राहुल गांधी के जीवन को अब हम दो भागों में बांट सकते हैं, भारत जोड़ो यात्रा से पहले और बाद के राहुल गांधी। राहुल गांधी में हुए बदलावों को पूरा देश देख रहा है और भारतीय लोकतंत्र के लिए यह सही भी है।
7 फरवरी को हुए लोकसभा के बजट सत्र में राहुल गांधी ने लगभग तीन घण्टे लम्बा भाषण दिया था और भाजपा सरकार पर कई निशाने साधे। उन्होंने अडानी को लेकर सरकार को घेरा तो अपनी भारत जोड़ो यात्रा से मिले अनुभवों का भी हवाला दिया।
इसके छह दिन बाद अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड में राहुल गांधी ने कहा कि इस देश में हर किसी के लिए संसद की कार्यवाही देखना कि देश में क्या हो रहा है, महत्वपूर्ण है।
उन्होंने संसद पर बोले अपने शब्दों के बारे में यह भी कहा था कि मुझे उम्मीद नहीं है कि मेरे शब्दों को रिकॉर्ड पर जाने दिया जाएगा।
पीएम द्वारा उनका नाम नेहरू न होकर गांधी रखे जाने की बात पर राहुल ने कहा कि देश के पीएम सीधे तौर पर मेरा अपमान करते हैं लेकिन उनकी बातों को ऑफ द रिकॉर्ड नहीं किया जाता।
Wayanad, Kerala| I don’t expect my words will be allowed to go on the record. The PM of the country directly insult me but his words are not taken off the record. He said why is your name Gandhi & not Nehru: Rahul Gandhi, Congress
— ANI (@ANI) February 13, 2023
राहुल अब पहले से एकदम अलहदा व्यक्ति हैं।
अपनी बात को इतनी मजबूती से रखते हुए पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को देश की जनता ने शायद ही पहले कभी देखा था।
भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल में यह बदलाव देखने को मिला है। यह यात्रा अन्याय के खिलाफ भारत के लोगों की आवाज को एकजुट करने का आंदोलन था, जिसमें राजनीतिक दल, सामाजिक कार्यकर्ता ,लेखक, कलाकारों व आम लोगों द्वारा महंगाई ,बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठाई गई। यह यात्रा कन्याकुमारी से शुरू होकर कश्मीर तक गई थी, जिसमें 12 राज्यों से होते हुए लगभग 4000 किलोमीटर का सफर तय किया गया। दक्षिण में अन्य राजनीतिक पार्टियों के समर्थन तो उत्तर भारत की विपक्ष पार्टियों की दूरी के बावजूद यह यात्रा जहां से भी गुजरी इसमें आम आदमी की भागीदारी जमकर रही। राहुल गांधी में इस यात्रा के दौरान एक नेता के तौर पर काफी निखार देखने को मिला, वह कर्नाटक में यात्रा के शुरुआती दिनों में बारिश के दौरान बोलते दिखे तो यात्रा के अंतिम दिनों में वह जम्मू में जनवरी की बर्फबारी में बोल रहे थे।
इस यात्रा में चलते हुए राहुल गांधी ने क्षेत्रीय लोगों की समस्याओं को जाना और उन पर चर्चा भी करी, जैसे उत्तर भारत में यात्रा के दौरान वह इतिहासकार शेखर पाठक से मिले और उन्होंने जोशीमठ समस्या पर चर्चा की।
मीडिया के साथ भी राहुल गांधी का नया संबंध देखने को मिला हालांकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर राहुल गांधी इस यात्रा पर कवरेज बहुत कम हो रही थी, लेकिन न्यूज़ वेब पोर्टल और यूट्यूब चैनल चला रहे कई सारे पत्रकार राहुल गांधी की इस यात्रा को जोर शोर से कवर कर रहे थे। यात्रा में राहुल गांधी ने अपनी ऐसी छवि बनाई कि पत्रकार उनसे खुलकर बात कर सकते हैं, कई पत्रकार उनके साथ चलते हुए साक्षात्कार ले रहे थे। हरियाणा में राहुल गांधी ने कहा भी कि मुझसे जो भी सवाल पूछना चाहते हैं पूछ सकते हैं , उन्होंने एक सवाल पर यह भी कहा कि ‘ऐसा सवाल मोदी से पूछने की हिम्मत है।’
6 फरवरी को दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में चल रहे ‘भारत जोड़ो अभियान’ के सम्मेलन में थोड़े समय के लिये आए राहुल गांधी पर वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह कहते हैं कि वहां दिखे राहुल पहले से एकदम अलहदा व्यक्ति थे, अपने व्यक्तित्व में भी और वक्तव्य में भी। हम अभिजात वर्ग से आये किसी व्यक्ति को दो तरह से देखते हैं या तो उसकी चरण वन्दना करने में जुट जाते हैं या फिर उसे राहुल गांधी की तर्ज पर ‘पप्पू’ सिद्ध करने में जुटे रहते हैं। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि संवेदना किसी की बपौती नहीं होती। नाज-नखरों में पला राजसी खानदान में पैदा व्यक्ति भी अतिशय संवेदना सम्पन्न हो सकता है और जीवन में अतीव संघर्ष कर शक्ति प्राप्त करने वाला व्यक्ति भी क्रूर और संवेदनाशून्य हो सकता है। लगभग पाँच महीने में चार हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा में तपे राहुल गांधी उस रोज धैर्य, संवेदना और सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति लग रहे थे। वे तार्किक और तथ्यसम्मत थे, मगर अपने आलोचकों के प्रति कटु कतई नहीं थे।
उस रोज उन्होंने बहुत सी ऐसी बातें कहीं, जो हृदय को छू जाने वाली थी। मसलन गैंगरेप पीड़ित महिलाओं का उनके साथ चुपचाप अपनी पीड़ा बांट जाना, कश्मीरियों का यह कहना कि बाकी भारत के लोग उनसे नफरत क्यों करते हैं। एक अजीब सी जो बात उन्होंने कही, उस पर लोगों का ध्यान कम गया होगा। उन्होंने कहा कि उनका डेढ़ कदम कांग्रेस के भीतर है और आधा कदम कांग्रेस से बाहर।
यह आधा कदम ही उन्हें कांग्रेस में रहते हुए भी कांग्रेस से अलग करता है, वरना कांग्रेस है क्या? ऊपरी स्तर पर आपस में लड़ते हुए भ्रष्ट व महत्वाकांक्षी लोगों का एक गिरोह और निचले स्तर पर राजनीति को ठेकेदारी या अन्य मलाईदार धन्धों का शॉर्टकट समझने वालों की एक जमात! आम जनता के साथ उसका कोई तालमेल नहीं है। जनता के वास्तविक और स्थानीय मुद्दों से उसका कोई सरोकार नहीं है। चुनाव की राजनीति करने वाले सभी दलों का एक ही चरित्र है और कांग्रेस उससे कतई जुदा नहीं है। कहा जाए तो कांग्रेस और भाजपा में कोई विशेष अन्तर नहीं रह गया है, भ्रष्टाचार के मामले में दोनों एक जैसे हैं। कहने को भाजपा अंध राष्ट्रवाद वाली पार्टी है और कांग्रेस धर्म निरपेक्ष। मगर यदि सचमुच ऐसा है तो क्यों इन दो दलों में लोग इतने सहज ढंग से एक दूसरे में आना-जाना करते रहते हैं ? क्या आजादी के आन्दोलन की विरासत संभालने का दावा करने वाली कांग्रेस से अंध राष्ट्रवाद वाली भाजपा में जाने वालों को जरा भी अटपटा नहीं लगता। इसके उलट भी कहा जा सकता है कि भाजपा से कैसे लोग इतने आराम से कांग्रेस में आ सकते हैं।
गांधीवादी कनक तिवारी की नजरों में भारत जोड़ो यात्रा से क्या कुछ बदला है।
राहुल गांधी के निजी जीवन पर लोगों की इतनी रुचि कभी नहीं रही ,जितनी इस यात्रा के दौरान देखने को मिली। यात्रा में उनके रहने की जगह, उनके कपड़े ,उनका खाना, रंग रूप चर्चा का विषय बना रहा। ‘कर्ली टेल्स’ को अपने निजी जीवन पर दिया गया राहुल गांधी का इंटरव्यू यूट्यूब पर अब तक लगभग नौ लाख बार देखा जा चुका है।
गांधीवादी कनक तिवारी भारत जोड़ो यात्रा पर बेहद करीब से नज़र बनाए हुए थे, उन्होंने ‘शतदल रेडियो’ से अपनी बातचीत में राहुल गांधी के प्रति बढ़ रहे आकर्षण के कारणों पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के अंदर पद का लालच नही दिखता, उन्होंने पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ा और फिर उसे पाने का प्रयास नही किया।
अपने पिता के हत्यारों को माफ करना बहुत बड़ी बात है, जिस पर लोगों का ज्यादा ध्यान नही गया।
भारत जोड़ो यात्रा से हुए बदलाव पर कनक तिवारी कहते हैं कि राहुल गांधी पैदल चलकर लोगों से मिलने वाली खत्म होती राजनीतिक प्रथा पर वापस लौटे हैं। दिन में चार बार कपड़े बदलने की जगह पच्चीस किलोमीटर पैदल चलने को कोई भी दिखावा नही कह सकता है।
उन्होंने मतदाताओं को सम्मान देते हुए ‘स्पर्श’ को महत्व दिया। राजनीति में स्पर्श बहुत महत्व रखता है, आजकल आप विधायकों को भी स्पर्श नहीं कर सकते पर मतदाता यहां पर राहुल गांधी जैसे बड़े नेता को स्पर्श कर रहे थे।
यह यात्रा जनतांत्रिक भावना से की गई यात्रा थी, जो किसी पार्टी के खिलाफ नही थी, इसमें जनता के मुद्दे सड़क पर उठाए गए। जिसमें बढ़ती महंगाई ,बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महिला सुरक्षा पर बात की गई। इस यात्रा का शायद बाद में वोट बैंक पर कोई असर न पड़े पर लोकतंत्र में वोट बैंक महत्व नही रखता, लोकतंत्र में लोकतंत्र की भावना बढ़ने का महत्व है।
राहुल का नया नजरिया ही सत्ता पक्ष की परेशानी है।
इस यात्रा के चलते हुए और इस यात्रा के बाद भी सत्ता पक्ष को राहुल गांधी के बयानों का जवाब ढूंढते नहीं मिला। यात्रा के दौरान सत्ता पक्ष राहुल गांधी की टीशर्ट के बारे में सवाल करती रही तो उसके जवाब में राहुल गांधी ने जम्मू कश्मीर में कहा कि सफेद शर्ट का रंग बदल दें, लाल कर दें। संसद में भी राहुल गांधी की भ्र्ष्टाचार पर की गई ठोस बातों का भी सत्ता पक्ष के पास कोई जवाब नहीं रहा जबकि वह राहुल गांधी पर निजी तौर पर हमला करते रहे।
यह सब राहुल गांधी के अंदर इस यात्रा से उत्तपन्न हुए नए नजरिए का परिणाम दिखता है।
रंगमंच, हिंदी फिल्मों और वेब सीरीज के जानेमाने कलाकार अरुण कालरा से भारत जोड़ो यात्रा के बाद से राहुल गांधी के इस नए नजरिए पर बात की गई, साथ ही उनसे भारत जोड़ो यात्रा के समर्थन का कारण भी पूछा गया। इस पर उन्होंने कहा कि मुझसे कुछ लोग बोलते हैं आप भारत जोड़ो यात्रा का समर्थन करते हैं तो आप कांग्रेसी हैं और ये यात्रा महज एक मजाक भर है। यात्रा से भला क्या देश जुड़ेगा और इस यात्रा से राहुल गांधी ने कुछ नही सीखा है, वो तो वैसी ही अजीबोगरीब बाते कर रहे हैं ,जैसे पहले करते थे।
मेरी समझ में भारत जोड़ो यात्रा आज की मतलब परस्ती की राजनीति से अलग हो कर एक ऐसा संदेश देशवासियों तक पहुंचाने की चेष्टा है, जिसे कुछ दल हमारे ज़हन से मिटाना चाहते हैं और वो संदेश है भाईचारे का।
इस देश में रहने का असली मजा यही है कि इसमें अनेकता में एकता है और सब साथ मिल कर रहते हैं।
यह बात चाहे राहुल गांधी करें या कोई भी अन्य व्यक्ति, मैं उसके साथ डट कर खड़ा हूं।
भारत जोड़ो यात्रा यह दिखाने का एक प्रतीक है कि अब भी हमारे मुल्क में ऐसी सोच के लोग हैं जो आपसी मोहब्बत में यकीन रखते हैं, बांटने की जगह जोड़ने में यकीन रखते हैं। जिस प्रकार से करोड़ों लोग इस यात्रा में शामिल हुए उससे साफ पता चला है कि भले ही एक पार्टी चुनाव के लिए पूर्ण बहुमत प्राप्त कर ले पर वो असली बहुमत नहीं, वो बस बेहतरीन चुनावी रणनीति का हिस्सा है।
एक बात यह भी सच है कि राहुल गांधी ने इस यात्रा या अपने पिछले अनुभवों से कुछ सीखा हो या ना सीखा हो पर उन्होंने मीडिया का सामना करना तो सीख ही लिया है।
जरूरी नही कि उनके पास सब सही जवाब हों पर कम से कम मुश्किल प्रश्नों का सामना करने की दिलेरी तो अब उनमें दिखती ही है।
मुझे लगता है उनकी यह दिलेरी और नया नजरिया ही सत्ताधारी दल के लोगों के बीच परेशानी का कारण है।
-up18news
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