पूरे विश्व में भारत को सोने की चिड़िया के नाम से जाना जाता था। इस बात का जिक्र हमने किताबों में भी सुना है। भारत हर तरह से संपन्न और समृद्ध था। कई लोगों के कारण देश को यह तमगा हासिल हुआ था, उन्हीं में से एक थे जगत सेठ। जगत सेठ के पास इतना पैसा था कि देशवासी तो क्या, अंग्रेज भी एक व्यापारी की तरह उनसे उधार लेते थे। जगत सेठ का असली नाम फतेह चंद था और मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह ने 1723 में उन्हें ‘जगत सेठ’ की पदवी दी थी। इसके बाद पूरा घराना ही जगत सेठ घराने के नाम से मशहूर हो गया।
सेठ माणिक चंद को इस घराने का संस्थापक माना जाता है। माणिकचंद न सिर्फ नवाब मुर्शिद कुली खां के खजांची थे बल्कि सूबे का लगान भी उनके पास जमा होता था। दोनों ने मिलकर बंगाल की नई राजधानी मुर्शिदाबाद बसाई। इन्होंने औरंगज़ेब को एक करोड़ तीस लाख की जगह, दो करोड़ का लगान भेजा था। फतेह चंद को माणिकचंद के बाद परिवार की बागडोर दी गई। फतेह चंद के समय उनका परिवार बुलंदियों पर पहुंच गया।
उनके घराने के बारे में कहा जाता था कि वे चाहे तो सोने और चांदी की दीवार बना कर गंगा की धार को भी रोक सकता था। फतेह चंद के दौर में इस घराने ने सबसे ज्यादा दौलत हासिल की और उनकी संपत्ति 1000 बिलियन पाउंड के करीब थी। रिपोर्ट्स का यह भी अनुमान है कि 1720 के दशक में ब्रिटिश अर्थव्यवस्था जगत सेठों की संपत्ति से छोटी थी।
ब्रिटिश डॉक्यूमेंट के अनुसार सेठ के पास इंग्लैंड के सभी बैंकों से ज्यादा पैसा था लेकिन कहते हैं न कि किसी को आगे बढ़ता देख कोई पसंद नहीं करता। ठीक वहीं हुआ जगत सेठ यानी फतेह चंद और उनके परिवार के साथ। अंग्रेजों ने सेठ के परिवार के साथ बहुत बड़ा धोखा किया। जगत सेठ ने अंग्रेजों को काफी बड़ा कर्ज़ दे दिया था, लेकिन बाद में अंग्रेज़ों ने इस बात से साफ मना कर दिया कि ईस्ट इंडिया कंपनी के ऊपर जगत सेठ का कोई कर्ज है। यह जगत सेठ के परिवार के साथ बहुत बड़ा धोखा था। 1912 ई. तक अंग्रेजों की तरफ से इस घराने के सेठों को जगत सेठ की उपाधि के साथ थोड़ी-बहुत पेंशन मिलती रही लेकिन बाद में यह पेंशन भी बंद हो गई।
Compiled: up18 News