मधेस आंदोलन के दौरान साल 2015 में हुए भारत और नेपाल के बीच तनाव का फायदा उठाकर अपनी जड़ें जमाने की नापाक साजिश रच रहे चीन और पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है। भारत ने नेपाल को गुजरात और ओडिशा में अपने दो महत्वपूर्ण बंदरगाहों के इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है। चारों तरफ से जमीन से घिरा नेपाल अब साल 2023 से इन दोनों ही बंदरगाहों का इस्तेमाल व्यापार और ट्रांजिट के लिए कर सकेगा। भारत के इस दांव से चीन और पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है जो अपने बंदरगाहों के इस्तेमाल की अनुमति देकर भारत को घेरने की कोशिश कर रहे थे।
चीन अपनी कर्ज का जाल बन चुकी बीआरआई परियोजना को नेपाल तक बढ़ा रहा है और उसने अपने बंदरगाहों और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के रास्ते सामानों के आयात और निर्यात करने का ऑफर दिया था। चीन और नेपाल ने साल 2019 में एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किया था। अभी तक नेपाल भारत के रास्ते से ही सामानों का आयात निर्यात करता है। साल 2015 में भारत ने नेपाल की नाकेबंदी कर दी थी, इसके बाद दोनों ही देशों के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे। हालांकि अब दोनों के बीच रिश्ते काफी अच्छे हुए हैं। पिछले दिनों पीएम मोदी ने नेपाल की यात्रा भी की थी।
चीन और पाकिस्तान दोनों पर ही करारा वार
इससे पहले नेपाल ने भारत से मांग की थी कि वह नेपाली चाय और मसालों के लिए भारतीय बाजार मुहैया कराए। अब भारत ने नेपाल को लाइफ लाइन मुहैया कराकर चीन और पाकिस्तान दोनों पर ही करारा वार किया है। यही नहीं, रिपोर्ट के मुताबिक भारत नेपाल के कृषि उत्पादों को अपने बाजार में ज्यादा पहुंच देगा।
‘पड़ोसी पहले’ की नीति के तहत पीएम मोदी की सरकार ने फैसला किया है कि वह नेपाल को भारत के मुंद्रा पोर्ट और ओडिशा के धामरा रणनीतिक बंदरगाह से आयात और निर्यात की अनुमति देगी। इस पूरे मामले को लेकर अभी बातचीत जारी है।
रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार के इस फैसले से न केवल नेपाल की भारतीय बाजार तक पहुंच बढ़ जाएगी बल्कि काठमांडू अपने सामानों को दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य एशियाई देशों को निर्यात भी कर पाएगा। नेपाल लंबे समय से यह मांग कर रहा था कि व्यापार और ट्रांजिट के लिए कई दशक पहले हुई संधि को अपग्रेड किया जाए। इस संधि पर अंतिम बार साल 2016 में समीक्षा हुई थी। भारत अभी नेपाल का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है। नेपाल की केपी ओली सरकार ने भारत के साथ तनाव के बाद चीन के साथ दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दी थी।
नेपाल के लिए चीन के रास्ते व्यापार आसान नहीं
नेपाल और चीन के बीच समझौते के बाद अब काठमांडू को चीन के सात समुद्री और जमीनी बंदरगाहों तक तीसरे देश के साथ व्यापार की पहुंच मिली हुई है। इस डील के बाद भी नेपाल के लिए चीन के रास्ते व्यापार आसान नहीं है। सबसे बड़ी समस्या नेपाली पक्ष की ओर आधारभूत ढांचे की है। चीन की भाषा भी समस्या बनी हुई है। इसके अलावा नेपाल से चीन के बंदरगाह तक की दूरी भी 4000 किमी है, ऐसे में वहां तक भेजने का किराया भी बहुत ज्यादा होगा। यह भारत के कोलकाता बंदरगाह और नेपाल के बीरगंज के बीच दूरी का चार गुना है।
-एजेंसी