उन्होंने कहा कि शिक्षा पद्धति बदलने के साथ-साथ सामाजिक बदलाव करना होगा. गांधी गुरुकुल में नहीं पढ़े थे, अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षा लेने के बाद भी गांधी, तिलक और हेडगेवार जैसे लोग देशभक्त बने. सामाजिक वातावरण इसके पीछे मुख्य वजह थी.
इसके अलावा उन्होंने कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर ने हमें चेताया था कि संविधान से समानता का मार्ग प्रशस्त होगा लेकिन असल बदलाव समाज और हमारे भीतर बदलाव से भी संभव होगा.
मोहन भागवत ने और क्या कहा?
विजयादशमी के मौके पर नागपुर में संघ मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा, “हमें अपनी महिलाओं को सशक्त बनाना होगा. महिलाओं के बिना समाज आगे नहीं बढ़ सकता. विश्व में हमारी प्रतिष्ठा और साख बढ़ी है. जिस तरह से हमने श्रीलंका की मदद की, और यूक्रेन-रूस संघर्ष के दौरान हमारे रुख़ से पता चलता है कि हमें सुना जा रहा है.”
शिक्षा पद्धति में मातृभाषा की महत्ता पर अपनी राय रखते हुए उन्होंने कहा, “अंग्रेजी सफ़लता के लिए ज़रूरी नहीं. सरकार नई शिक्षा नीति ला कर क्या करेगी जब आप अपने बच्चों को मातृ-भाषा के स्कूल में नहीं भेजेंगे तो कैसे बच्चे अपनी भाषा सीखेंगे. अगर हम अधिक कमाने की बात बच्चों को बता कर स्कूल भेजेंगे तब तक छात्र देशभक्त कैसे बनेगा. हमें अपने में बदलाव लाना होगा.”
“केवल विद्यालय और महाविद्यालय में ही शिक्षा नहीं है मिलती. हर चीज़ की शुरुआत समजिक बदलाव से होती है. जब हमको परतंत्र बनाने वाली शिक्षा शासन के संपूर्ण सहयोग के साथ लागू थी, और जो शिक्षा पद्यति लागू थी वो अंग्रेज़ी थी, लेकिन नए भारत की परिकल्पना के साथ जो लोग बाहर निकले वे सभी उसी शिक्षा पद्यति का हिस्सा थे.”
“लोकमान्य तिलक गुरुकुल में नहीं पढ़े, गांधी गुरुकुल में नहीं पढ़े थे, डॉ. हेडगेवार की शिक्षा अंग्रेज़ी माध्यम से हुई थी लेकिन ये लोग देशभक्त क्यों बने क्योंकि ये स्कूली वातावरण से देशभक्त नहीं बने. घर का वातावरण, समाज का वातावरण सहायक होता है.”
संघ प्रमुख ने एक ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था का भी ज़िक्र किया जिसका फ़ायदा सभी को समान रूप से मिले.
समानता और समान अधिकार पर भागवत ने कहा, “डॉ. भीमराव आंबेडकर ने हमें चेतावनी दी थी और कहा था संविधान के कारण राजनीतिकऔर आर्थिक समता का रास्ता तैयार हो गया, लेकिन सामाजिक समानता को लाये बिना वास्तविक व टिकाऊ परिवर्तन नहीं आयेगा. ये समाज और हमारे अंदर बदलाव से ही संभव होगा.”
-एजेंसी
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