जुलाई 1947 के आखिरी हफ्ते में दिल्ली एयरपोर्ट पर एक चार्टर्ड विमान मोहम्मद अली जिन्ना को मुंबई ले जाने के लिए खड़ा था. जिन्ना के लिए खासतौर पर इस विमान की व्यवस्था की गई थी. ये यात्रा पूरी तरह सीक्रेट थी. किसी को नहीं मालूम था कि वो किस लिए मुंबई जा रहे हैं. वो और उनकी बहन फातिमा विमान पर सवार हुए. मुंबई में उतरते ही कार उन्हें जिस डॉक्टर के यहां लेकर गई, अगर उसने जिन्ना की बीमारी के रहस्य को छिपाया नहीं होता तो शायद ना पाकिस्तान बनता और ना ही भारत का बंटवारा हो पाता यानि देश का नक्शा ही कुछ और होता.
पिछले 50 सालों से लगातार सिगरेट और सिगार पी रहे जिन्ना की खांसी बहुत बढ़ गई थी. वो बुखार के साथ कमजोरी अनुभव कर रहे थे. उन्होंने ये बात सबसे छिपा रखी थी. हालांकि उस समय तक उन्हें भी नहीं मालूम था कि वो एक ऐसी बीमारी का शिकार हो चुके हैं, जिसके बाद उनके जीवन में बहुत कम समय रह गया है.
देश में उन दिनों बंटवारे की सरगर्मियां चल रही थीं. जिन्ना चाहते तो बीमारी के बारे में दिल्ली के किसी जाने-माने डॉक्टर से सलाह ले सकते थे. आखिर राजधानी में एक से बढ़कर एक डॉक्टर थे. उनमें कुछ बेहतरीन अंग्रेज डॉक्टर भी थे.
जुलाई 1947 के आखिरी हफ्ते में दिल्ली एयरपोर्ट पर एक चार्टर्ड विमान मोहम्मद अली जिन्ना को मुंबई ले जाने के लिए खड़ा था. जिन्ना के लिए खासतौर पर इस विमान की व्यवस्था की गई थी. ये यात्रा पूरी तरह सीक्रेट थी. किसी को नहीं मालूम था कि वो किस लिए मुंबई जा रहे हैं. वो और उनकी बहन फातिमा विमान पर सवार हुए. मुंबई में उतरते ही कार उन्हें जिस डॉक्टर के यहां लेकर गई, अगर उसने जिन्ना की बीमारी के रहस्य को छिपाया नहीं होता तो शायद ना पाकिस्तान बनता और ना ही भारत का बंटवारा हो पाता यानि देश का नक्शा ही कुछ और होता.
पिछले 50 सालों से लगातार सिगरेट और सिगार पी रहे जिन्ना की खांसी बहुत बढ़ गई थी. वो बुखार के साथ कमजोरी अनुभव कर रहे थे. उन्होंने ये बात सबसे छिपा रखी थी. हालांकि उस समय तक उन्हें भी नहीं मालूम था कि वो एक ऐसी बीमारी का शिकार हो चुके हैं, जिसके बाद उनके जीवन में बहुत कम समय रह गया है.
देश में उन दिनों बंटवारे की सरगर्मियां चल रही थीं. जिन्ना चाहते तो बीमारी के बारे में दिल्ली के किसी जाने-माने डॉक्टर से सलाह ले सकते थे. आखिर राजधानी में एक से बढ़कर एक डॉक्टर थे. उनमें कुछ बेहतरीन अंग्रेज डॉक्टर भी थे.
जिन्ना कतई नहीं चाहते थे कि वो दिल्ली में किसी डॉक्टर के पास जांच के लिए जाएं. सही बात ये भी है कि उन्हें दिल्ली के डॉक्टरों पर कतई विश्वास नहीं था. उन्हें अहसास था कि अगर उन्हें कोई गंभीर बीमारी हुई तो इसका पता तुरंत ब्रिटिश अधिकारियों और कांग्रेस को लग जाएगा. ये बात वाकई पाकिस्तान के बनने के लिए बहुत खराब होगी. तब शायद पाकिस्तान बनना ही रुक जाए.
जब बताया गया कि ये डॉक्टर पारसी है तो जिन्ना मान गए
उन्होंने मुंबई में मुस्लिम लीग के प्रमुख और दोस्त डॉक्टर हुसैन अली से बात की. हुसैन ने उनका अपाइंटमेंट मुंबई के जाने-माने पारसी डॉक्टर जाल रतनजी पटेल से फिक्स करा दिया. जिन्ना पहले भी पटेल के पास इलाज के लिए जाते रहे थे, लिहाजा वो उन्हें जानते थे. उन पर भरोसा कर सकते थे. इसीलिए जब हुसैन ने जिन्ना को बताया कि उनका अपाइंटमेंट डॉक्टर जाल पटेल के साथ फिक्स हुआ है तो जिन्ना तुरंत मान गए.
पारसियों की लोकप्रिय वेबसाइट “पारसी न्यूज डॉट नेट” का कहना है कि जिन्ना जब बहन फातिमा के साथ मुंबई में डॉक्टर के क्लीनिक पर पहुंचे तो डॉक्टर ने उन्हें जांचा परखा. उन्हें अंदाज होने लगा कि जिन्ना टीबी बीमारी के शिकार हो चुके हैं. ये बीमारी ऐसी स्टेज में पहुंच चुकी है कि जिन्ना को ठीक करना मुश्किल होगा. पुष्टि के लिए एक्स-रे की जरूरत थी. उन्होंने जिन्ना को एक्स-रे कराने का सुझाव दिया.
एक्सरे कराने पर भी उनका वो डर सामने आया
जिन्ना एक्स-रे नहीं कराना चाहते थे. उन्हें वही डर था कि अगर ये बात लीक हो गई तो क्या होगा. डॉक्टर पटेल ने उन्हें आश्वस्त किया कि जिस एक्स-रे क्लीनिक में उन्हें जाना होगा, वो भी एक पारसी डॉक्टर जाल देऊबु की है. वो विश्वस्त हैं, एक्स-रे के बारे में किसी को पता तक नहीं लगेगा. जिन्ना मान गए. एक्स-रे हुआ.
एक्सरे में साफ था कि वो एक-दो साल के मेहमान हैं.
उसमें साफ दिख रहा था कि उन्हें टर्मिनल ट्यूबरकोलाइसिस है. ये जिस स्टेज में है, उसमें वो एक-दो साल से ज्यादा नहीं जी पाएंगे. डॉ. पटेल ने जिन्ना को बताया कि उन्हें कौन सी बीमारी है. जिन्ना एकबारगी सिहर उठे, हालांकि उन्हें पहले ही अंदाज होने लगा था कि वो किसी गंभीर बीमारी की चपेट में आ चुके हैं. जिन्ना ने बस इतना कहा, उनकी बीमारी को हरसंभव गोपनीय रखा जाए. किसी को इसका पता नहीं चले.
दोनों पारसी डॉक्टरों ने सीक्रेट को उजागर नहीं किया
ऐसा ही हुआ. दोनों पारसी डॉक्टरों ने उन दिनों की तमाम सियासी उठापटक और बंटवारे की व्यापक हिंसा के बाद भी जिन्ना के इस सीक्रेट को कभी जाहिर नहीं होने दिया. बाद में जब बंटवारे के बाद जिन्ना ने पाकिस्तान बना लिया तो उन्होंने डॉक्टर पटेल को वहां आने और बड़ी पोजिशन संभालने का ऑफर दिया. हालांकि डॉक्टर पटेल ने इसे स्वीकार नहीं किया.
डोमिनिक लेपियर जब “फ्रीडम एट मिडनाइट” लिख रहे थे, तब वो डॉक्टर पटेल से मिले. पटेल उनसे गर्मजोशी से मिले. हालांकि वो बाम्बे के सबसे बिजी डॉक्टरों में थे. साथ ही वहां के ग्रांट मेडिकल कॉलेज के डीन भी थे. 40 के दशक से लेकर 60 के दशक के बीच उन्हें मुंबई के सबसे बड़े फिजिशियन के तौर पर गिना जाता था.
जब लेपियर उनसे मिले, तो उन्होंने लॉकर को खोलकर एक कांफिडेंशियल फाइल निकाली, जिस पर लिखा हुआ था मोहम्मद अली जिन्ना. ये फाइल उन्होंने लेपियर को देखने के लिए दी. हालांकि बाद में डॉक्टर पटेल की भूमिका पर सवाल भी हुए. ये सवाल हुए कि उन्होंने राष्ट्रहित में ये बात क्यों जाहिर नहीं की. हकीकत ये भी थी कि अगर ये बात पता लग जाती तो शायद वायसराय लार्ड माउंटबेटन और कांग्रेस बंटवारा नहीं करने पर अड़ जाते.
-एजेंसी