देश के एक महान वैज्ञानिक शंकर अबाजी भिसे का निधन 7 अप्रैल 1935 को हुआ था। उन्होंने करीब 200 आविष्कार किए जिनमें से 40 का उनके नाम पेटेंट है। उनके आविष्कारों की वजह से अमेरिका के लोग उनको ‘एडिसन ऑफ इंडिया’ भारत का एडिसन कहते थे
बचपन से ही विज्ञान के प्रति लगाव
डॉ. शंकर अबाजी भिसे का जन्म 29 अप्रैल 1867 को बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था। बचपन के दिनों से ही विज्ञान के प्रति उनका काफी लगाव था। 14 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने घर में ही कोल गैस बनाने वाले एक उपकरण को बनाया। 16 साल की उम्र में उन्होंने आविष्कार के लिए इंग्लैंड या अमेरिका जाने का फैसला किया।
ऑप्टिकल इलूजन पर काम
1890-95 के दौरान उन्होंने ऑप्टिकल इलूजन पर काम किया। उन्होंने एक ठोस पदार्थ के दूसरे ठोस पदार्थ में परिवर्तित होने की प्रक्रिया का प्रदर्शन किया। उन्होंने इंग्लैंड के मैनचेस्टर में इस तरह के शो का आयोजन किया। यूरोपीय लोगों ने जो आविष्कार किए थे, उनकी तुलना में भिसे के आविष्कार को श्रेष्ठ माना गया। अल्फ्रेड वेब नाम के वैज्ञानिक ने उनकी तारीफ की और उनको इस वजह से एक गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया।
वजन और पैकिंग के लिए ऑटोमेटिक मशीन
जब वह मुंबई में रहते थे तो उन्होंने एक साइंस क्लब की स्थापना की थी। वह मराठी में एक विज्ञान पत्रिका का प्रकाशन करते थे। पत्रिका का नाम विविध कला प्रकाश था। उसके माध्यम से वह आम भाषा में आम लोगों को विज्ञान का महत्व समझाते थे। उसी दौरान लंदन से प्रकाशित होने वाली एक पत्रिका में एक आविष्कार के लिए प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता वजन और पैकिंग के लिए एक ऑटोमेटिक मशीन बनाने के लिए थी। एक ऐसी मशीन बनानी थी जो खुद आटा, चावल या चीनी के ढेर में से एक निर्धारित मात्रा (जैसे 500 ग्राम या 1 किलोग्राम) को उठाकर उसकी पैकेजिंग कर दे। भिसे ने जो डिजाइन बनाकर भेजा, उसे सबसे अच्छा माना गया। इससे भिसे की मार्केट में आविष्कारक के तौर पर पहचान बन गई।
सबसे अहम आविष्कार
भिसे का सबसे प्रसिद्ध आविष्कार टाइप सी कास्टिंग और कम्पोजिंग मशीन थी। उन दिनों की टाइप-सी कास्टिंग मशीन बड़ी धीमी रफ्तार वाली होती थी। भिसे ने एक ऐसी टाइप कास्टिंग मशीन बनाई जिससे छपाई की रफ्तार काफी तेज हो गई। लंदन के कुछ इंजिनियरों को उनके आविष्कार पर भरोसा नहीं हुआ और उनको चुनौती दी। उन्होंने 1908 में उन्होंने एक ऐसी टाइप कास्टिंग मशीन बनाई जिसकी मदद से हर मिनट 1200 अलग-अलग अक्षरों की छपाई और असेंम्बलिंग हो सकती थी। उसके बाद उनके आलोचक भी उनकी प्रतिभा को लोहा मान गए।
अमेरिका की यात्रा
पहले विश्व युद्ध के दौरान कुछ समय के लिए वह अमेरिका भी गए थे। वह उनका संपर्क लाला लाजपत राय से हुआ। लाला लाजपत राय ने उनको ऐसे ज्यादा से ज्यादा आविष्कार के लिए प्रेरित किया। वहां उन्होंने छपाई में इस्तेमाल होने वाली एक मशीन को सिर्फ तीन दिन में तैयार कर दिया।
अन्य आविष्कार
टाइप कास्टर के अलावा उन्होंने कई और काम की चीजों का आविष्कार किया। उन्होंने केमिस्ट्री और इलेक्ट्रिसिटी की फील्ड में भी काम किया। उन्होंने 1917 में एक तरह का साबुन बनाया। उन्होंने इसके सारे अधिकार एक अंग्रेजी कंपनी को बेच दिए। उन्होंने हवा से गैसों को अलग करने वाला एक इलेक्ट्रिकल गैजेट भी बनाया था। उन्होंने एक ऐसा इंजन भी बनाया था जो सीधे सूर्य के प्रकाश से इलेक्ट्रिकल एनर्जी हासिल करता था।
दवा का आविष्कार
उन्होंने ‘ऑटोमोडिन’ नाम की एक दवा बनाई थी जिसका पहले विश्व युद्ध में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हुआ। इस दवा को ऐंटिसेप्टिक के तौर पर बेचा गया। वह इस दवा को बनाने के लिए भारत में एक कंपनी खोलना चाहते थे लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई।
-एजेंसियां
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