आगरा। ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस कथन से इत्तेफाक नहीं रखते कि हिंदुओं को अपनी संख्या बढ़ानी चाहिए। शंकराचार्य का कहना है कि विचार करें कि संख्या बल बढ़ाने वालों को क्या मिला है? सनातन की संख्या बढ़े, इससे हमें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन गुणवत्ता बढ़ाने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, तभी हम दुनिया में जगद्गुरु की उपाधि पुनः प्राप्त कर सकेंगे।
ग्वालियर से हरिद्वार जाते समय कुछ समय के लिए यमुना एक्सप्रेसवे पर रुके शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती अपने स्वागत के लिए पहुंचे आगरा के धर्मावलंबियों से बातचीत कर रहे थे। संघ प्रमुख का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि एक चंद्रमा उदित हो जाए तो संसार का अंधकार हर लेता है, लेकिन करोड़ों तारे मिलकर भी प्रकाश नहीं फैला सकते। संख्या बल से कोई प्रभावित नहीं होता है। पराक्रम और सद्गुणों से ही आप किसी को प्रभावित कर सकते हैं।
शंकराचार्य ने कहा कि सनातन धर्म पूरे विश्व का प्रेम से पालन करने का भाव रखता है। विश्व की वर्तमान स्थिति में सनातन की बहुत आवश्यकता आ गई है, क्योंकि ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना अब कमजोर होने लगी है। इसी भावना को सीखने के लिए कभी विदेशों से लोग यहां आते थे और भारतवर्ष जगद्गुरु कहलाता था।
प्लेसेज ऒफ वर्शिप एक्ट का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ईसाई प्रार्थना करते हैं, मुस्लिम नमाज़ पढ़ते हैं, किंतु वर्शिप अर्थात पूजा केवल हिंदू ही करते हैं, इसलिए यह एक्ट हिंदू धर्मस्थलों से संबंधित है। अभी इस पर अंतरिम रोक लगाई गई है, अंतिम नहीं, वरना यह प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध हो जाएगा। उन्होंने कहा कि विचार करने के लिए सदैव गुंजाइश रहनी चाहिए। थोड़ी देर के लिए रोक लगाने में कोई बाधा नहीं है, लेकिन यथास्थिति सदा के लिए नहीं हो सकती।
उन्होंने विश्वास जताया कि अंतरिम रोक हट जाएगी, यदि नहीं हटती है तो इस पर आगे चर्चा की जाएगी। अपने स्वागत के लिए पहुंचे डॊ. दीपिका उपाध्याय समेत अन्य लोगों को शंकराचार्य ने आशीर्वाद दिया और शीतकालीन चार धाम यात्रा प्रारंभ करने के लिए हरिद्वार प्रस्थान कर गए।
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