एमएसएमई उद्योगों को सुप्रीमकोर्ट से नहीं मिली राहत, 45 दिनों में भुगतान वाली याचिका खारिज

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नई दिल्ली। एमएसएमई उद्योगों को सुप्रीमकोर्ट से राहत नहीं मिल पाई है। सर्वोच्च न्यायालय ने 45 दिनों में भुगतान वाली याचिका को पिछले सप्ताह खारिज कर दिया। नियमों के अनुसार समय-सीमा का पालन न करने पर आरबीआई की तरफ से तय बैंक रेट से तीन गुना चक्रवृद्धि ब्याज के बराबर जुर्माना लगाया जाएगा।

बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइज (एमएसएमई) के नए नियम के विरुद्ध की याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में आयकर एक्ट के तहत एक नियम को चुनौती दी गई थी। नए नियम के तहत एमएसएमई में पंजीकृत व्यापारियों को 45 दिनों के भीतर खरीदारों द्वारा रकम देनी आवश्यक है, वही विक्रेता भी 45 से ज्यादा दिनों के लिए उधार नहीं दे सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने और उच्च न्यायालय में अपील करने की अनुमति दे दी।

इनकम टैक्स एक्ट की धारा 43B(h) का उद्देश्य एमएसएमई के बीच कर्ज बांटने की प्रथाओं को विनियमित करना, समय पर भुगतान सुनिश्चित करना और वर्किंग कैपिटल की कमी को दूर करना है। इसके तहत समय पर भुगतान न करने के कई प्रकार के नुकसान हो सकते हैं। पैसा चुकाने में देरी आर्थिक रूप से बहुत भारी पड़ सकती है।

नियम के मुताबिक जुर्माने की रकम को भी तय किया गया है। इसके अनुसार समय-सीमा का पालन न करने पर, रिजर्व बैंक की तरफ से तय बैंक रेट से तीन गुना चक्रवृद्धि ब्याज के बराबर जुर्माना लगाया जाएगा। इसके अलावा, वे अपनी टैक्सेबल इनकम से एमएसएमई को किए गए भुगतान में कटौती करने की क्षमता को भी खो सकते हैं।

कॉन्फ़डरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स महाराष्ट्र प्रदेश के महामंत्री एवं अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया कि यह प्रावधान तब लागू होता है जब कोई बिजनेस माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइज डेवलपमेंट एक्ट, 2006 (एमएसएमई) विकास अधिनियम, 2006 (एमएसएमईडी एक्ट) के तहत पंजीकृत व्यापारी से सामान खरीदता है या सेवाएं लेता है।
कुछ एमएसएमई ने चिंता जताई है कि इस प्रावधान से बड़े खरीदार छोटे और मीडियम सप्लायर्स को नजरअंदाज कर सकते हैं और इसके बजाय ऐसे एंटरप्राइज से खरीदारी कर सकते हैं जो रजिस्टर्ड नहीं है।

शीर्ष अदालत ने एमएसएमई की ओर से याचिका दायर करने वाले फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया व्यापार मंडल को याचिका वापस लेने और हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की अनुमति दी।

कैट की तरफ से कहा गया कि फरवरी में कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के प्रतिनिधियों ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की थी और क्लॉज के लागू करने को अप्रैल 2025 तक टालने का अनुरोध किया था।

वित्त मंत्रालय को एक ज्ञापन में, हमने सरकार के फैसले के लिए समर्थन व्यक्त किया, जिसमें व्यापारियों को 45 दिनों के भीतर एमएसएमई क्षेत्र को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के महत्व पर जोर दिया गया। हालाँकि नई धारा में स्पष्टता की कमी के चलते सरकार से इस खंड के लागू करने को तब तक निलंबित करने का आग्रह किया। या जब तक कि स्पष्टीकरण और सूचना का पूरे देश में प्रसार नहीं हो जाता। अब जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस पर कोई राहत नहीं दी है व्यापारियों को इस कानून की पालना करते हुए ही अपना व्यापार करना चाहिए।

दूसरी तरफ व्यापारियों का संगठन फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया व्यापार मंडल (एफएआईवीएम) चेन्नई और पश्चिम बंगाल के संगठनों के साथ आयकर की धारा 43 बी (एच) के तहत पेश किए गए नए खंड के खिलाफ अगले सप्ताह मद्रास, कलकत्ता और गुजरात के उच्च न्यायालयों में जा सकता है।

अधिनियम, व्यवसायों को कर लाभ प्राप्त करने के लिए अपने सूक्ष्म और लघु उद्यम (एमएसई) विक्रेताओं को समय पर भुगतान करने के लिए 45-दिवसीय भुगतान नियम प्रदान करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने 06 मई को एफएआईवीएम, मद्रास मर्चेंट्स एंड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन और कन्फेडरेशन ऑफ वेस्ट बंगाल ट्रेड एसोसिएशन की याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें नए प्रावधान पर अंतरिम रोक लगाने या इसे रद्द करने की मांग की गई थी।

-एजेंसी