सुप्रीम कोर्ट ने जातीय हिंसा से प्रभावित मणिपुर में इंटरनेट पर लगातार जारी प्रतिबंध के खिलाफ राज्य के दो लोगों की ओर से दायर की गई याचिका पर शुक्रवार (9 जून) को तत्काल सुनवाई से इंकार कर दिया। सभी तरह के प्रयास के बाद भी यहां स्थिति सुधर नहीं रही है। न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बेस और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की अवकाश पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के पास भी ऐसा ही एक मामला है।
सु्प्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, हाई कोर्ट पहले से ही इस मामले की सुनवाई कर रहा है तो हमें इस याचिका पर दुबारा काम करने की क्या जरूरत है? वहां सुनवाई होगी, सभी पक्षों को सुना जाएगा। आपको इसके लिए नियमित पीठ के पास जाना चाहिए।
इंटरनेट बैन को लेकर क्या बोले याचिकाकर्ता?
इंटरनेट सेवाएं बहाल करने के लिए मणिपुर के दो निवासियों विक्टर सिंह और मायेंगबाम जेम्स की ओर से उच्चतम न्यायलय में याचिका दायर की गई थी। अदालत ने राज्य में बार-बार इंटरनेट बंद किए जाने के खिलाफ याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की अवकाश पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय पहले से ही इसी तरह के मुद्दे पर विचार कर रहा है, थोड़ा इंतजार कीजिए।
पूरा मामला जानिए
बीते एक महीने से मणिपुर जातीय हिंसा की आग में झुलस रहा है। कई क्षेत्रों में अभी भी हालात नाजुक बना हुआ है। अफवाह न फैले, लोग बेवजह न भड़के, इसी चलते राज्य सरकार ने हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में इंटरनेट पर बैन लगा रखा है। मंगलवार को मणिपुर सरकार ने इंटरनेट पर 10 जून तक के लिए प्रतिबंध बढ़ा दिया था।
राज्य के बड़े अधिकारी ज्ञान प्रकाश ने स्थिति को देखते हुए कहा कि ब्रॉडबैंड सहित मोबाइल डेटा सेवाओं को 10 जून दोपहर तीन बजे तक बैन कर दिया गया है। राज्य में इंटरनेट बैन करने का फैसला पहली बार मई के पहले हफ्ते में लिया गया था।
मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैती समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में आदिवासी एकजुटता मार्च के आयोजन के बाद हिंसक झड़पें शुरू हो गई थीं। इन झड़पों में कम से कम 100 लोग मारे जा चुके हैं और हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। यहां भी राहत बचाव कार्य जारी है, 37,450 लोगों को फिलहाल 272 राहत शिविरों में रखा गया है।
Compiled: up18 News