अब एक और नया सपना… विकसित राष्ट्र बना देने का भौकाल!

अन्तर्द्वन्द
(लेखक प्रो. विमल शंकर सिंह, डी.ए.वी.पी.जी. कॉलेज, वाराणसी के अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे हैं)

सन 2024 का इलेक्शन शुरू हो चुका है और उसने सन 2014 के इलेक्शन की याद भी दिला दी है । उस इलेक्शन में जैसे देश की ऊर्जा का स्तर आसमान छू रहा था । क्या बूढ़े और क्या नौजवान उतावले और पागल हुए जा रहे थे एक नए नेतृत्व को जननायक बनाने के लिए। आज के प्रधानमंत्री ने भी उस समय कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी उनको नए सपने दिखाने, उनके ह्रदय में स्थान बनाने में । आप भूले नहीं होंगे जब प्रधानमंत्री मंच पर खड़े होकर श्रोताओं से झूम झूम कर पूछते थे कि आपको नौकरी नहीं चाहिए क्या ? रोजगार नहीं चाहिए क्या ? नौजवान उछल पड़ते थे उनके इस सवाल पर, स्वीकृति के भीषण कोलाहल के साथ । बूढ़ों की जैसे उम्र बढ़ जाती थी उनके इस आश्वासन पर कि उनका लाल करेगा कमाल, नौकरी या रोजगार के साथ ।

विश्व गुरु बन जाने का सपना

अब के प्रधानमंत्री ने तब पूरे देश को समझा दिया, बता दिया था कि नौजवान भारत, विश्व पटल पर छा सकता है, अपनी अमिट पहचान बना सकता है। वह जनसांख्यिकीय लाभांश कमा सकता है किन्तु नए हुनर के साथ । हुनर या स्किल का विकास करेगी उनकी सरकार। भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से कदम बढ़ाएगी, विश्व पटल पर डंका बजाएगी । ऐसे ही सपनो के उड़न खटोले पर बैठ कर अवाम और आज की सरकार निकल पड़ी थी विश्व गुरु बन जाने की तमन्ना ह्रदय में सजोकर। मौन हो गई उस वक्त की मनमोहन सिंह की सरकार ।

आज की राजनीति ने बता और सिखा दिया उनको की वाक्पटु होना भी नितांत आवश्यक है। नवउदारवाद प्रचार पर जोर देती है । किन्तु उसकी भी सीमाएं होती हैं । सयाने बताते हैं कि बकवादी होने या डींग हाकने से अर्थव्यवस्थाएं ऊंचाई नहीं प्राप्त कर सकती हैं । अतः प्रचार कही डींग हांकना न बन जाय इसका ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए अर्थशास्त्रियों की सुननी चाहिए । ऐसे ही एक सयाने अर्थशास्त्री श्री रघुराम राजन हैं जिन्होंने देश को आगाह किया है कि ग्रोथ की हाईप या हनक में न पड़िये। उनका मंतव्य समझने के लिए उनके पूरे वक्तव्य को जानना चाहिए ।

ग्रोथ की हाईप, हनक या प्रचार पर विश्वास न करिये – रघुराम राजन

आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि भारत अपनी एक मजबूत आर्थिक वृद्धि दर के बारे में किये जा रहे हाईप अर्थात प्रचार पर भरोसा करके एक बड़ी गलती कर रहा है । उन्होंने कहा, भारत द्वारा की जा सकने वाली सबसे बड़ी गलती प्रचार पर विश्वास करना होगा । प्रचार किया जा रहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था चम चम कर रही है । प्रचार है कि हमारी अर्थव्यवस्था का शुमार अब विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में हो रहा है । प्रचार है कि भारत सन 2047 तक एक विकसित अर्थव्यवस्था बन जायेगा। प्रचार राजनेता करते हैं और राजनेताओं की मनसा होती है कि हम उनकी बात पर विश्वास कर लें । लेकिन उन पर विश्वास करना एक गंभीर गलती होगी।

बकवास है सन 2047 तक भारत को एक विकसित अर्थव्यवस्था बना देने का वायदा

रघुराम राजन ने प्रधानमंत्री मोदी की सन 2047 तक भारत को एक विकसित अर्थव्यवस्था बना देने की महत्वाकांक्षा को, सपने को खारिज करते हुए कहा कि उस लक्ष्य की बात करना बकवास (नॉनसेंस) है। ऐसा क्यों कहा उन्होंने । संभवतः इसलिए की वर्तमान प्रधानमंत्री के दस वर्ष के कार्यकाल में विकास दर मात्र 5.82 प्रतिशत रही जो कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल की विकास दर (6.8 प्रतिशत) से कम रही है । केवल आखिरी के तीन वर्षों की विकास दर के आधार पर कोई प्रचार और घोषणा करना अनुचित होगा । फिर, एक ऐसे देश में जहां 140 करोड़ से ज्यादा आबादी में से आधे से अधिक 30 वर्ष से कम उम्र के लोग हैं, एक बढ़ता हुआ कार्यबल है, वह अर्थव्यवस्था के लिए तभी फायदामंद साबित होंगे जब वे सब अच्छी नौकरियों में कार्यरत हों। अतः भारत को सबसे पहले कार्यबल को ज्यादा रोजगार के योग्य तथा हुनरमंद बनाना होगा और अपने पास मौजूद कार्यबल के लिए नौकरियां पैदा करनी होंगी। आज के दिन तीव्र विकास के लिए आवश्यक बेहतर शिक्षा और विश्वस्तरीय कौशल प्रदान करने में हम पूरी तरह विफल रहे हैं, वे बताते हैं ।

भारत में साक्षरता दर वियतनाम जैसे अन्य एशियाई देशों से कम है। अनगिनत बच्चे हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं और ड्रॉप-आउट दर भी ज्यादा है। भारतीय स्कूली बच्चों की सीखने की क्षमता में गिरावट दिखाने वाले अध्ययन भी हैं। वे पूछते हैं कि किस बात के आधार पर, जब न तो देश में बेहतर शिक्षा है और न बेहतर कौशल, हम सन 2047 तक एक विकसित देश बन जाने का ख्वाब देख और दिखा रहे हैं।

देश में रोजगार की स्थिति काफी गंभीर और चुनौतीपूर्ण बनी हुई है- आईएलओ

अभी हाल में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट, 2024 में कुछ ऐसे ही निष्कर्ष दिखाई देते हैं ।आईएलओ की रिपोर्ट बताती है कि देश में रोजगार की स्थिति काफी गंभीर और चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। मजदूरी की दर स्थिर है या कम हो रही है । सन 2019 में (सन 2012 की कीमत पर) नियमित (रु.11155) एवं स्व-रोजगार प्राप्त (रु.7017) व्यक्तियों की मजदूरी की तुलना में सन 2022 में नियमित (रु.10925) एवं स्व-रोजगार प्राप्त (रु.6843) व्यक्तियों की मजदूरी घटी किन्तु कैसुअल मजदूरों (रु.4712) की मजदूरी कुछ बढ़ी थी ।इस तरह, साल 2019 के बाद नियमित श्रमिकों और स्वरोजगार वाले व्यक्तियों के वेतन में गिरावट की प्रवृत्ति देखी गई।

महिलायें स्व रोजगार करती हुई अधिक दिखाई देती हैं । श्रमशक्ति का एक बड़ा भाग बेरोजगार है और युवा सबसे अधिक बेरोजगारी की मार से त्रस्त हैं। जितनी श्रमशक्ति बेरोजगार है उसका 83 प्रतिशत तो नौजवानों का है ।ऊपर से शिक्षित बेरोजगारों का हाल, बेहाल है। कुल बेरोजगारी में सेकेंडरी शिक्षा या उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं का प्रतिशत अब लगभग दुगना होता दिखता है ।

सन 2000 में ऐसे बेरोजगारों का प्रतिशत 35.2 था जो सन 2022 में बढ़ कर 65.7 प्रतिशत हो गया ।तो जैसे जैसे उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है उनकी बेरोजगारी की दर भी बढ़ती जा रही है। युवाओं से अपेक्षा रही है कि वे उच्च शिक्षा प्राप्त करेंगे, कड़ी मेहनत करेंगे । उन्होंने किया भी । सपना भी दिखाया गया, देखा उन्होंने भी की वे जनसांख्यिकीय लाभांश दे सकते हैं। यही से सरकार और हम आप असफल हुए हैं। उन्हें हुनरमंद बनाना था हमें । हम बना न पाए । रिपोर्ट बताती है कि उनमें अप्रेंटिसशिप ट्रेनिंग और सामान्य डिजिटल कौशल का भी आभाव है । अतः शिक्षित वर्ग का सपना टूटना ही था । उनके अच्छे दिन आने वाले भी न थे । आये भी नहीं। सब वायदा ही रह गया ।

रोजगार विहीन विकास की यात्रा रही है हमारी- भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ

भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ की सन 2023 की स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया, रिपोर्ट भी भारतीय अर्थव्यवस्था और विशेष रूप से श्रम मार्किट सम्बन्धी अनेक ज्वलंत पहलुओं पर शोध प्रस्तुत करती है । रिपोर्ट बताती है कि हमारी अर्थव्यवस्था में रोजगार वृद्धि दर लगभग स्थिर सी बनी हुई है और संरचनात्मक परिवर्तन में वृद्धि धीमी गति से हो रही है । श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है और शिक्षा के स्तर में वृद्धि के साथ बेरोजगारी दर भी बढ़ी है । रिपोर्ट बताती है कि सन 1987-88 से 2004-05 के बीच देश में उत्पादन और रोजगार में तेजी से वृद्धि हुई थी ।

लेकिन सन 2004-05 से 2018-19 के बीच रोजगार विहीन विकास की यात्रा रही है हमारी । यद्यपि सन 2019 के बाद से हम अपनी विकास यात्रा में बहुत मामूली सा परिवर्तन कर पाने में सक्षम हुए हैं। रिपोर्ट यह भी बताती है कि कम शिक्षित की तुलना में उच्च शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की दर बढ़ी है । सन 2020-21 में अशिक्षित एवम प्राथमिक शिक्षा से कम शिक्षा प्राप्त शिक्षित वर्ग में बेरोजगारी की दर क्रमसः 0.57 और 1.13 प्रतिशत थी । इसके विपरीत उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं (15-29 आयु वर्ग) में बेरोजगारी की दर 14.73 प्रतिशत रही । क्या यह अभूतपूर्व बेरोजगारी दर नहीं है ?

रिपोर्ट यह भी बताती है कि स्व रोजगार हमारी रोजगार मार्किट की इंजिन बनी हुई है । स्पष्ट है कि स्व-रोजगार से रोजगार तो मिलेगा, लेकिन आय होगी बहुत कम ।कितनी होगी ? सन 2022 में यह थी रु.6843 । कैसुअल मजदूरी है तो कमा पाएंगे कुछ रु.4712 । पकौड़ा तलेंगे तो आय होगी कुछ इसी के आस पास । अर्थ क्या है इस विश्लेषण का ? निरक्षरों का प्रतिशत यदि अर्थव्यवस्था में अधिक है तो बेरोजगारी कम होगी । लेकिन मजदूरी भी बहुत कम होगी, जैसा की आईएलओ की रिपोर्ट बता रही है ।जैसे जैसे आप अधिक शिक्षा प्राप्त कर पाएंगे, आप बेरोजगार होते जायेंगे । क्योंकि रोजगार के अवसर नहीं बढ़ा पा रहे हैं हम, युवा शिक्षित कामगारों के लिए। तो जनसांख्यिकीय लाभांश कैसे कमा पाएंगे? उत्तर है, भूल जाइये जनसांख्यिकीय लाभांश के सपने को । जुमला बन जाने की नियति लगती है इसकी । जैसे यह रिपोर्ट भी कह रही है ।

क्या कहता है यह विश्लेषण ?

पुराने सपने (2014) पूरे न हुए, नए सपने गढ़े जाने लगे
प्रधानमंत्री ने सन 2014 में चार मुद्दे उठाये थे ।तीव्र विकास होगा, रोजगार बढ़ेगा, स्किल निर्माण के साथ जनसांख्यिकीय लाभांश भी मिलेगा । रघुराम राजन ने दस वर्ष पश्चात अर्थात सन 2024 में बताया कि देश में तेज विकास नहीं हुआ, अच्छी नौकरियां न बढ़ी और बेहतर शिक्षा के आभाव में कौशल निर्माण न हो सका । तो हुआ क्या ? पुराने दिखाए गए सपने (2014) पूरे न हुए । नए सपने, नए प्रचार शुरू हो गए। प्रचार शुरू हुआ कि सन 2047 में हम विकसित राष्ट्र बन जायेंगे। अतः आज जिस अर्थव्यवस्था में ढोल के अंदर पोल जैसी स्थिति हो, उसको विकसित बना देने का ढोल पीटने, भौकाल बनाने के विरुद्ध श्री राजन देशवासिओं को सावधान करते हैं ।

सावधान-बकवास है सन 2047 तक विकसित राष्ट्र बना देने का सपना- राजन

आपने और हमने प्रधानमंत्री और आरबीआई के पूर्व गवर्नर के कथनों को सुना । प्रधानमंत्री ने कुछ सपने दिखाए थे सन 2014 में, किन्तु राजन बताते हैं कि सन 2024 तक भी वे पूरे न हो सके । अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया रिपोर्ट ने बताया कि स्किल डेवलपमेंट हो या हो शिक्षा का विकास, या की हो रोजगार की उपलब्धता का प्रश्न, सरकार सफल न हो पाई है अपने प्रयासों में । अब एक और नया सपना, एक नया शिगूफा उफान मार रहा है फ़िजा में की भारत एक विकसित राष्ट्र बन जायेगा सन 2047 तक ।

राजन अभी से कहते हैं कि भरोसा न करिये इस सपने का । बकवास है । इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है ।अब आप किसकी बात पर विश्वास करेंगे ? इसका एक सरल उपाय तो यह हो सकता है कि हम-आप, पूरी अवाम यह देखें, खोजें अपने-अपने घरों और आस पड़ोस में की विगत दस वर्षों में कितने नौजवानों को नौकरी पाने का सुख मिला या मिला रोजगार पाने का हुनर । यदि आपके घर में हो कोई नौजवान, पढ़ा लिखा और विद्वान, और पा गया हो रोजगार तो आप अर्थव्यवस्था को गतिमान मानिये और अपने को भाग्यवान ।ऐसे में शुक्रिया करिये मोदी की गारन्टी का, अच्छे दिन आने का । किन्तु यदि हो बेरोजगारों की फ़ौज आसपास, तो आप मान लें रघुराम राजन की बात । इस फ़ौज की नौजवानी का सुख न तो देश को मिला, न तो परिवार को और न उस अभागे बेरोजगार को, जो हो चुका है अब एक बेजुबान इंसान। वो दे सकता था अपनी हाड़ तोड़ मेहनत से देश को उत्पादन का सुख, वो दे सकता था परिवार को अपनी आमदनी का आनंद और ले सकता था खुद अपनी मेहनत से ख़ुशी। यह वही इंसान था जिसकी मेहनत के सहारे विश्व अर्थव्यवस्था में हमको छा जाना था, जनसांख्यिकीय लाभांश कमाना था । लेकिन अभागा, बन गया खुद अर्थव्यवस्था के सुप्रबंधन न हो पाने का शिकार । उसके सपने, राजनीतिज्ञों के ख्वाबों, जुमलों के सामने बौने हो गए, नाकाम हो गए । यही तो रघुराम राजन कह रहे हैं । वे कह रहे हैं कि राजनीतिज्ञों के झूठे वायदों पर ऐतबार न करिये । ये वादे हैं, वादों का क्या ।

(लेखक डी.ए.वी.पी.जी. कॉलेज,वाराणसी के अर्थशास्त्र विभाग में पूर्व प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे हैं, संपर्क: 9450545510)


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