विवाद, उन्माद के फेर में जनता को मूल मुद्दे से भटकाने का प्लान
धार्मिक ध्रुवीकरण से 2024 फतह करने की कोशिश पर काम
मुसलमान की भीड़ हो या हिन्दू की, उसकी हिंसा का कोई धर्म नहीं होता है। पहले या बाद के नाम पर होने वाली हिंसा का कोई तुक नहीं होगा।विगत सप्ताह शुक्रवार को उत्तरप्रदेश के कई ज़िलों में जो हुआ है, उसे नहीं होने देना चाहिए था।नाराज़गी और आक्रोश में अंतर होता है। आस्था के नाम पर नाराज़गी को आक्रोश में बदलने वाले जानते हैं कि इससे न तो आस्था बेहतर होती है, न आस्था को बदनाम करने वाले सुधरते हैं। इसके नाम पर हिंसा करने वाले दंगाई, बलवाई ही कहे जाते हैं।जिनके हाथ में पत्थर नज़र आ रहे हैं, उन्हें और तो कुछ कहा नहीं जाएगा। उनकी हिंसा से उस भीड़ को ख़ुराक मिलेगा, जो हर दिन इसी का माहौल बनाती है, इसी के ख़तरे की आशंका बहुसंख्यक के मन में बिठाती है। इन खुराकों के लेन-देन से कुछ नहीं होगा। कहीं ज़्यादा भीड़ बनेगी, कहीं कभी कम भीड़ बनेगी। कोई दस कारें जला देगी, कोई तीन कारें चला देगी। ऐसा करने वाले कानून की हर किताब में और दुनिया की हर किताब में केवल दंगाई कहे जाएंगे। किसी की प्रतिक्रिया में हिंसा करने वाला और किसी को हिंसा के लिए उकसाने वाला दंगाई ही होता है। चाहे वह बच जाए या पकड़ा जाए, दंगाई ही होता है।
वो कहकर आये थें काम-दाम और जनता को आराम दिलाने। यानी काम रोजगार देने रोजमर्रा की चीजों के दाम कम करने ताकि जनता को महंगाई बेरोजगारी से आराम मिल सके। मगर जब वो नाकाम हो गयें तो अपनी कमियों को छुपाने के लिये लगें धर्म, जात, जमात के पासे फैलाने। और खेलने लगें भावनाओं और ध्रुवीकरण का खेल। ताकि लगातार उनका सत्ता से होता रहे मेल।
हम बात मोदी सरकार की । जिनके आठ साल की उपलब्धियों में मंदी महंगाई बेरोजगारी अपने चरम पर है। और आगे सत्ता का साथ बरकरार रखने के लिये वह विवाद फ़साद उन्माद के अप्रत्यक्ष प्रयोजन में लगी हुई है। मेरी बात अटपटी जरूर लग रही होगी मगर तनिक भी ध्यान देंगे तो पायेंगे कि मोदी सरकार धार्मिक आधार पर बांटने और उसी के बल पर राज करना चाहती है। मोदी सरकार की इसी सोच का नतीजा है कि हिन्दू मुस्लिम के साथ ही दलित पिछड़े समुदाय के लोगो को भी भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा है। मगर मोदी सरकार को क्या फर्क पड़ता है। वह तो दलितों पिछड़ों के बीच फुट डालो टूट डालो, राज करो के साथ उन्हें ही अल्पसंख्यकों के प्रति उकसावे का भी हथियार बनाती है।
ताकि धार्मिक बहसबाजी चलती रहे। और धार्मिक ध्रुवीकरण होता रहे। दरअसल मोदी सरकार जनअपेक्षाओं पर बुरी तरीक़े से फेल हो चुकी है। मंदी महंगाई बेरोजगारी उसे चुनौती दे रहे हैं। लिहाजा धार्मिक ध्रुवीकरण मोदी सरकार के लिये संजीवनी बन चुकी है। देखा जाय तो धर्म के नाम पर उपजे तनाव या कट्टरता की ख़बरें लगातार बढ़ती जा रही हैं। सोशल मीडिया से लगायत हर जगह दूसरे धर्म के प्रति नकरात्मक टिप्पणी और घृणात्मक आरोपों का बाढ़ आ चुकी है। इस समय वह भी धार्मिक मुद्दों पर उलझे बैठे हैं जिनके विमर्श में अक्सर जनता की जरूरतें और मूलभूत चीजें रही हैं। दरअसल यही तो मोदी सरकार का कमाल है कि वह जाल ऐसा बुनती है कि लोग खुद ब खुद फंस जाते हैं। और मोदी सरकार के एजेंडे यानी धार्मिक विवाद दूसरे समुदाय से नफरत टिपण्णी के रास्ते पर बढ़ जाते हैं। अंततः वह मोदी सरकार की तमाम कमियों को नजरअंदाज करके धर्म के नाम पर मोदी सरकार के पक्षधर बन जाते हैं। यही मोदी सरकार चाहती है।
हालांकि राजनीतिक स्तर पर मोदी सरकार को लाभ है। प्रतिकूल असर यह है की वैश्विक स्तर पर देश की लोकतांत्रिक छवि पर धक्का लग रहा है। जिस कारण विदेशी निवेश, आयात निर्यात पर्यटन यानी देश का आर्थिक ढांचा डगमगा रहा है। मगर क्या फर्क पड़ता है..?2024 में अगर धार्मिक ध्रुवीकरण से सत्ता मिलती है तो क्या दिक्कत है। देश बर्बाद हो अपनी बला से। आज देश के कई हिस्सों में हो रहे दंगे यह साबित करते हैं कि मोदी सरकार अपने धार्मिक ध्रुवीकरण के एजेंडे पर काम कर रही है। अब समझना जनता को है कि क्या वह मोदी सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाती है। या इन सबको नकार कर जनमुद्दों पर अपनी प्रतिबद्धता जताती है।
साभार- अचूक संघर्ष