आतंकवाद से पूरी तरह मुक्त होगा जम्मू-कश्मीर, आर्मी और पुलिस को ट्रेनिंग शुरू

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पहले कोर बैटल स्कूल में पुलिस की स्पेशल टीम ले चुकी है ट्रेनिंग

सूत्रों के मुताबिक पहले आर्मी के कोर बैटल स्कूल में पुलिस की स्पेशल टीम की ट्रेनिंग हो चुकी है लेकिन पहली बार इतनी बड़ी संख्या में जॉइंट ट्रेनिंग शुरू की गई है। एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में तीन दशकों से ज्यादा वक्त से आर्मी और जम्मू-कश्मीर पुलिस मिलकर आतंकवाद विरोधी अभियान चला रहे हैं। कई सफल ऑपरेशन किए हैं और आतंकवाद पर कड़ा प्रहार किया है। जॉइंट ट्रेनिंग के जरिए आर्मी और जम्मू-कश्मीर पुलिस में समन्वय और बेहतर होगा साथ ही ऑपरेशनल क्षमता भी बढ़ेगी।

हजार से ज्यादा पुलिसकर्मी ले रहे ट्रेनिंग

कोर बैटल स्कूल में अभी जिस बैच की ट्रेनिंग चल रही है उसमें 62 डीएसपी हैं और 1000 से ज्यादा पुलिस सब इंस्पेक्टर हैं, इनमें महिलाएं भी शामिल हैं। ट्रेनिंग का फोकस ऑपरेशनल टेक्टिक्स है साथ ही इंटेलिजेंस शेयरिंग है। ट्रेनिंग के दौरान काउंटर टेररिजम यानी आतंकवाद विरोधी स्ट्रैटजी पर भी फोकस किया जाएगा, जिसमें आर्मी का लंबा अनुभव है। आर्मी के अलग अलग कोर के अलग अलग बैटल स्कूल हैं। जिनमें आर्मी के जवानोँ और अधिकारियों को इंडक्शन से पहले ट्रेनिंग दी जाती है।

आर्मी लाइन ऑफ कंट्रोल पर तैनाती से पहले सैनिकों को कोर बैटल स्कूल में 14 दिन की ट्रेनिंग देती है। अलग-अलग ऑपरेशन से मिले सबक के हिसाब से यहां सैलेबस में बदलाव होता रहता है। काउंटर इनसरजेंसी ऑपरेशन के लिए तैनात होने वाले सैनिकों को बैटल स्कूल में 28 दिन की ट्रेनिंग दी जाती है। यहां सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल रैंक तक के अधिकारी, जेसीओ और जवानों सभी की एक तरह की ट्रेनिंग होती है।

पुलिस मॉड्यूल में भी किए गए बदलाव

जम्मू-कश्मीर पुलिस के लिए जो मॉड्यूल तैयार किया गया है उसमें कुछ बदलाव भी किए गए हैँ। एक अधिकारी के मुताबिक आर्मी के जवान और अधिकारी अलग-अलग जगहों पर तैनात रहते हैं। कुछ पीस लोकेशन के बाद यहां तैनाती के लिए आते हैं तो उन्हें उसी हिसाब से यहां के लिए तैयार किया जाता है। लेकिन जम्मू-कश्मीर पुलिस यहीं तैनात हैं इसलिए उन्हें कई चीजें पहले से ही मालूम होती हैं, ट्रेनिंग में इसका भी ध्यान रखा गया है।

ऑपरेशन के दौरान समन्वय जरूरी

यह ट्रेनिंग जम्मू-कश्मीर में होने वाले आतंक विरोधी ऑपरेशंस को ज्यादा मजबूत करेगी। आर्मी की ट्रेनिंग शुरू से होती आई है लेकिन पुलिस की ट्रेनिंग अलग तरह की होती है। जब दोनों किसी ऑपरेशन में साथ होते हैं तो दोनों का वहां के हालात और स्ट्रैटजी की बारीकियों के साथ ही रूल्स ऑफ इंगेजमेंट समझना भी जरूरी है।

जम्मू-कश्मीर में भी सभी जगह हालात एक से नहीं हैं। हर जगह आंतकियों से अलग तरह से निपटना होता है। जैसे अर्बन एरिया में आतंकी अलग तरीका अपनाते हैं तो लाइन ऑफ कंट्रोल के पास के गांव में अलग तरीका। आर्मी और पुलिस जब साथ ऑपरेशन करते हैं तो पूरी टीम के लिए इसे समझना जरूरी है। इंटीग्रेटेड ट्रेनिंग इस दिशा में बड़ा कदम है।

-एजेंसी