारों की रक्षा के लिए क्या नीति मौजूद है। न्यायालय ने यह भी कहा कि फुटपाथों की गैरमौजूदगी में गरीब, बुज़ुर्ग, बच्चे और दिव्यांगजन सड़कों पर चलने को मजबूर होते हैं, जिससे उनका जीवन खतरे में पड़ता है। यह केवल यातायात का नहीं, बल्कि जीवन के अधिकार का सवाल है।
इस जनहित याचिका की पैरवी आगरा के युवा उद्यमी और सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत जैन ने की, जिनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन ने सुप्रीम कोर्ट में प्रभावी बहस की। याचिका में देशभर में फुटपाथों की दुर्दशा, अतिक्रमण और दिव्यांगों के लिए उनकी अनुपलब्धता की ओर न्यायालय का ध्यान खींचा गया था।
यह ऐतिहासिक निर्णय उन लाखों नागरिकों के लिए उम्मीद की एक नई किरण है, जो आज तक बुनियादी ढांचे के अभाव में जान जोखिम में डालकर सड़कों पर चलते रहे हैं।