आगरा। प्रोक्टोलाजी मलाशय और मलद्वार की लेजर सहित नई तकनीकी से सर्जरी में 20 प्रतिशत सर्जन ही प्रशिक्षित हैं जबकि ये बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे में भारत में अगले तीन वर्ष में नई तकनीकी से 20 हजार सर्जन को प्रशिक्षित करना है। जिससे मरीजों की सर्जरी सस्ती दर पर हो सकेगी और मरीज 24 से 48 घंटे में काम पर जा सकेंगे। कलाकृति ऑडिटोरियम में तीन दिवसीय इंटरनेशनल कांफ्रेंस आफ कोलो प्रोक्टोकालोजी वर्ल्डकॉन 2023 में पहले दिन शुक्रवार को नई तकनीकी का प्रशिक्षण दिया गया।
इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ कोलोप्रोक्टोलॉजी की 8वीं विश्व कार्यशाला का शुभारम्भ आज कलाकृति कनवेन्शन सेंटर में एसएन मेडिकल कालेज के प्राचार्य डॉ. प्रशान्त गुप्ता ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया। इस अवसर पर उन्होंने युवा सर्जन को सर्जरी की नई तकनीकी सीखने व उसे अपनाने पर जोर देने को कहा। जिससे मरीजों को आर्थिक व शारीरिक दोनों तरीके का लाभ मिल सके।
आईएससीपी के प्रेसीडेंट इलेक्ट डॉ. प्रशांत रहाटे ने कहा कि पाइल्स, फिशर, फिस्टुला की समस्याएं बढ़ रही हैं। ऐसे केस में सामान्य तरह से सर्जरी करने पर मरीज को एक महीने तक घर पर रहना पड़ता है और सर्जरी भी महंगी है। जबकि लेजर विधि, एमआइपीएच स्टेप्लर विधि, चिवटे प्रोसीजिर, सिग्मोइडोस्कापी, एंडोसूचरिंग विधि से सर्जरी के 48 घंटे बाद मरीज काम पर लौट सकता है। सर्जरी में खर्चा 30 से 40 हजार आता था। इसे 10 से 15 हजार रुपये तक ले जाना है। जिससे अधिक से अधिक मरीज इस तरह की सर्जरी करा सकें।
कैसे पहचाने कौन सी समस्या
पाइल्सः घाव के साथ रक्तत्राव।
फिस्टुलाः छोटा छेद, जहां से पस निकलता है। यह छेद अंदर गहराई तक हो सकता है।
प्रोलेब्सः गूदा बाहर आ जाता है। मल करने में तकलीफ। ठीक से प्रेशर न हो पाने का एहसास।
डॉ. प्रशान्त रहाटे ने कहा कि पाइल्स, फिशर, फिस्टुला की समस्या के लक्षण लगभग समान होते हैं, लेकिन इलाज अलग-अलग। सही समय पर समस्या का पता चलना और सही इलाज मिलने से मरीज 2-4 दिन में ठीक हो सकता है। लेकिन समस्या कुछ और इलाज कोई और परेशानी को जीवनभर के लिए बनाए रख सकता है।
आयोजन सचिव डॉ. अंकुर बंसल ने बताया कि फास्ट फूड में मैदा और अजीनोमोटा के साथ ही प्रिजर्वेटिव का इस्तेमाल किया जाता है। इससे पाइल्स, फिशर की समस्या बढ़ रही है। इसके ग्रेड के हिसाब से इलाज किया जाता है। डॉ. निधि बंसल ने बताया कि सामान्य प्रसव के साथ ही महिलाएं पानी कम पीते हैं। उन्हें लगता है कि प्रसव के बाद पानी पीने से मोटे हो जाते हैं। इसलिए महिलाओं को कब्ज की समस्या हो रही है और प्रोक्टोलाजी की समस्या बढ़ी है।
कोलोन के कैंसर का रोबोटिक सर्जरी से इलाज
डॉ. अश्विन तंगवेलु कोयंबटूर ने रोबोटिक सर्जरी से कोलोन के कैंसर की सर्जरी की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि दूरबीन विधि और रोबोटिक सर्जरी से छोटे टांके लगाकर कोलोन के कैंसर वाले हिस्से को निकाल दिया जाता है और उसे कनेक्ट कर दिया जाता है, जिससे मल को निकालने के लिए अलग से थैली लगाने की जरूरत नहीं होती है।
कोलाइटिस की भी बढ़ रही समस्या
आईएससीपी के सचिव डा. लक्ष्मीकांत लाडूकर ने बताया कि कोलाइटिस की भी समस्या बढ़ी है, पहले अमीबाइड कोलाइटिस देखने को मिलती थी लेकिन अब अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रान्स डिजीज मिल रहा है। इसके पीछे फास्ट फूड का सेवन करने के साथ ही अत्यधिक तनाव एक बड़ा कारण है।
आयोजन समिति के सचिव डॉ. अंकुर बंसल ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर डॉ. शांतिकुमार चिवटे, डॉ. लक्ष्मीकांत लाडूकर डॉ. प्रशान्त रहाटे, आयोजन समिति के डॉ. अनुभव गोयल, डॉ. हिमांशु यादव, डॉ. करन रावत, डॉ. जूही सिंघल, डॉ. प्रशान्त लवानिया आदि उपस्थित रहे।
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