मोहब्बत की दुकान: बीजेपी और आरएसए पर अटैक करते-करते खुद की ही सरकार पर आरोप लगा गए राहुल गांधी, जानिए कैसे!

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हाशिमपुरा नरसंहार की कहानी

थोड़ा समझने की जरूरत है. जिस 80 के दशक की बात राहुल गांधी कर रहे हैं. उसी दशक में मुस्लिमों के साथ बड़े अपराध हुए. हाशिमपुरा नरसंहार की कहानी से रूह कंपा देती है. आजादी के बाद शायद ऐसा पहली बार हो रहा था. 21-22 मई की रात ऐसा कत्ल ए आम हुआ कि शायद मुस्लिम युवकों को पीएसी ने गोलियों से भूंज दिया. इससे भी शर्मनाक बात ये है कि कभी उस कांड की जांच तक नहीं हुई.

मेरठ के मलियाना में कत्ल ए आम

हाशिमपुरा कांड के अगले ही दिन मेरठ का एक गांव मलियाना जल उठा. ऐसे दंगे भड़के की 68 मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया गया. दिन था 23 मई 1987. 1986 की फरवरी में जब अयोध्या राम मंदिर बाबरी मस्जिद का ताला खोला गया. तब देश में कांग्रेस और राज्य में भी कांग्रेस की सरकार थी. मेरठ में भयंकर तनाव था. छोटे-मोटे दंगे हो रहे थे. हाशिमपुरा में जो हुआ वो आजाद भारत पर कलंक से कम नहीं था. इस वक्त देश के आंतरिक सुरक्षा राज्य मंत्री पी चिदंबरम थे जो बाद में गृह मंत्री भी रहे. गांव में आज भी बुजुर्ग लोग इसको याद कर रोने लगते हैं. पीएसी ने एक ट्रक में 50 मुस्लिम लड़कों को भरा. पीएसी जवानों के पास थ्री नॉट थ्री की रायफलें थीं. बस इसके बाद सभी को गोली मार दी गई. इसके बाद अलग-अलग जगहों पर लाशें फेंक दी गईं.

PAC जवानों पर हत्या का आरोप

ठीक एक दिन बाद ही यानी 23 मई 1987. मेरठ का मलियाना नरसंहार. इसमें भी आरोप हैं कि जिस भीड़ ने मुसलमानों के 68 लोगों को मार दिया उसमें पीएसी के जवान भी शामिल थे. हाशिमपुरा और मलियाना के बीच की दूरी 10 किलोमीटर की है. एक दिन पहले हाशिमपुरा और दूसरे दिन मलियाना. एक के बाद एक गांव जलते जा रहे थे. लेकिन हुकूमतों को कोई फर्क नहीं लड़ रहा था. यहां पर सेना को तैनात करना पड़ा था. राहुल गांधी मोहब्बत की मोहब्बत की दुकान में मुसलमानों के साथ हुए इन अपराधों का कोई बोध नहीं नहीं हुआ. उनकी नजर अमेरिका में सिर्फ दलितों पर ही पड़ी.

1989 बदायूं में दंगा, मौतें

सितंबर 1989 में बदायूं में दंगे भड़क गए. देखते ही देखते आग चारों ओर फैल गई. दंगों में बहुत सारे लोगों की मौतें हुईं थी. मामला था कि उर्दू को दूसरी राजभाषा की मांग बनाने का. दोनों समुदाय के लोग पुलिस पर आज भी सवाल उठाते हैं. कहा जाता है कि इसमें दोनों समुदायों की मौत हुई थी. पुलिस इसको भी रोकने में नाकाम रही. आपको जानकर हैरानी होगी कि 1989 में राजू नाम का एक शख्स था. जोकि शवों को पोस्टमार्टम हाउस तक पहुंचा रहा था. बाद में राहुल की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.

1980 मुरादाबाद दंगे

1980 में मुरादाबाद दंगे भड़के. नमाज के बाद दंगे हुए थे और कई जानें गईं थीं. 43 साल के बाद योगी सरकार इसकी रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी जानी है. इन 43 सालों में यूपी में 15 सीएम हुए. किसी ने भी जहमत नहीं उठाई की इसकी सच्चाई बाहर आए. दंगे की जांच सक्सेना आयोग ने की थी. जांच की रिपोर्ट इतनी हैरतभरी थी कि सभी सरकारों ने इसे पर्दे के पीछे रखना ही उचित समझा. इसमें 83 लोगों को मौत हुई थी और 112 लोग घायल हुए थे. सूत्रों ने बताया कि इसका मुख्य आरोपी था मुस्लिम लीग का प्रदेश अध्यक्ष. ये मुरादाबाद का ही रहने वाला था. मगर ये रिपोर्ट कभी सामने नही आई. लेकिन राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान में इन हिंसा का जिक्र नहीं हुआ. देश में कांग्रेस की ही सरकार हुआ करती थी.

1988 मुजफ्फरनगर दंगे

दंगा शब्द सुनते ही रूह कांप जाती है. आंखों में खून, हाथों पर हथियार लेकर जब भीड़ निकलती है तो वो सिर्फ मौत बांटती है. 2013 में मुजफ्फरनगर में दंगे हुए थे मगर 1988 में दंगे हुए. मुजफ्फरपुर में यूं तो 12 बार दंगे हुए मगर इनमे से सबसे खौफनाक था गांधी कालोनी में हुआ था. महीना अक्टूबर का था. 35 दिन तक ये दंगा चलता रहा. सात लोगों की मौत हुई थी 112 लोग घायल हुए थे. कांग्रेस की सरकार थी. गृह राज्य मंत्री रहते हुए सईदुज्जमां को अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ता पर मीसा के तहत कार्रवाई करनी पड़ी थी.

-एजेंसी


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