आगरा में इन दिनों स्वास्थ्य विभाग एक बड़े मंथन से गुजर रहा है। यह मंथन सिर्फ कागजी कार्रवाई का नहीं, बल्कि शहर की स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और विश्वसनीयता का है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) डॉ. अरुण श्रीवास्तव के नेतृत्व में, स्वास्थ्य विभाग ने एक बड़ा अभियान छेड़ा है, जिसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि मरीजों को सही और सुरक्षित इलाज मिल सके। इस अभियान के तहत, शहर के 52 अस्पतालों और लैब के लाइसेंसों पर अस्थायी रोक लगा दी गई है, और उन्हें सुधार के लिए नोटिस जारी किए गए हैं। यह कदम, उन लोगों के लिए एक कड़ा संदेश है जो स्वास्थ्य सेवाओं को केवल मुनाफे का जरिया मानते हैं।
मनमानी पर लगाम, मरीजों की सुरक्षा प्राथमिकता
यह खबर निश्चित रूप से उन लोगों को विचलित कर सकती है, जो निजी अस्पतालों के भरोसे अपना इलाज कराते हैं। लेकिन, असली तस्वीर कुछ और ही बयां करती है। स्वास्थ्य विभाग के भौतिक सत्यापन में जो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, वे दरअसल हमारे स्वास्थ्य तंत्र की कुछ गहरी खामियों को उजागर करते हैं।
कल्पना कीजिए, एक निजी अस्पताल ने बिना किसी आधिकारिक अनुमति के अपनी बेड क्षमता डेढ़ गुना बढ़ा दी है। यह न सिर्फ नियमों का उल्लंघन है, बल्कि आपात स्थिति में मरीजों की सुरक्षा से भी खिलवाड़ है। इसी तरह, कई पैथोलॉजी लैब में पैनल पर दर्ज पैरामेडिकल स्टाफ और डॉक्टर मौजूद ही नहीं हैं। अगर आपकी जांच कोई अप्रशिक्षित व्यक्ति कर रहा है, तो उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। और तो और, कई आईसीयू (ICU) में जीवन रक्षक उपकरण भी केवल कामचलाऊ स्थिति में पाए गए हैं। इसका सीधा मतलब है कि गंभीर मरीजों के जीवन के साथ सीधा खिलवाड़।
स्वास्थ्य विभाग इन दिनों अस्पतालों और लैब के नवीनीकरण (renewal) का काम कर रहा है। पिछले साल, आगरा में 487 अस्पताल, 150 पैथोलॉजी लैब, 492 क्लीनिक, 85 डेंटल क्लीनिक और 103 डायग्नोस्टिक सेंटर पंजीकृत थे। इन सभी का इस साल पांच साल के लिए नवीनीकरण होना है।
यह नवीनीकरण की प्रक्रिया मात्र कागजी खानापूर्ति नहीं है, बल्कि एक भौतिक सत्यापन के साथ हो रही है। यही वह प्रक्रिया है जिसने कई अनियमितताओं को उजागर किया है:
बेड की संख्या में मनमानी वृद्धि: कई अस्पतालों ने अपनी निर्धारित बेड क्षमता से कहीं अधिक बेड लगा रखे थे, जिसकी कोई अनुमति नहीं थी।
प्रशिक्षित स्टाफ का अभाव: पैथोलॉजी लैब और क्लीनिकों में प्रशिक्षित पैरामेडिकल स्टाफ और विशेषज्ञ डॉक्टरों का अभाव पाया गया। कई मामलों में तो स्टाफ अपनी डिग्री और नाम तक प्रस्तुत नहीं कर पाए।
जीवन रक्षक उपकरणों की बदहाली: आईसीयू जैसी संवेदनशील इकाइयों में भी जीवन रक्षक उपकरण खराब या कामचलाऊ हालत में मिले, जो मरीजों की जान को सीधा खतरा है।
ये गड़बड़ियाँ केवल आंकड़े नहीं हैं, बल्कि उन मरीजों की कहानियाँ हैं जो बेहतर इलाज की उम्मीद में इन संस्थानों का रुख करते हैं।
इस पूरी प्रक्रिया में, मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अरुण श्रीवास्तव की भूमिका महत्वपूर्ण और सकारात्मक रही है। उनकी देखरेख में ही यह गहन सत्यापन अभियान चलाया गया है। डॉ. श्रीवास्तव का कहना है कि कुल 1317 नवीनीकरण आवेदनों में से अब तक 450 का नवीनीकरण कर दिया गया है। लेकिन, जहां भी कमियां मिली हैं, वहां किसी भी तरह की ढिलाई नहीं बरती गई है। यही वजह है कि 52 अस्पताल और लैब के लाइसेंस रोके गए हैं और उन्हें सुधार के लिए नोटिस दिए गए हैं।
यह कदम सिर्फ दिखावा नहीं है, बल्कि एक पारदर्शी और जवाबदेह स्वास्थ्य व्यवस्था की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। यह CMO का मरीजों के प्रति समर्पण और स्वास्थ्य मानकों से कोई समझौता न करने का स्पष्ट संदेश है। उम्मीद है कि ये नोटिस केवल औपचारिकता न होकर, वाकई में इन संस्थानों को अपनी सेवाओं में सुधार करने के लिए प्रेरित करेंगे।
सवाल यह है कि क्या ये संस्थान इन नोटिसों को गंभीरता से लेंगे? क्या वे वाकई अपनी कमियों को दूर कर मरीजों को गुणवत्तापूर्ण और सुरक्षित स्वास्थ्य सेवाएँ दे पाएंगे? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन, एक बात तो साफ है, लग रहा है कि आगरा का स्वास्थ्य विभाग अब चुप बैठने वाला नहीं है। यह मरीजों के स्वास्थ्य के साथ किसी भी खिलवाड़ को बर्दाश्त नहीं करेगा।
-मोहम्मद शाहिद