सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार और राज्य चुनाव आयोग को राज्य में स्थानीय निकायों की चुनाव प्रक्रिया के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मामले की विस्तृत सुनवाई की जरूरत है और अंतिम निपटान के लिए एक अलग विशेष पीठ का गठन किया जाएगा, जिसमें न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति जेबी. पारदीवाला शामिल होंगे।
शीर्ष अदालत महाराष्ट्र सरकार की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पहले के आदेश को वापस लेने की मांग की गई है। आदेश में राज्य चुनाव आयोग को 367 स्थानीय निकायों में ओबीसी को आरक्षण प्रदान करने के लिए चुनाव प्रक्रिया को फिर से अधिसूचित नहीं करने का निर्देश दिया गया था।
पीठ ने कहा, “मामले की विस्तृत सुनवाई की जरूरत है। इसके मद्देनजर हम पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश देते हैं। मामले को पांच सप्ताह के बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करें।”
महाराष्ट्र सरकार ने 28 जुलाई के आदेश को वापस लेने या संशोधित करने की मांग की थी, और राज्य चुनाव आयोग को 367 स्थानीय निकायों में से 96 स्थानीय निकायों, यानी 92 नगरपालिका परिषदों और चार नगर पंचायतों के लिए चुनाव कराने का निर्देश भी दिया था।
शीर्ष अदालत ने 28 जुलाई को राज्य चुनाव आयोग को चेतावनी दी थी यदि ओबीसी को आरक्षण देने के लिए 367 स्थानीय निकायों के लिए चुनाव प्रक्रिया फिर से अधिसूचित करता है, जहां प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है, तो उस पर अवमानना कार्रवाई की जाएगी।
राज्य सरकार ने तर्क दिया था कि संवैधानिक योजना के तहत ओबीसी को राजनीतिक आरक्षण देना उचित समझा गया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सरकार के अंदर उनका विधिवत प्रतिनिधित्व हो और उनकी आवाज सुनी जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने 20 जुलाई को महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण लागू करने के लिए बंथिया आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था और निर्देश दिया था कि राज्य में स्थानीय निकायों के लिए चुनाव अगले दो सप्ताह में अधिसूचित किया जाए।
28 जुलाई को शीर्ष अदालत ने कहा था कि जब ओबीसी आरक्षण की अनुमति दी गई थी तब मतदान कार्यक्रम पहले ही अधिसूचित किया गया था और उन निकायों के लिए चुनाव ओबीसी आरक्षण के बिना होना चाहिए। इसने कहा था कि राज्य चुनाव आयोग चुनाव में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
शीर्ष अदालत ने दिसंबर 2021 में फैसला सुनाया था कि स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जाएगी, जब तक कि सरकार शीर्ष अदालत के 2010 के आदेश में निर्धारित ट्रिपल टेस्ट को पूरा नहीं करती।
-एजेंसी
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