भाजपा का दलित प्यार, मने वोटों का त्यौहार
“चुनावी प्यार” जताने से समानता नहीं आयेगी, बल्कि रोटी-बेटी रिश्ता ही बदलाव लाएगी
वाराणसी। चुनावी सीजन में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक दलित परिवार के साथ भोजन किया। वहीं गोरखपुर के सांसद रवि किशन भी इसमें पीछे नहीं रहें वह भी एक दलित के घर भोजन करते हुऐ तस्वीर शेयर करते हैं। जिसमें उनके सामने डिस्पोजल गिलास में पानी रखा गया है,और दूसरे व्यक्ति जिसको रविकिशन लिखते हैं कि “आज दलित भाई के यहां भोजन किया” उस व्यक्ति के सामने लोटे में पानी रखा है। मने दलित के घर भोजन मगर बर्तन इस्तेमाल डिस्पोजल..?
दरअसल नेताओं का एक बड़ा पुराना दिखावापन है कि वह हर चुनावी मौसम में बदहाल से दिखने वाले गरीबों और दलितों के यहां जाकर भोजन करते हैं। और उसे मीडिया के माध्यम से ऐसे प्रचारित करवाते हैं जैसे दलित किसी दूसरे ग्रह का प्राणी हो जिसके साथ भोजन करके वह वीरता प्रगट कर रहे हों, या अहसान। अगर बीजेपी की बात करें तो इसके लिये बाकी समय में दलित हिन्दू रहता है, मगर चुनावी सीजन में वह दलित हो जाता है.
याद होगा की कभी दलितों के घर भोजन करने पर इस कार्य को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी “गरीब टूरिज्म” कहकर दूसरे नेताओं पर तंज कसते थें। लेकिन आज उसके ही नेता वोटों के लिये “गरीब टूरिज्म” के आयोजक प्रयोजक बन गये हैं। दरअसल राजनीति में दलितों को मात्र तेजपत्ता की तरह इस्तेमाल करने की परंपरा राजनीतिक दलों की बन गयी है। यह नेता सत्ता के स्वाद के लिये दलितों को तेजपत्ता की तरह सियासत की कढ़ाई में डालते हैं। और सत्ता स्वाद मिलते ही दलितों को चूसकर बाहर कर देते हैं।
वर्तमान राजनीतिक के बदलते घटनाक्रम में भाजपा से पिछड़ों दलितों का महोभंग हो चुका है। जिससे उसके रणनीतिकारों के पेशानी पर बल है, इसलिए वह चाहते हैं कि दलितों के घर भोजन का आयोजन कर वह उनको लुभा लेंगे। जबकि वर्तमान सरकार में मंदी मंहगाई से इन्हीं दलितों पिछड़ों गरीबों की हालत खराब है। रही बात सामाजिक समरसता और न्याय की तो जब तक दलितों के घर अन्य जातियों के लोग रोटी बेटी का सम्बंध रखते हुये उनके यहां अपने बेटा बेटी को नहीं ब्याहेंगे तब तक अस्पृश्यता का भाव नहीं खत्म होने वाला है। और सामाजिक न्याय यह कहता है कि दलितों के साथ सामाजिक-आर्थिक भेदभाव न हो। मगर क्या यह लगता है कि योगी सरकार में दलितों के साथ भेदभाव नहीं हुआ है…? अगर नहीं हुआ है तो आखिरकार चुनाव में इन नेताओं को समानता और सामाजिक न्याय दिखाने के लिये दलित के घर खाना खाने क्यों जाना पड़ा..? जाहिर सी बात है कि ऐसा हुआ होता तो दिखाना नहीं पड़ता।
अगर वाकई गरीबों दलितों के प्रति जो रहनुमाई दिखाये, तो क्यों उनसे रोटी बेटी का रिश्ता बनाये। वरना यह माना जायेगा कि जब भी दलितों के घर भोजन होता है। समझ जाओ की वोटों के लिये यह प्रयोजन होता है।
-सोनिका मौर्या-