हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म पर यकीन किया जाता है। बौद्ध धर्म में तो अपने गुरु यानी लामा को चुनने की प्रक्रिया में भी इसका अहम रोल होता है। हिमाचल प्रदेश के स्पीति में 4 साल के एक बच्चे को बौद्ध धर्म के निंगमा संप्रदाय का सुप्रीम चुना गया है। उसे दिवंगत लामा तकलुंग सेतरूंग रिनपोचे का पुनर्जन्म माना गया है। वह शिमला स्थित दोरजी दक मठ के प्रमुख की भूमिका निभाएंगे.
तिब्बती बौद्धों की चार शाखाओं में सबसे पुराने संप्रदाय के प्रमुख के लिए छह साल से चल रही तलाश अब जाकर खत्म हुई। 24 दिसंबर 2015 को रिनपोचे की मृत्यु हो गई थी। अंतिम संस्कार से पहले काफी समय तक उनके शव को मठ में सुरक्षित रखा गया था। ऐसे में लोगों के मन में यह जानने की उत्सुकता पैदा हो सकती है कि आखिर बौद्ध धर्म में दलाई लामा या फिर मठ प्रमुख कैसे चुने जाते हैं।
नर्सरी में पढ़ रहा था बच्चा और…
पिछले हफ्ते लामा का एक दल स्पीति में पिन वैली के रंगरिक गांव पहुंचा। वे नवांग ताशी रापतेन नाम के बच्चे को अपने साथ ले जाने आए थे। एक समारोह में उसे गद्दी पर बिठाया गया लेकिन वह शिक्षा पूरी होने के बाद पूर्ण रूप से जिम्मेदारी संभालेंगे। बाल काटने के साथ उन्हें धार्मिक वस्त्र पहनाए गए और मठ के गुरु की उपाधि दी गई। 16 अप्रैल 2018 को जन्मे इस बच्चे का इसी साल ताबो के सरकांग पब्लिक स्कूल में नर्सरी में दाखिला कराया गया था।
मां-बाप को खुशी और गम भी
नवांग के दादा ने बताया, ‘कई लामा हमारे पास आए और कहा कि क्या वह अपने बच्चे को हमे देंगे। उन्होंने रिनपोचे के पुनर्जन्म की बात बताई। हमने उनसे कहा कि हम बेहद खुश हैं और हम इस महान उद्देश्य के लिए अपना बच्चा क्यों नहीं देंगे।’ उसके पिता सोनम चोपेल और मां केसांग डोलमा खुश थे और गम भी चेहरे पर झलक रहा था।
सोनम ने कहा कि यह पूरी स्पीति घाटी और हिमाचल के लिए खुशी का मौका है। मां ने कहा कि बेटे से बिछड़ने की पीड़ा का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है लेकिन खुशी की बात है कि हमारे घर में एक महान साधु का जन्म हुआ है। मैं खुद को सौभाग्यशाली मानती हूं। बताते हैं कि 2015 में मृत्यु से पहले ही धर्मगुरु ने बता दिया था कि वह कहां जन्म लेंगे।
लामा की खोज
बौद्ध धर्म के अनुयायियों के सर्वोच्च गुरु दलाई लामा हों या संप्रदायों के प्रमुख गुरु, उन्हें चुनने की प्रक्रिया एक सी होती है। उनकी खोज पुनर्जन्म की अवधारणा पर आधारित होती है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प होता है कि इनके चयन की प्रक्रिया क्या होती है?
बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध के बाद सबसे ऊंचा दर्जा दलाई लामा को दिया जाता है। अनुयायी उन्हें भगवान के रूप में देखते हैं। लामा के चयन की लंबी प्रक्रिया है। वर्तमान लामा अपने जीवन के आखिरी पड़ाव में कुछ संकेत देते हैं जिससे अगले लामा की खोज शुरू होती है। उनकी बातों पर आगे बढ़ते हुए उस नवजात की खोज की जाती है। हालांकि हजारों-लाखों में यह काम इतना आसान नहीं होता है। अगले गुरु की खोज में कई साल लग सकते हैं। यह शुरुआत मौजूदा लामा के निधन के ठीक बाद शुरू हो जाती है।
समझिए पूरी प्रक्रिया
1. सबसे पहले उन बच्चों की खोज की जाती है जिनका जन्म लामा के देहांत के आसपास हुआ हो।
2. पूरी जानकारी लेने और बातचीत, विश्लेषण में कई महीने और साल लग जाते हैं।
3. जब तक नए लामा की तलाश पूरी नहीं होती है, तब तक कोई विद्वान उनका काम देखता रहता है।
4. कुछ बच्चों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है फिर उनमें वो लक्षण या संकेत ढूंढे जाते हैं जो लामा से मिले होते हैं।
5. इसे परीक्षा की तरह समझ सकते हैं। अगर एक से ज्यादा बच्चों में संकेत दिखते हैं तो स्थिति जटिल हो जाती है।
6. ऐसे में उन बच्चों की शारीरिक और मानसिक परीक्षा ली जाती है। उन्हें पहले के लामा की व्यक्तिगत वस्तुओं की पहचान करने का टास्क दिया जाता है।
7. मौजूदा दलाई लामा की पहचान दो साल की उम्र में की गई थी।
Compiled: up18 News
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