यूं तो किसी भी पार्टी के जिलाध्यक्ष और शहर अध्यक्ष का पद अपने आप में प्रभावशाली होता है और उसे हथियाने की जोड़-तोड़ होती है लेकिन अगर यही पद सत्ता पक्ष का हो तो इसकी बात ही निराली है। मलाई के साथ दबंगई का गजब संयोजन होता है। आगरा में पांच साल से जमे जिलाध्यक्ष और शहर अध्यक्ष को बदलने की सत्ता की पार्टी में कवायद चल रही है। एक जमाने में अपने कार्य और व्यवहार के बलबूते पर मिलने वाले पद बड़े नेताओं के चहेतों को मिलने लगे थे लेकिन अब बदलते राजनीतिक परिदृश्य मे किसी माननीय की टिकट की तरह इनकी भी बोली लगने लगी है।
आगरा। चाल, चरित्र, चेहरे से सबसे अलग दिखने वाली और विश्व को सबसे बड़ी पार्टी अपने संगठन के चुनाव में पूरा तंत्र लगाए हुए है। वर्तमान स्थिति यह है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर मंडल अध्यक्षों को नियुक्ति होनी है। बारह महीने चुनावी मोह में रहने वाली पार्टी अब अपने संगठन को दुरुस्त करने में लग गई है। कुछ दिन पहले यही पार्टी सरकार और संगठन बड़ा है की बहस में उलझी हुई थी। अब फिलहाल संगठन पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
महानगर/जिलाध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष पद के चुनाव का कार्यक्रम घोषित होते ही हलचल बढ गई हैं।
पद के दावेदारों की भागदौड़ तेज हो चुकी है। सत्ता दल का अध्यक्ष होना अपने आप में एक आम बात है। मंडल अध्यक्ष से लेकर शहर अध्यक्ष जिला अध्यक्ष की दौड़ से आगरा शहर भी अछूता नहीं है।
राजनीतिक पंडित जातिगत आंकड़ों की भविष्यवाणी कर रहे हैं कि शहर अध्यक्ष अमुख जाति को जाएगा और जिला अध्यक्ष फलाना जाति के दावेदारों में से किसी एक को जाएगा।
असल खेल तो इस पार्टी के सिद्धांतों के बदलाव का है। कभी अटल सिद्धांतों पर चलने वाली यह पार्टी अब बिल्कुल बदल चुकी है। अब देवतुल्य कार्यकताओं को परवाह नहीं होती। या तो थैली से दमदार लोगों की आवभगत होती है या बाहर से हुए कद्दावर नेताओं की।
आगरा में भी शहर और जिला अध्यक्ष की तलवार खींच गई हैं। दावेदार अपने अपने कुर्ते पहनकर अपने आकाओं की गणेश परिक्रमा कर रहे हैं। रोज नए नाम जागरा की राजनीतिक गलियारों में घूमते हैं। पुराने दावेदार भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। वक्त की बलिहारी थी कि लोकसभा चुनाव का हवाला देकर पुराने काबिज पदधिकारियों को ही विस्तार मिल गया था। फिलहाल भाजपा में हर स्तर पर चुनाव कराने की तैयारी चल रही है। चुनाव पर्यवेक्षकों की नियुक्ति हो गई है। अपनी पसंद के मंडल की नियुक्ति के लिए भी रण सज गया है। क्योंकि उस पार्टी की विशेषता है कि अध्यक्ष या संगठन का कोई भी पद लेने के लिए मंडल अध्यक्षों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। भले ही कोई अपनी जनता में पकड़ साबित करने पर लगा हो या अपनी जाति के आंकड़े दिखा रहा हो, पर असल बात तो है कि दमदार बोली लग रही है। काफी समय से शहर के पक्के खिलाड़ी को राधे-राधे बोलकर बरसाने वाले की कृपा से भाजपा के चाणक्य के घर में एंट्री कर चुके हैं। पीछे हटने को तैयार नहीं है। है।
अभी तक माननीय बनने के लिए है। अटैची का वजन तोला जाता था लेकिन अब संगठन में पद के लिए भी अटैची वालों की बल्ले बल्ले है।
भले ही भाजपा के प्रदेश महामंत्री संगठन ने दावेदारों को सिफारिश न कराने की खुली हिदायत दे दी है, फिर भी बड़े नेता अपने अपने चहेतों के लिए लामबंदी में लगे हुए है। सभी जानते हैं जब शहर अध्यक्ष/जिलाध्यक्ष की बात होती है तो चुनाव होकर नेतृत्व द्वारा अपने चाहते को नियुक्ति कर दी जाती है। चुनाव का डंका केवल मंडल अध्यक्ष तक होता है। भले ही दावे चयन में निष्ठा और योग्यता की वरीयता के होते हो। सभी बड़े नेता संगठन चुनाव में विशेष रुचि ले रहे हैं। सांसद, विधायकों के साथ ही चुनाव मैदान में उतरने की मंशा रखने वाले नेता भी अपने-अपने दावेदार के लिए लामबन्दी करने में जुटे हुए हैं।
पुख्ता सूत्रों की मानें तो पुराने चेहरे ने रिपीट होने के लिए पेशगी पहुंचा दी है। जबकि शहर के कुछ माननीय अपने चेहरे को आगे करने में लगे हुए हैं। दिल्ली के सूत्र बता रहे हैं कि पुराना खिलाड़ी अभी हटने को तैयार नहीं है। अब बात पेटी की नही खोखों तक पहुच गई है ।
जहां तक जिले को बात है एक उपमुख्यमंत्री का आशीर्वाद पार हुए चेहरे की पंचवषीय योजना पूर्ण हो चुकी है, अब उनके रिपीट होने की संभावना न के बराबर है।
इसको देखते हुए कई अन्य दावेदार मातृ संगठन से लेकर लखनक दिल्ली में अपने आकाओं के चरण वंदन में लगे हुए हैं।
बताया जा रहा है कि जिले के बड़े पद के लिए बोली शहर से भी कम है। इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि इस पद के लिए अटैची वालों की कमी है । गाहे-बगाहे अनेकों नाम हवा में तैरते है। एक नाम फिर हवा में है जो कि 20 सालों से से विधानसभा हो, लोकसभा हो या संगठन के अध्यक्ष पद की घोषणा, अमुक नेताजी अपने आप को पूर्व में ही मनोनीत मान लेते है।
जब तक असली दावेदार की घोषणा नहीं हो जाती तब तक उनका मन शांत नहीं होता। पंचायत के कार्यक्रम के कुछ माननीयों द्वारा किया गया शक्ति प्रदर्शन भी सन्देश था कि उनको भी सुना जाये। यह तो वक्त ही बताएगा कि जिलाध्यक्ष-शहर अध्यक्ष का ताज किसके सिर पर बंधेगा पर दावेदार अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
साभार -NNI