भारतीय छात्रा लक्ष्मी बालाकृष्णन से ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में नस्ली भेदभाव, शिकायतों पर नहीं हुई कार्रवाई

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ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में नामांकित एक भारतीय छात्रा ने प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय पर नस्ली पूर्वाग्रह, उत्पीड़न और अन्याय का आरोप लगाया है। तमिलनाडु के मदुरै की रहने वाली लक्ष्मी बालाकृष्णन को विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित ‘अपील और शिकायत तंत्र’ से न्याय नहीं मिलने पर उन्होंने अब इसे लेकर कानूनी कार्रवाई शुरू की है।

तमिलनाडु की लक्ष्मी बालाकृष्णन का आरोप है कि विश्वविद्यालय में की गई अपीलों और शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। लक्ष्मी ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की तरफ से पीएडी थीसिस रोकने पर कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। खबरों के मुताबिक छात्रा ने नौकरी की उम्मीदें धूमिल होने का आरोप लगाते हुए कहा है कि दो श्वेत छात्रों को मंजूरी देने का फैसला नस्लीय पूर्वाग्रह से प्रेरित है। गौरतलब है कि लगभग एक साल पहले, सितंबर 2023 में भी तत्कालीन छात्र संघ अध्यक्ष रश्मि सामंत ने भी नस्ली बर्ताव के अनुभव साझा किए थे।

लक्ष्मी बालाकृष्णन ने कहा, वह अंग्रेजी संकाय में शेक्सपियर पर पीएचडी करने के लिए अक्तूबर 2018 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय आई थी। नवंबर, 2021 में एक आंतरिक मूल्यांकन प्रक्रिया (जिसे शोध के चौथे वर्ष में स्थिति की पुष्टि के रूप में जाना जाता है) में मूल्यांकनकर्ताओं ने यह तर्क देकर मुझे असफल करार दिया कि शेक्सपियर के पास डॉक्टरेट स्तर के अध्ययन की गुंजाइश नहीं है। लक्ष्मी का आरोप है कि विश्वविद्यालय का फैसला ‘अनुबंध का उल्लंघन’ है।

उन्होंने कहा, आवेदन के वक्त ही वे स्पष्ट कर चुकी थीं कि पीएचडी थीसिस शेक्सपियर पर होगी। बकौल लक्ष्मी, विवि के आपत्तिजनक फैसले के खिलाफ अपीलों-शिकायतों की प्रक्रिया का पालन करने के बावजूद उन्हें निराशा ही हाथ लगी। बाध्य होकर उन्हें कानूनी कार्रवाई शुरू करनी पड़ी है।

भारतीय छात्रा बालाकृष्णन ने आरोप लगाया, ‘मैं मूल्यांकनकर्ताओं के फैसले को चुनौती नहीं दे रही, बल्कि नस्ली पूर्वाग्रह और प्रक्रियात्मक अनियमितता के आधार पर फैसले को चुनौती दे रही हूं।’ उन्होंने बताया, पीएचडी शोध पर करीब एक लाख पाउंड खर्च कर चुकी है। विश्वविद्यालय के फैसले से उन्हें न केवल आर्थिक क्षति हुई है, उनकी नौकरी की संभावनाएं भी धूमिल हो रही हैं।

भारतीय छात्रा लक्ष्मी का आरोप है कि उसके पीएचडी शोध का मूल्यांकनकर्ता ‘नस्ली पूर्वाग्रह से प्रेरित’ थे। जबकि अक्तूबर 2018 में ही उसके समूह के वे श्वेत छात्रों की शेक्सपियर पर आधारित पीएचडी थीसिस स्वीकारी गई। उसे असफल करने के बाद सहमति के बिना जबरन परास्नातक पाठयक्रम में भेजा जाना भेदभावपूर्ण था।

लक्ष्मी बालाकृष्णन से पहले सितंबर 2023 में, रश्मि सामंत ने भी ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के साथ नस्ली बर्ताव के अनुभवों की जानकारी दी थी। ऑक्सफोर्ड स्टूडेंट यूनियन (एसयू) में पहली भारतीय अध्यक्ष निर्वाचित होने का कीर्तिमान बनाने वाली रश्मि ने ‘ए हिंदू इन ऑक्सफोर्ड’ किताब में अपने कष्टदायक अनुभव के बारे में विस्तार से बताया। बकौल रश्मि, उन्हें प्रोफेसरों ने निशाना बनाया और उन्हें अकेला कर दिया। उन्होंने बताया कि शानदार अकादमिक रिकॉर्ड के बावजूद उन्हें रंगभेद का शिकार बनना पड़ा।

-साभार सहित