पेड़-पौधे के अवशेष, पारंपरिक तरीके से अवशेष से खाद बनाई जाती हैं, लेकिन अब ह्यूमन बॉडी के अवशेष को भी खाद के रूप में प्रयोग किया जाएगा. अमेरिका में राज्यों को इस तरह की कंपोस्टिंग के लिए अनुमति मिलती रही है. अब एक और नए स्टेट में इस प्रक्रिया को मंजूरी दी गई है.
न्यूयॉर्क में अब डेड बॉडी को जलाने या दफनाने की जरूरत नहीं होगी। उसे ईको-फ्रेंडली तरीके से उपजाऊ खाद में बदला जा सकेगा। इस मिट्टी को मृत व्यक्ति के परिवार वाले अपने बगीचे में इस्तेमाल कर सकते हैं। या चाहें तो जंगलों में बिखेरने के लिए दान भी कर सकते हैं। डेड बॉडी को मिट्टी में बदलने के इस तरीके को ह्यूमन कम्पोस्टिंग (Human Composting) कहा जाता है।
इस प्रक्रिया में डेड बॉडी को स्टेनलेस स्टील के एक सिलेंडर में रखा जाता है। उसके साथ में बायोडिग्रेडेबल मैटेरियल भी डाला जाता है। माइक्रोब डेड बॉडी और दूसरे मटेरियल को तोड़ते हैं। एक महीने के भीतर डेड बॉडी पोषक तत्वों से भरपूर मिट्टी में बदल जाती है।
ह्यूमन कम्पोस्टिंग की अनुमति देने वाला छठा राज्य बना न्यूयॉर्क
न्यूयॉर्क के गवर्नर कैथी होचुल ने ह्यूमन कम्पोस्टिंग कानून को पास कर दिया है। वह ऐसा करने वाला छठा अमेरिकी राज्य बन गया है। 2019 में सबसे पहले वाशिंगटन ने ह्यूमन कम्पोस्टिंग की अनुमति दी थी। इसके बाद 2021 में कोलोराडो और ओरेगन वहीं 2022 में कैलिफोर्निया और वर्मोंट ने इसकी इजाजत दे दी थी।
एक डेड बॉडी से बनती है 36 बैग मिट्टी
ह्यूमन कम्पोस्टिंग करने वाली ‘रीकम्पोज’ कंपनी के मुताबिक, एक डेड बॉडी से 36 बैग मिट्टी बनती है। इस प्रक्रिया में दांत और हड्डियां भी मिट्टी बन जाते हैं। कंपनी की आउटरीच मैनेजर एना स्वेनसन बताती हैं- परिवार वालों को मिट्टी सौंपने से पहले उसकी जांच की जाती है कि उसमें कोई हानिकारक पैथोजन तो नहीं है। इसके अलावा जिन लोगों की मौत टीबी की बीमारी की वजह से हुई हो या रेडिएशन थेरेपी से इलाज हुआ हो। उनकी डेड बॉडी की ह्यूमन कम्पोस्टिंग नहीं की जाती है।
दफनाने या जलाने की तुलना में कम एनर्जी खर्च होने का दावा
रीकंपोज कंपनी की एना स्वेनसन कहती हैं कि इस प्रक्रिया में पारंपरिक रूप से जलाने या दफनाने की तुलना में आठ गुना कम एनर्जी का इस्तेमाल होता है। इससे वायु प्रदूषित नहीं होती है। साथ ही उपजाऊ मिट्टी भी मिल जाती है।
इससे अमेरिका में जगह की समस्या भी दूर हो सकती है। दरअसल, अमेरिका में डेड बॉडीज को दफनाने के लिए जगह लगातार कम हो रही है। कई बड़े क्रबिस्तानों के अगले 10-15 सालों में पूरा भर जाने की आशंका जताई जा रही है। ऐसे में ह्यूमन कम्पोस्टिंग से जगह की समस्या दूर हो सकती है।
Compiled: up18 News