भारत न केवल सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बल्कि यह लोकतंत्र की जननी भी है: जेपी नड्डा

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लोकतंत्र पर कही ये बात

नड्डा ने कहा कि ‘हम जो त्योहार मनाते हैं, वह एक प्रकार से संविधान के प्रति हमारे समर्पण और संविधान के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को मजबूत करता है। मुझे विश्वास है कि हम इस अवसर का सदुपयोग कर राष्ट्रीय लक्ष्य को पूरा करेंगे। हम सभी जानते हैं कि भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री ने कहा कि यह न केवल सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बल्कि यह लोकतंत्र की जननी भी है।’

उन्होंने कहा, ‘जब हम संस्कृति की बात करते हैं तो कई बार लोग यह महसूस करते हैं कि हम प्रगतिशील नहीं हैं। मैं उनका ध्यान इस ओर दिलाना चाहता हूं कि संविधान की मूल प्रति में अजंता और एलोरा की गुफाओं की भी छाप थी। हम उस पर कमल की छाप भी देखते हैं। कमल इस बात को दर्शाता है कि कीचड़ और दलदल से बाहर आने और आजादी के लिए लड़ने के बाद हम एक नई सुबह और नए संविधान के साथ खड़े होने के लिए तैयार हैं। इसलिए हमारा संविधान भी कमल से हमें यह प्रेरणा देता है कि तमाम परेशानियों के बावजूद हम लोकतंत्र को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।’

सरदार पटेल को देश को एकजुट करने का काम दिया...

उन्होंने आगे कहा, ‘तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल को देश को एकजुट करने का काम दिया गया था और मुझे बहुत खुशी हुई कि लंबे समय के बाद मैंने कांग्रेस की तरफ से भी सरदार वल्लभभाई पटेल का नाम सुना। उन्होंने 562 रियासतों का विलय किया और जम्मू-कश्मीर को तत्कालीन प्रधानमंत्री के सुपुर्द कर दिया।’

आपातकाल को लेकर कांग्रेस पर हमला

केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने कहा, ‘आपातकाल लगाए जाने के अगले साल 50 साल हो जाएंगे। हम लोकतंत्र विरोधी दिवस मनाएंगे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को इसमें शामिल होना चाहिए और लोगों से अपील करनी चाहिए कि आपातकाल के दौरान 50 वर्षों तक लोकतंत्र का गला घोंटने का कुटिल प्रयास किया गया था। अगर आपके दिल में उनके लिए कहीं भी दया है, अगर आपके दिल में कहीं भी पछतावा है, तो मैं आपसे अपील करता हूं कि आप 25 जून 2025 को लोकतंत्र विरोधी दिवस में जरूर शामिल हों।’

उन्होंने यह भी कहा, ‘आपातकाल क्यों लगाया गया? क्या देश खतरे में था? नहीं, देश खतरे में नहीं था। कुर्सी खतरे में थी। यह केवल कुर्सी के बारे में था। इसके चलते पूरा देश अंधेरे में डूब गया।’

अनुच्छेद 370 पर निशाना

उन्होंने कहा, ‘अनुच्छेद 370 में, 35ए को 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से लाया गया था और 35ए को राष्ट्रपति का दर्जा दिया गया था, वह भी संसद में बहस के बिना। आजकल लोकतंत्र के बारे में बहुत चर्चा होती है, लेकिन आप राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से अनुच्छेद 370 में 35ए लाते हैं और आप इस पर बहस भी नहीं करते हैं। अनुच्छेद 35ए में यह परिभाषित किया गया है कि जम्मू और कश्मीर का नागरिक कौन होगा। केवल उन लोगों को नागरिक माना जाएगा जो 1944 से पहले रहते थे।’

उन्होंने आगे कहा, ‘एक काम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया गया था और हम सभी ने इसे पिछले दरवाजे से अनुच्छेद 370 और 35ए के रूप में देखा था। पीओके से आए शरणार्थी इसके नागरिक नहीं बन सके। अनुच्छेद 370 के प्रभाव पर कभी चर्चा नहीं की गई। भारतीय संसद द्वारा पारित 106 कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते थे, जिसमें अत्याचार निवारण अधिनियम, मानवाधिकार अधिनियम शामिल हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि पॉस्को (POCSO) को जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किया गया था।

जवाहरलाल नेहरू महिलाओं के संपत्ति के अधिकार के सबसे बड़े पैरोकार थे लेकिन जम्मू-कश्मीर में इसे लागू नहीं किया गया था। आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि अगर एक कश्मीरी बहन ने किसी गैर-कश्मीरी से शादी कर ली, तो उसे संपत्ति के अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता था।’


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