नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री अपनी तीसरी पारी की शुरुआत कर चुके हैं। उनकी पार्टी बीजेपी इस बार बहुमत से दूर रह गई। बीजेपी को इस चुनाव में 240 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। जबकि 2019 और 2014 में बीजेपी को क्रमशः 303 और 282 सीटें मिलीं थी। चुनाव में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं होने के कारण विपक्षी और आरएसएस बीजेपी और पीएम मोदी पर जमकर हमला बोल रहे हैं।
मोहन भागवत ने 10 जून को सेवक को अंहकार नहीं पालने और काम करने का संदेश दिया था। इसके साथ ही उन्होंने सेवक की परिभाषा भी बताई। ऐसे में अब ये अटकलें लगाई जा रही हैं कि संघ बीजेपी के रवैये से खुश नहीं है। वहीं दूसरी ओर बीजेपी समर्थक ये दलील दे रहे हैं कि उन्हें पीएम मोदी और भागवत के रिश्ते के बारे में कुछ भी नहीं पता है।
पीएम मोदी का भागवत से रिश्ता!
समर्थकों की दलील है कि जो लोग संघ और बीजेपी के बीच लोकसभा चुनाव के बाद मतभेद की बातें कर रहे हैं। उन्हें पीएम मोदी और मोहन भागवत के पुराने और गहरे रिश्ते को समझने की जरूरत है। दोनों के बीच गुरु भाई का संबंध है। मोहन भागवत के पिता मधुकर राव जी मोदी को मानस पुत्र मानते थे। पीएम मोदी जब 20 साल के थे तो मधुकर जी के संपर्क में आए थे। वह उनके साथ नागपुर में एक महीने के प्रशिक्षण शिविर में रहे। यहीं से उनके बीच पिता-पुत्र जैसा रिश्ता बन गया। मौजूदा सरसंघचालक मोहन भागवत मधुकर राव जी के बेटे हैं।
मधुकर राव जी को गुजरात में संघ की नींव स्थापित करने के लिए जाना जाता है। पीएम मोदी ने सालों पहले ‘ज्योतिपुंज’ नाम से एक पुस्तक लिखी थी। यह हिंदी में उपलब्ध है। इस किताब में पीएम मोदी ने ऐसे आरएसएस प्रचारकों के बारे में लिखा है, जिन्होंने उन्हें बहुत अधिक प्रभावित किया। इन्हीं में मधुकर राव भागवत का नाम भी शामिल है।
पुस्तक में कई प्रचारकों का जिक्र
ज्योतिपुंज में नरेंद्र मोदी ने संघ के कई प्रचारकों का जिक्र किया है। इसमें मौजूदा संघ प्रमुख मोहन भागवत के पिता, डॉ. प्राणलाल दोशी, लक्ष्मणराव इनामदार, अनंतराव काले, केशवराज देशमुख, बाबू भाई ओझा, नाथाभाई झगड़ा तथा बचुभाई भगत जैसे नाम शामिल हैं। 16 साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पुस्तक का जब लोकार्पण हुआ था तो मौजूदा संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ साध्वी ऋतम्भरा उस कार्यक्रम में मौजूद रही थीं। उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल रहे नरेंद्र मोदी ने कहा था कि एक कल्पना जगत से लिखी हुई चीज और एक अनुभव जगत से लिखी हुई चीज के साथ एक प्रत्यक्ष हिस्सेदारी से लिखी गई चीजों में बहुत फर्क होता है।
मोदी के जीवन पर गहरा प्रभाव
पीएम मोदी ने मौजूदा सरसंघचालक मोहन भागवत के पिता के बारे में लिखा है कि उनके पहनावे में मराठी-गुजराती की छाप थी। मधुकर राव से मिलने के बाद लगता था कि वे हमारे अंदर समा गए हैं। जैसे दूध चीनी में घुल जाती है। मोदी आगे लिखते हैं कि गुजरात हमेशा श्रद्धेय मधुकर राव का ऋणी रहेगा। गुजरात में संघ की पहचान न के बराबर थी। ऐसे वक्त पर उन्होंने पूरी जवानी खपा दी।
पीएम मोदी ने इस पुस्तक में लिखा है कि महाराष्ट्र के नागपुर के पास चंद्रपुर में जन्मे मुधकर राव के पिताजी नारायण राव भागवत एक प्रसिद्ध वकील थे। 1929 में वह स्वयंसेवक बने। मोदी आगे बताते हैं कि मधुकर राव गुजरात में सबसे पहले सूरत आए। उन्होंने वहां शाखा प्रारंभ की। इसके बाद उन्होंने वड़ोदरा और कर्णावती (अहमदाबाद) में शाखा प्रारंभ की थी।
मोदी लिखते हैं कि 1943-44 में लालकृष्ण आडवाणी जैसे अनेक स्वयंसेवकों को मधुकर राव के पास शिक्षण लेने का अवसर मिला। मातजी के स्वर्गवास के बाद उन्होंने परिवार के आग्रह पर गृहस्थ जीवन स्वीकार किया था। विवाह के कुछ दिनों बाद उनके पिता का निधन हुआ, लेकिन वे गृहस्थ प्रचारक के तौर सक्रिय रहे और उनका गुजरात से नाता बना रहा। बाद में उन्होंने अपने बेटे को मोहन भागवत को राष्ट्र के लिए समर्पित किया। ऐसे वक्त पर संघ और पीएम मोदी के बीच दूरियों का जिक्र हो रहा है तब यह किताब सुर्खियों में है।
Compiled by up18News
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