2 जून की रोटी को लेकर सोशल मीडिया पर आई मीम्स की बाढ़, जानिए क्या है पूरा माजरा!

Cover Story

जून का महीना आते ही लोगों को दो चीजों की याद सबसे ज्यादा आती है, एक तो बेहाल करने वाली गर्मी से बचाने के लिए बारिश की, और दूसरा, ‘2 जून की रोटी’ की! आपने अक्सर लोगों से दो जून की रोटी के बारे में सुना होगा. कोई मजाक में कहता है तो कोई सीरियस होकर, पर क्या आप वाक्य का अर्थ जानते हैं? मीम्स में भी दो जून का काफी प्रचलन है, लोग इसके जुड़े फनी पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयर भी करते हैं. इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर ‘दो जून की रोटी’ का अर्थ क्या होता है! और इसे लेकर इतने मीम क्यों बनते हैं.

जिस ‘जून’ को हम महीने के तौर पर जानते हैं, उसे अवधी भाषा में ‘वक्त’ के रूप में जाना जाता है. तो दो जून की रोटी का अर्थ हुआ, दो वक्त की रोटी. यानी सुबह और शाम का भोजन. जब किसी को दोनों वक्त का खाना नसीब हो जाए तो उसे दो जून की रोटी खाना कहते हैं और जिसे नहीं मिलता उसके लिए कहा जाता है कि दो जून की रोटी तक नहीं नसीब हो रही है! वाकई ये रोटी सिर्फ किस्मत वालों को मिलती है और अगर आप उनमें से एक हैं तो आपको परमात्मा का शुक्रगुजार होना चाहिए.

इतिहासकारों ने भी किया है रचनाओं में जिक्र
बड़े-बड़े इतिहासकारों ने दो जून की रोटी का जिक्र अपनी रचनाओं में किया है. प्रेमचंद से लेकर जयशंकर प्रसाद तक ने इस कहावत को अपनी कहानियों में शामिल किया. महंगाई के दौर में अमीर तो भर पेट खाना खा लेते हैं, पर गरीबों के लिए दो जून की रोटी भी नहीं नसीब है. आपने इस तरह के वाक्य अक्सर कहानियों या खबरों में पढ़े होंगे. इसमें भी जून महीने से नहीं, बल्कि दो वक्त के खाने से ही मतलब है.

सालों पुरानी है कहावत

आज दो जून 2025 है और एक बार फिर सोशल मीडिया पर ये ट्रेंड हो रही है. एक ओर जहां अवधी भाषा में जून का मतबल वक्त होता है, दूसरी ओर लोग सोशल मीडिया पर ये अंदाजा लगाते रहते हैं कि आखिर रोटी को जून के महीने से ही क्यों जोड़ा गया है. ऐसे में लोग काफी अनोखे अंदाजे लगाते हैं जो सुनने में गलत भी नहीं लगते. कुछ लोग कहते हैं कि जून का महीना सबसे गर्म होता है और इसमें किसानों से लेकर गरीब लोगों के लिए काफी मुश्किल भरे दिन गुजरते हैं. जब वो काम कर के थक जाते हैं और बेहाल हो जाते हैं, तब जाकर उन्हें रोटी नसीब होती है. कई लोगों का मानना है कि ये कहावत आज की नहीं, बल्कि 600 सालों से चली आ रही है.

-साभार सहित