आज ही के दिन रानी लक्ष्मीबाई ने दिया था अपना सर्वोच्च बलिदान

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आज ही के दिन यानी 18 जून 1858 को अंग्रेजों से लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। आइये इस मौके पर उनसे जुड़ीं खास बातें जानते हैं…

जन्म

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘मोरोपंत तांबे’ और माता का नाम ‘भागीरथी बाई’ था।

मणिकर्णिका

रानी लक्ष्मी बाई का बचपन का नाम ‘मणिकर्णिका’ था लेकिन प्यार से मणिकर्णिका को ‘मनु’ पुकारा जाता था। 1834 में 14 साल की उम्र में उनकी शादी झांसी के राजा गंगाधार राव से हुआ जिसके बाद उनका नाम लक्ष्मी बाई हो गया।

4 साल की उम्र में मां की मौत

मनु अभी चार साल की ही थीं कि उनकी मां का निधन हो गया। पिता मोरोपंत तांबे एक साधारण ब्राह्मण और अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में अपनी सेवा देते थे। अपनी मां की मृत्यु हो जाने पर वह पिता के साथ बिठूर आ गई थीं। यहीं पर उन्होंने मल्लविद्या, घुड़सवारी और शस्त्रविद्याएं सीखीं।

छबीली

घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए उनके पिता मोरोपंत मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले जाते थे। वहां चंचल एवं सुंदर मनु ने सबका मन मोह लिया था। बाजीराव मनु को प्यार से ‘छबीली’ बुलाते थे।

बचपन से ही थी दृढ़ निश्चय

मनु बचपन से ही मानती थीं कि वह लड़कों के जैसे सारे काम कर सकती हैं। एक बार उन्होंने देखा कि उनके दोस्त नाना एक हाथी पर घूम रहे थे। हाथी को देखकर उनके अंदर भी हाथी की सवारी की जिज्ञासा जागी। उन्होंने नाना को टोकते हुए कहा कि वह हाथी की सवारी करना चाहती हैं। इस पर नाना ने उन्हें सीधे इनकार कर दिया। उनका मानना था कि मनु हाथी की सैर करने के योग्य नहीं हैं। यह बात मनु के दिल को छू गई और उन्होंने नाना से कहा एक दिन मेरे पास भी अपने खुद के हाथी होंगे। वह भी एक दो नहीं बल्कि दस-दस। आगे जब वह झांसी की रानी बनी तो यह बात सच हुई।

बेटे का निधन और दामोदर राव को गोद लेना

1851 में उनको एक बेटा पैदा हुआ था जिसकी चार महीने की उम्र में ही मौत हो गई थी। उसके बाद उन्होंने आनंद राव नाम के एक पुत्र को गोद लिया जिसका नाम बदलकर बाद में दामोदर राव रख दिया गया।

​पति का निधन

21 नवंबर, 1853 को लक्ष्मी बाई के पति गंगाधर की भी मौत हो गई। पति के निधन के बाद 27 फरवरी 1854 को लार्ड डलहौजी ने गोद की नीति के अंतर्गत दत्तकपुत्र दामोदर राव की गोद अस्वीकृत कर दी और झांसी को अंग्रेजी राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी। लक्ष्मी बाई ने इस चीज को मंजूर नहीं किया और अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया।

अंग्रेजों पर भारी

लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया। दोनों हाथों में तलवार लेकर घोड़े पर सवार और पीठ पर बच्चे को बांधकर झांसी की रानी अंग्रेजों पर टूट पड़ीं। अंग्रेज सेना उनके सामने कमजोर पड़ने लगी थी। रानी की किलाबंदी और उनका जज्बा अंग्रेजों पर भारी पड़ने लगा था। लेकिन अंग्रेजों की विशाल सेना के मुकाबले झांसी की सेना भला कब तक टिकती। आखिर में अंग्रेजों का झांसी पर कब्जा हो गया।

अंत समय

इस लड़ाई में रानी लक्ष्मी बाई बुरी तरह घायल हो गईं। वह चाहती थीं कि उनके शव को अंग्रेज हाथ न लगाए। उनकी इच्छा के मुताबिक उनके कुछ सैनिकों ने लक्ष्मी बाई को बाबा गंगादास की कुटिया में पहुंचाया और कुटिया में ही 18 जून, 1858 को लक्ष्मी बाई ने दम तोड़ दिया। वहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया।

-एजेंसी


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