राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखा है. एनसीपीसीआर ने अपने पत्र में मुख्य सचिवों से मदरसा बोर्डों को बंद करने और मदरसों व मदरसा बोर्डों को राज्य वित्त पोषण बंद करने की सिफारिश की है. साथ ही मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को औपचारिक स्कूलों में नामांकित करने को कहा है.
एनसीपीसीआर ने यह पत्र एक हालिया रिपोर्ट के साथ भेजा है, जिसका शीर्षक है ‘विश्वास के संरक्षक या अधिकारों के दमनकर्ता- बच्चों के संवैधानिक अधिकार बनाम मदरसे’. इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मदरसे बच्चों के शैक्षिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं.
आयोग की इस सिफारिश पर कांग्रेस ने कहा कि वह पत्र पढ़ने के बाद टिप्पणी करेगी, लेकिन पार्टी के कर्नाटक में इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी, बायोटेक, ग्रामीण विकास और पंचायती राज के कैबिनेट मंत्री ने कहा कि आयोग को राज्यों से वित्त पोषण बंद करने और मदरसों को बंद करने के लिए कहने के बजाय, आदर्श रूप से उपाय देना चाहिए. उन्होंने एक अंग्रेजी दैनिक अखबार को बताया कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा मदरसा शिक्षकों के वेतन को तीन गुना करने का फैसला करने के कुछ दिनों बाद यह विकास देखना बहुत विरोधाभासी है.
केंद्र में बीजेपी की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी के प्रवक्ता एके बाजपेयी ने कहा कि अगर कोई मदरसा अवैध रूप से चल रहा पाया जाता है तो उसे बंद कर दिया जाना चाहिए. लेकिन अंधाधुंध कुछ नहीं किया जाना चाहिए.
उन्होंने अग्रेजी दैनिक द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्हें पता नहीं था कि एनसीपीसीआर ने राज्यों से कोई प्रतिकूल रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद पत्र लिखा था या नहीं. सभी मदरसों का उचित सर्वेक्षण किया जाना चाहिए ताकि पता चल सके कि कोई अनियमितता तो नहीं है. और अगर कोई अवैधता पाई जाती है तो उन्हें खुद को समझाने का पर्याप्त अवसर दिया जाना चाहिए.
समाजवादी पार्टी के सांसद और प्रवक्ता आनंद भदौरिया ने कहा कि एनसीपीसीआर का पत्र राजनीतिक रूप से प्रेरित लगता है और इसका उद्देश्य समाज में घृणा और विभाजन पैदा करना है. कई मदरसे उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं और विद्वान तैयार कर रहे हैं, लेकिन लंबे समय से भ्रांति पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है. इसके अलावा आर्थिक रूप से गरीब परिवारों के बच्चे यहां पढ़ते हैं. इसलिए इस हास्यास्पद पत्र को वापस लेना होगा.
पत्र में दावा किया गया है कि धार्मिक संस्थानों को आरटीई अधिनियम, 2009 से छूट देने के कारण केवल धार्मिक संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली से बाहर कर दिया गया और जबकि संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा करते हैं. इन स्कूलों के बच्चे आरटीई अधिनियम के तहत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की समान पहुंच से वंचित थे. इसमें कहा गया है कि जो बच्चों को सशक्त बनाने के लिए था, उसने अंततः गलत व्याख्या के कारण वंचितता और भेदभाव की नई परतें बनाईं.
प्रियांक खड़गे ने कहा कि एएसईआर जैसी रिपोर्टें भी राज्य भर में सरकारी स्कूलों में खामियों की ओर इशारा करती हैं. क्या इसका मतलब है कि आप उन्हें बंद कर दें और सरकारें उन्हें चलाना बंद कर दें? रिपोर्ट कानून नहीं है. राज्य सरकार रिपोर्ट का विस्तार से अध्ययन करेगी, उसके निष्कर्ष, कार्यप्रणाली और उसके आधार पर कॉल लेगी.
एनसीपीसीआर की रिपोर्ट की अन्य महत्वपूर्ण बिंदुएं :
– मदरसों में शिक्षक प्रशिक्षण और योग्यता का अभावः एनसीपीसीआर ने पाया कि मदरसों में शिक्षकों की योग्यता और प्रशिक्षण राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं है.
– धार्मिक ग्रंथों पर निर्भरताः मदरसों के शिक्षक मुख्य रूप से कुरान और अन्य धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन पर निर्भर हैं, जो आरटीई अधिनियम के अनुरूप नहीं है.
– सुविधाओं और अधिकारों से वंचितः मदरसे बच्चों को उन सुविधाओं और अधिकारों से वंचित करते हैं जो नियमित स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को मिलते हैं, जैसे ड्रेस, किताबें और मध्याह्न भोजन.
– जवाबदेही और पारदर्शिता का अभाव: मदरसों के लिए आरटीई अधिनियम के मानदंडों का पालन करने का कोई तंत्र नहीं होने के कारण, उनके कामकाज में जवाबदेही और पारदर्शिता का अभाव है.
– गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालने की सिफारिश: एनसीपीसीआर ने राज्य सरकारों से तत्काल कदम उठाने की सिफारिश की है ताकि हिंदू और गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकाला जा सके.
बाल आयोग की 3 सिफारिशें
मदरसों और मदरसा बोर्डों को राज्य की तरफ से दिए जाने वाले फंड को रोक दिया जाए।
मदरसों से गैर-मुस्लिम बच्चों को हटाया जाए। संविधान के आर्टिकल 28 के मुताबिक माता-पिता की सहमति के बिना किसी बच्चे को धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती।
एक संस्थान के अंदर धार्मिक और औपचारिक शिक्षा एक साथ नहीं दी जा सकती हैं।