INDIA को कांग्रेस की रफ्तार से नहीं चलना चाहिए। कांग्रेस की रफ्तार धीमी है। लोकसभा चुनाव में कम समय बचा है। केवल 200 दिन। करीब सात महीने।
इन्डिया को अन्य क्षेत्रीय दलों की तरह तेज फैसले लेना होंगे। अभी तक संयोजक नहीं बना है। 11 सदस्यीय समिति का भी कहीं पता नहीं है। विपक्षी दलों की पहली बैठक हुए सवा महीना गुजर गया है। माहौल तब से ही बनना शुरू हो गया। मगर राजनीति में और खासतौर से प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के मुकाबले के लिए ग्राउन्ड वर्क बहुत करने की जरूरत है। मोदी पिछले आठ- नो महीने में 8 बार राजस्थान गए हैं। और अमित शाह पिछले दो हफ्तों में तीसरी बार रविवार को मध्य प्रदेश में थे।
उसके बरअक्स आप देखिए की वही राहुल जिन्होंने गुजरात के 2017 के चुनाव में भाजपा को सौ के नीचे रोक दिया था। खुद 77 सीटें और सहयोगियों सहित 80 सीटें जीत गए थे पिछले साल 2022 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक बार गुजरात गए। प्रियंका गई नहीं। नतीजा वहां कांग्रेस 77 से 17 पर आ गई।
कांग्रेस धीमी ही नहीं चलती कभी रुक भी जाती है। 2014 के चुनाव से पहले रुक गई थी। हथियार डाल दिए थे। और फिर कभी 2014 की हार की समीक्षा भी नहीं की। हार को इतनी सहज स्वाभाविक लिया जैसे धार्मिक प्रवचनों में कहा जाता है कि क्या रखा है दुनिया में! क्या लाए थे, क्या ले जाओगे। दुनिया माया है। या और थोड़ा भारी शब्दों में कह दें तो वीतरागी।
लेकिन फिर 2017 में अध्यक्ष बनने के बाद राहुल जोश में आए। गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान चुनाव बहुत दम से लड़े। हर जगह बहुत बढ़िया नतीजे आए। गुजरात छोड़कर बाकी सब जगह सरकार बनी। साबित हुआ कि मेहनत बेकार नहीं जाती है। लेकिन इन सफलताओं से कांग्रेस के नेताओं में ही खलबली मच गई। राहुल का कामयाब होना और उससे ताकतवर होना उन्हें अपने व्यक्तिगत हित में नहीं लगा। कांग्रेस के नेताओं की राजनीति यह होती है कि वे ताकतवर रहें। कांग्रेस कमजोर रहे। नेतृत्व ( गांधी नेहरू परिवार) श्रीहीन हो जाए। उन्हें कोई मतलब नहीं। कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या हमेशा से क्षत्रपों को काबू करने की रही है। इन्दिरा गांधी ने सबको अपनी लिमिट में रखा था। प्रधानमंत्री मोदी भी यही कर रहे हैं। राजस्थान में वसुन्धरा राजे को कोई भाव नहीं दिया जा रहा है। मध्य प्रदेश में शिवराज की कुर्सी हिल रही है। इतनी मेहनत करने के बाद भी अभी कोई भरोसा नहीं है कि भाजपा उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी या कोई नया चेहरा अचानक दे देगी। भाजपा के नेताओं में शिवराज जितनी मेहनत करने वाला दूसरा कोई नेता नहीं है। लगातार 20 साल से कर रहे हैं। मगर निश्चिंत नहीं है। भाजपा का हाईकमान हमेशा तलवार लटका कर रखता है। आज की राजनीति में चलता ही यही है। उद्धव ठाकरे और शरद पवार नहीं कर पाए तो दोनों जगह टूट हो गई। मगर लालू और उनके बाद तेजस्वी दम से पार्टी चला रहे हैं तो सबसे ज्यादा उनके यहां टोह मारने के बावजूद भाजपा को और उससे पहले नीतीश को भी कोई कामयाबी नहीं मिली। ऐसे ही ममता बनर्जी के आदमी तोड़ जरूर लिए थे। मगर 2021 विधानसभा जीतने के बाद ही ज्यादातर वापस बसेरे में आ गए।
राजनीति का यहीं चलन है। यहां खुद को दुखी दिखाना हाराकिरी के समान है। राहुल ने 2019 में निराश होकर अध्यक्ष पद से इस्तिफा दे दिया। कांग्रेस के नेताओं की बांछें खिल गईं। मीटिंग पर मीटिंग होने लगीं। मगर किसी पर एक राय नहीं हो पाए। पर्चियां तक डालीं। सब दांव चल लिए। मगर जब कुछ नहीं हो सका। तो सोनिया को मनाने पहुंचे। और एक बार और कुछ समय के लिए कहकर उन्हें फिर से कांटों का ताज पहना दिया।
देखिए कांग्रेसी कितने दुष्ट होते हैं। एक तरफ सोनिया को बनाया और दूसरी तरफ राहुल के खिलाफ उन्हें एक पत्र लिख दिया। राहुल जो अध्यक्ष पद छोड़ चुके थे। दोबारा बनने को तैयार नहीं थे उनके खिलाफ 23 बड़े नेता, जिन्हें सोनिया राजीव गांधी ने ही बड़ा नेता बनाया था वे उस समय उन्हें पत्र रिसिव करवा रहे थे जब वे बीमारी की अवस्था में हास्पिटल में थीं।
वह तो राहुल यात्रा पर निकल पड़े। नहीं तो कांग्रेसी उन्हें अभी तक सन्यास दिला चुके होते। मगर अब राहुल को पार्टी को साथ विपक्ष के नेताओं का भी विश्वास मिल चुका है। हमारे यहां तो सफलता ही योग्यता की निर्धारक होती है। राहुल वही हैं। मगर यात्रा की सफलता ने उनकी छवि बदल दी। वे अब कांग्रेस जहां उसके नेता दोनों नजदीक वाले भी और खुले विरोधी भी बाबा, पप्पू राजनीति में असफल कहते थे और विपक्ष में जहां भी ऐसी ही आलोतनाएं होती थीं उम्मीद के तौर पर देखे जाने लगे। किसने पहले क्या कहा यह बताने के बदले अब बस इतना ही बताना पर्याप्त है कि ममता बनर्जी ने बेगलुरू में भरी पत्रकार सभा में राहुल के लिए कहा हमारे फेवरेट राहुल जी!
लेकिन ये तारीफ और उम्मीदें अपनी जगह हैं। मगर राहुल और पूरे विपक्षी गठबंधन जिसके अभी नाम INDIA ने ही सरकार भाजपा और मीडिया को मुश्किल में डाल दिया है सोचना चाहिए अगर इन्डिया तेज गति से चल पड़ा तो इसके विरोधियों में कैसा हड़कम्प मच जाएगा! अभी पहला प्रोग्राम इन्डिया के मणिपुर जाने के रूप में सामने आया है। लेकिन जब विपक्षी गठबंधन लगातार प्रोग्राम देगा तो माहौल में एकदम से परिवर्तन दिखना शुरू हो जाएगा।
लेकिन इसके लिए गति दिखाना होगी। मुम्बई बैठक की तारीख की घोषणा जल्दी करना चाहिए। और वहां से संजोजक, 11 सदस्यीय संचालन समिति, मंहगाई, बेरोजगारी खत्म करने का कोई लिखित दस्तावेज, गारंटी कार्ड की तरह सामने आना चाहिए। सराकरी अस्पताल और स्कूल बंद करने पर भी। चिकित्सा और शिक्षा को निजी क्षेत्र से निकालकर वापस सरकार के पास लाना होगा।
अभी रामेश्वर के वीडियो ने देश भर का दिल जैसे रोक दिया। कुछ क्षणों के लिए उस सब्जी बेचने वाले का चुप रहना जैसे उतनी देर के लिए धड़कनों को भी बंद कर देने वाला था। पूरा देश इस तरह की समस्याओं से घिरा हुआ है। मगर डर के कारण कोई बोल नहीं रहा। मीडिया और भक्तों की टोली के साथ सरकार के मंत्री और पार्टी के बड़े नेता भी उल्टे पीड़ित से सवाल करने लगते हैं।
गरीब कमजोर क्या जवाब देगा। एक वाकया बताते हैं। कुछ पुराने दोस्तों को याद भी आ सकता है। एक मजिस्ट्रेट साहब थे। सीजेएम साहब। बहुत मजाकिया। उनकी कोर्ट में एक वकील साब फरियादी से बार बार पूछ रहे थे सही बताओ कितने घूंसे, कितने चांटे मारे। दस पन्द्रह। वकीलों का क्रिमनल केस में जिरह का यह पुराना तरीका है। फऱियादी को, गवाह को कन्प्यूज करना। दो अलग अलग तरह के तथ्य निकालना।
सीजेएम साहब से नहीं रहा गया। बोले वकील साब आप में पड़वाते हैं। सही गिनना! खैर वह अलग मुद्दा है। वकील साब चुप हुए। कुछ देर के लिए शर्मिन्दा हुए। मगर आजकल भक्तों को छोड़िए मीडिया, मंत्री और सत्ताधारी पार्टी के नेता पीड़ित, पीडिताओं से उनके परिवारों से इससे भी ज्यादा बेतुके, आक्रामक सवाल पूछते हैं। अपमान करने की नियत से।
वह सब तब रुकेगा जब इन्डिया जीतती हुई दिखेगी। कांग्रेस के नए अध्यक्ष को बने दस माह होने वाले हैं। उन्हें प्लेनरी ( महाधिवेशन) के जरिए संपूर्ण अध्यक्षीय अधिकार दिए जाने के भी पांच महीने से ज्यादा हो गए। मगर अभी तक वे अपनी टीम नहीं बना पाए हैं। इस अनिर्णय से अनिश्चितता फैलती है। लोगों को बनाइए। वे अपने काम पर लगें। और आप उन्हें मानिटर करें। यह सब पेंडिंग डाले जाने का कोई मतलब नहीं होता है।
लेकिन कांग्रेस की समस्या अपनी जगह है। विपक्षी गठबंधन इन्डिया को इससे बचकर अपनी गति खुद निर्धारित करना चाहिए। तेज गति। समय अब बहुत कम बचा है। और जिससे मुकाबला है वे मोदी लगातार काम करते रहते हैं। और चुनाव का। चुनाव ही उनके लिए अंतिम सत्य है। इन्डिया को भी अब अपना पूरा ध्यान चुनाव और केवल चुनाव पर लगाना होगा।
लेखक- शकील अख्तर
साभार- देशबन्धु।