नमामि गंगे: माँ गंगा की करुण पुकार, सुन न सके कलयुगी कुपूत मक्कार

अन्तर्द्वन्द

केंद्र और राज्य के पास नही है गंगा निर्मलीकरण का हिसाब

इलाहाबाद हाईकोर्ट की फटकार, शर्म करो मोदी सरकार

माँ गंगा की सेवा करने में मोदी हुए विफल

लखनऊ : भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित असि घाट पर वर्ष 2014 में वाराणसी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश और वाराणसी की जनता से कहा था कि ‘ माँ गंगा की सेवा करना मेरे भाग्य में है ‘ उन्होंने न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भी वर्ष 2014 में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए कहा था कि “अगर हम गंगा को साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 प्रतिशत आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी इसके साथ ही उन्होंने यह जोड़ा कि गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इसी सोच को क्रियान्वित करने के लिए और गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार द्वारा ‘नमामि गंगे’ नाम से एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन का शुभारंभ किया । केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते हुए वर्ष 2019-2020 तक नदी की सफ़ाई पर 20,000 करोड़ रुपये खर्च करने की केंद्र की प्रस्तावित कार्य योजना को मंजूरी दे दी और इसे 100 प्रतिशत केंद्रीय हिस्सेदारी के साथ एक केंद्रीय योजना के रूप में जमीन पर उतारना शुरू कर दिया ।

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल सहित अब कुल 8 वर्ष लगभग पूरे हो चुके है लेकिन गंगा सहित देश के अन्य नदियों की हालत जस की तस बनी हुई है, गंगा खुद अपने इस स्वघोषित पुत्र से खुद को ठगी महसूस कर रही है । जिन्होंने देश के सामने वाराणसी के असि घाट पर यह कहा था कि मैं नही आया, माँ गंगा ने मुझे बुलाया है ‘ । भारत की गोदी मीडिया ने भी देश के प्रधानमंत्री को गंगा के प्रति खूब आस्थावान बनाकर प्रचारित किया ,गंगा के किनारे बसने वाले लोगों में भी मोदी के इस अथाह प्रेम से गंगा के दिन वापस लौटने की उम्मीद जगी थी लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतता गया माँ गंगा के साथ मोदी सरकार का किया वादा किसी जुमले से कम नही निकला ।

1 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को केंद्र की इस महत्वपूर्ण योजना ‘नमामि गंगे’ के मामले पर कड़ी फटकार लगाया है ।इसके साथ सख्त टिप्पणी करते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि ऐसा लगता है कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के उद्देश्य नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा का पूरा प्रोजेक्ट ही आंखों में धूल झोंकने वाला है । यह मौखिक टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता एवं जस्टिस अजित कुमार की पूर्ण पीठ ने गंगा प्रदूषण को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर बुधवार को सुनवाई करते हुए किया है ।

हाईकोर्ट ने गंगा में प्रदूषण स्तर को लेकर कराई गई जांच की रिपोर्ट की लीपापोती पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को कड़ी फटकार लगाया है ,इसके साथ ही आई आई टी कानपुर और बी एच यू की प्रदूषण रिपोर्ट को कोर्ट में प्रस्तुत न करने पर केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को आड़े हाथों लिया है । हाईकोर्ट ने इससे पहले नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के डायरेक्टर से जब यह सवाल पूछा था कि नमामि गंगे योजना में अब तक कुल कितनी धनराशि खर्च की गई है तो डायरेक्टर ने कोई जवाब कोर्ट में नही दिया । इसके साथ ही अन्य विभागों से भी जब कोर्ट ने जानकारी मांगी तो सभी ने संयुक्त रूप से जानकारी उपलब्ध कराने के लिए अदालत से समय मांगा । जिसपर हाईकोर्ट सख्त हो गया है । ग़ौरतलब है कि गंगा नदी का केवल सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है बल्कि देश की 40 प्रतिशत आबादी का जीवन गंगा नदी पर निर्भर है । केंद्र सरकार ने भी अपने प्रस्तावित एजेंडे में यह समझते हुए माना कि गंगा संरक्षण बहु-क्षेत्रीय और बहुआयामी है ,इसमें विभिन्न मंत्रालयों के बीच एवं केंद्र तथा राज्य के बीच बेहतर सामंजस्य बनाने और भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ केंद्र और राज्य स्तर पर निगरानी तंत्र को बनाने का प्रयास प्रस्तावित किया गया था ।

इसके शुरुआत में इसे योजना के क्रियान्वयन के लिए तत्काल प्रभाव में गतिविधियों का संचालन मध्यम अवधि में गतिविधियों को पांच वर्ष के भीतर लागू किया जाना था और लंबी गतिविधियों के लिए 10 साल के भीतर पूर्ण करने जैसे चरणों मे बांटा गया था । इसके शुरुआती चरण में गंगा नदी के ऊपरी सतह की सफाई से लेकर, ठोस कचरे का निस्तारण, ग्रामीण क्षेत्रों में सफाई और नालियों से आते मैले पदार्थ (ठोस व तरल) को रोकना, शौचालयों का निर्माण, शवदाह गृह का नवीकरण, आधुनिकीकरण और निर्माण ,अधजले या आंशिक रूप से जले शव को नदी में बहाने से रोका जाना, घाटों का निर्माण और आधुनिकीकरण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है । इसके मध्यम चरण की गतिविधियों में गंगा नदी में नगर निगम और उद्योगों से आने वाले कचरे की समस्या का निस्तारण तथा आगामी 5 वर्षों में 2500 एमएलडी अतिरिक्त ट्रीटमेंट कैपेसिटी का निर्माण किया जाना था ।

इसकी अन्य गतिविधियों में जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण, पानी की गुणवत्ता की निगरानी के अलावा गोल्डन महासीर, डॉल्फिन, घड़ियाल, कछुआ, उदविलाव के संरक्षण के लिए कार्यक्रम पहले से ही शुरू किया गया था, इसके अगली कड़ी में जलवाही स्तर की वृद्धि, कटाव कम करने और नदी के पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति में सुधार के लिए 30 हजार हेक्टेयर भूमि पर वन लगाए जाने का प्रस्ताव बना हुआ था, व्यापक स्तर पर जल की गुणवत्ता की निगरानी के लिए 113 रियाल टाइम जल गुणवत्ता निगरानी केंद्र स्थापित किये जाने की योजना भी बनी हुई थी । लेकिन इस पूरे प्रस्तावित योजना को अमली जामा पहनाने में केंद्र और राज्य सरकार पूरी तरह विफल रही है ।

तो केंद्रीय मंत्री ने लोकसभा में झूठ बोला था ?

देश के नागरिकों को भावनात्मक रूप से यथार्थ से परे कर देना और उसका गोदी मीडिया द्वारा महिमांडन करके हकीकत पर पर्दा डाल देना मोदी और भाजपा की राजनीतिक रणनीति का प्रमुख हिस्सा है, जिसके आधार पर चुनाव जीतने की पटकथा लिख दी जाती है ,लेकिन हाईकोर्ट की फटकार के बाद यह और स्पष्ट हो गया कि नमामि गंगे योजना को चुनावी प्रचार का हिस्सा बनाकर जनता की भावनाओं को अदब में लेने का प्रयास भाजपा यह एक कुटिल प्रयास था ।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में केंद्रीय जलशक्ति एवं सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्यमंत्री रतन लाल कटारिया ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में नमामि गंगे योजना पर संसद को बताया था कि भारत सरकार ने नमामि गंगे योजना 2014 में शुरू किया है, जिसमे 2014-15 से 31 दिसम्बर 2020 तक की अवधि के लिए 20,000 करोड़ रुपये के कुल बजटीय परिव्यव के साथ प्रदूषण के प्रभावी उन्मूलन ,संरक्षण ,कायाकल्प के दोहरे उद्देश्यों को पूरा साफ करने के लिए निर्धारित किया गया है । वित्तीय वर्ष 2020-21 के बजट में ,भारत सरकार ने नमामि गंगे कार्यक्रम के लिए 1,600.02 करोड़ रुपये का आवंटन भी प्रस्तावित किया गया था ।

फिर वित्त वर्ष 2019-20 के लिए बजट में आवंटन 1,970 करोड़ रुपये और एन एमसीजी के लिए संशोधित आवंटन 1,553.44 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया था । इसलिए केंद्र ने यह माना था कि कि बजट अनुमानों (बी ई) के संदर्भ में संशोधित अनुमान (आर ई ) में अंतिम आवंटन केवल 21 प्रतिशत कम है ।

भारत सरकार द्वारा स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन और बाद में इसके द्वारा राज्य सरकारों /राज्य सरकार एजेंसियों/ राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूहों/ केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमो /अन्य कार्यकारी एजेंसियों को जारी अंतिम आवंटन और निधियों का विवरण सहित फंड व्यय /रिलीज किया गया था । वर्ष 2014-15 में 20,053 करोड़ रुपये, 326 करोड़ रुपये, 170.99 करोड़ रुपये तथा वर्ष 2015-16 में 1,650 करोड़ रुपये ,1,632 करोड़ रुपये, 602.60 करोड़ रुपये वर्ष 2016-17 में 1,675 करोड़ रुपये, पुनः 1,675 करोड़ रुपये, 1,062.81 करोड़ रुपये, वर्ष 2017- 18 में 3,023.42 करोड़ रुपये ,1,423.12 करोड़ रुपये,1,625 करोड़ .01 करोड़ रुपये वर्ष 2018-19 में 2,370 करोड़ रुपए,2,307.50 करोड़ रुपये, 2,626.54 करोड़ रुपये तथा वर्ष 2019-20 में 1,553.44 करोड़ रुपये, 1,553.40 करोड़ रुपये,.2,254. 19 करोड़ रुपये भारत सरकार द्वारा वास्तविक रिलीज फंड है ।

(स्रोत- पीआईबी )

लेकिन इन राशियों का खर्च करने का विवरण न तो केंद्र सरकार के पास है और ही राज्य सरकार के पास है

लोकसभा में केन्द्र सरकार का दावा था कि नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत कुल 28,790 करोड़ रुपये की लागत से सीवरेज इंफ्रास्ट्रक्चर, घाट,शमशान,नदी के सामने के हिस्से का विकास,नदी की सतह की सफाई, संस्थागत विकास, जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण और ग्रामीण स्वच्छता जैसे कुल 310 परियोजना को मंजूरी दी गई है जिसमे 116 परियोजना को पूर्ण कर लेने का भी दावा किया गया था ।

अपने लिखित जवाब में केंद्र ने लोक सभा को यह भी बताया था कि देश के कुल 8 राज्यों में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल,दिल्ली,हरियाणा, हिमाचल प्रदेश में अबतक 4857 एमएलडी सीवेज शोधन क्षमता, सीवर नेटवर्क के निर्माण/पुर्नवास के लिए कुल 152 सीवरेज बुनियादी ढांचा परियोजना को मंजूरी दी गई थी ।

लेकिन ये सभी परियोजना अभी तक पूर्ण नही हो पाई है और न ही इसके आंकड़े सरकारों के पास है ।

गंगा में गिर रहे 15 शहरों के 74 नालो के गंदे पानी :

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा गंगा में गिर रहे नाले के पानी की जब रिपोर्ट मांगी गई तो न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण कुमार गुप्ता ने हाईकोर्ट से बताया कि यूपी में गंगा 15 शहरों से गुजरती हैं। उसके लिए साइट प्लान की रिपोर्ट प्रमुख सचिव नमामि गंगे की ओर से दाखिल किया गया है। इन शहरों में 74 नाले हैं, जो गंगा में गिर रहे हैं। इस पर कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता नीरज तिवारी से पूछा कि इन शहरों की एसटीपी से शहरों के नालों को जोड़ा गया है या नहीं।

इस पर न्यायमित्र गुप्ता ने कहा कि प्रयागराज सहित अन्य जिलों में तकरीबन 58 से 60 फीसदी कनेक्ट किया गया है। तीन जिलों में बलिया, प्रतापगढ़ सहित तीन जिलों में एसटीपी नहीं बनी हैं।

-राजीव सिंह


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