गुजरात की जीत पर इतराने वाले, हिमाचल-दिल्ली हारे, डबल इंजन का एक ही ड्राइवर, जिसका “वंदे भारत” हो गया रे!
– मोदी जी को क्यों लग रहा है डर?
– कांग्रेस की जीत से मोदी भयभीत?
– जीत की जिम्मेदारी हमारी, हार की तुम्हारी?
गुजरात चुनाव 2022 के परिणाम आते ही, जहां मीडिया एक ओर एक ओर मोदी जी की धुंआधार प्रशंसा कर रहा है और कांग्रेस व अन्य पार्टियों का मज़ाक बना रहा है। तो दूसरी ओर हिमाचल के भी चुनाव परिणाम हैं। जहां कांग्रेस की बंपर जीत हुई है। पर जिस प्रकार से गुजरात की जीत का क्रेडिट मोदी जी को दिया जा रहा है। वैसे हिमाचल की हार का क्रेडिट भी उन्हें दिया जाना चाहिए, हिमाचल ही क्यों अब तो MCD की हार का भी क्रेडिट उन्हें मिलना चाहिए। क्यों अब तो जहां जहां चुनाव होते हैं, वहां अन्य दलों के लोग अपने स्थानीय प्रत्याशी के दम पर चुनाव लड़ते हैं और भाजपा सीधे प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ती है। कभी कभी तो भाजपा वोटर्स को को उनके प्रत्याशी का नाम तक नहीं पता हाेता और लोग वोट देकर आते हैं।
पर फिर भी मोदी जी जैसे बड़े नेता ऐसे स्थानीय चुनावों में, और कई राज्यों की लोकल यूनिट्स से भी चुनाव हार जाते हैं। और गुजरात जैसे राज्य में जहां उनका एक तय वोटर बेस है। जहां उनका कैडर बहुत मजबूत है। जहां मीडिया का सारा प्रचारतंत्र उनके फेवर में काम करता है। जहां के चुनाव के लिए चुनाव आयोग का मुख्य आयुक्त रातों रात नियुक्त होता है। जहां मोदी जी लगातार 2 दर्जन से ज्यादा रैली करते हैं। जहां कई केंद्रीय मंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्रीयों की संभाएं होती हैं। वहां सिर्फ विपक्ष के वोट बंट जाने से इन्हें इनकी अपेक्षा से भी ज्यादा सीटें मिलें तो आश्चर्य की बात नहीं है।
पर मोदी जी को ये नहीं भूलना चाहिए कि आपके राज्य में 35.63% से ज्यादा लोग वोट्स नहीं डाल रहे हैं। ये आंकड़ा संख्या के लिहाज से लगभग 2 करोड़ से भी ऊपर का है, यानि 6 करोड़ से अधिक की जनसंख्या वाले गुजरात राज्य में तकरीबन 2 करोड़ लोगों ने तो वोट ही नहीं डाले, अब बाकी बचे 4 करोड़ में से लगभग 2 करोड़ ऐसे भी वोट हैं जो आपके पक्ष में नहीं पड़े। और इन बचे हुए 2 करोड़ वोट्स को एक लिहाज़ से तो आपके कार्यकर्ताओं ने ही डाला और डलवाया है, ऐसा हम नहीं कह रहे, ऐसा खुद आपके नेताओं के दावे कहते हैं। आपके गुजरात राज्य के पार्टी अध्यक्ष कई मौकों पर ऐसे दावे करते हुए कहते नज़र आए हैं कि गुजरात में आपके सवा करोड़ कार्यकर्ता हैं इस लिहाज़ से तो ऐसा लगता है कि आपका एक एक कार्यकर्ता भी अपने साथ 1 अन्य वोटर नहीं ला पाया वरना वोटिंग प्रतिशत भी बढ़ जाता और आपको सही मायने में स्पष्ट बहुमत भी मिल जाता। क्योंकि अभी जिस प्रचंड बहुमत के दावे आपकी ओर से किए जा रहे हैं वो राज्य के आबादी का एक तिहाई ही है।
वोटिंग प्रतिशत का लगातार घटना कोई अच्छी बात नहीं है, कहीं ऐसा तो नहीं की आपके राज्य की आधी आबादी का आपसे मोह भंग हो गया है? इसीलिए बड़ी संख्या में लोग आपके खिलाफ वोट कर रहे हैं, पर उनके वोट विभाजित हैं, और दूसरी ओर बड़ी तादाद में लोग आपको वोट करने के लिए निकल ही नहीं रहे? लोगों का वोटिंग से मोह भंग होना ये एक स्वस्थ लोकतंत्र में ये अच्छे सिग्नल नहीं हैं।
खैर! जीत तो जीत है, आप जीते….इसलिए आपको जीत की बधाई, आप खाइए जीत की मिठाई, जनता को मिलेगी, बेरोजगारी, महंगी शिक्षा, टूटी सड़कें और महंगाई।
पर ये कौन सी बात हुई, कि आप गुजरात की जीत का क्रेडिट लेंगे, पर हिमाचल की हार का क्रेडिट नहीं लेंगे? मीठा मीठा गप्प कड़वा कड़वा थू? ऐसे कैसे चलेगा?
आपके वफादार चैनल तो गुजरात में कांग्रेस के जीतने पर भी आप ही को बधाई दे रहे हैं। एक चैनल की एंकर मोहतरमा तो यहां तक कहती नज़र आईं की “हिमाचल में भारतीय जनता पार्टी के दम पर ही कही ना कही कांग्रेस की जीत हुई है, और हार के लिए वहां के मुख्यमंत्री – जयराम ठाकुर जिम्मेदार हैं।” यानि कि चित भी आपकी और पट भी आपकी?
कुछ चैनल तो गुजरात की जीत पर आपके पोस्टर और हिमाचल की हार पर हिमाचल से आने वाले आपके राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा/ पूर्व सीएम जयराम आदि के पोस्टर लगा रहे हैं।
अरे ऐसा भी नहीं है कि वहां का चुनाव बे मन से लड़ा था अपने? फिर भी आपके वोट प्रतिशत में अच्छी खासी गिरावट आई, और सीटों में तो कांग्रेस बहुत आगे निकल गई। खैर वो सब तो ठीक है। पर साहब अब तो आपको कांग्रेस की कोई छोटी मोटी जीत से परेशान नहीं होना चाहिए, क्योंकि देश के साहब आप हैं, कई राज्यों में आपने बहुमत की सरकार बनाई है, या नहीं बनी तो बहुमत की सरकारें गिरवाकर भी अपनी सरकार बनवाई है। फिर क्या चिंता की बात?
लेकिन नहीं हमारे साहब ठहरे भावुक प्राणी, नहीं नहीं! वो खुद भावुक नहीं होते, बल्की जनता को करते हैं – इसीलिए साहब ने स्टेटमेंट दिया है कि “जुल्म बढ़ने वाला है” अरे अरे अरे कमाल है?
आपके जैसे सत्ता में महामानव, विश्वगुरु के होते हुए भी किसी राज्य में अगर कोई और दल सरकार बना ले, तो जुल्म बढ़ जाता है? तो तब क्या होता है जब किसी की बहुमत की सरकार के विधायक खरीद कर आपका दल सरकार बनाता है? तब ज़ुल्म कम हो जाता है? जनता ने जिसे चुनकर भेजा है, उसे खरीद लिया गया हो और उस दल में शामिल कर लिया गया हो जिसके विरोध में जनता ने उस प्रत्याशी को वोट किया था। क्या तब जनता के मताधिकार के हनन का जुल्म नहीं बढ़ता? ऑपरेशन कमलगट्टा, ऑपरेशन चुनावी सट्टा, ऑपरेशन सिलबट्टा पता नहीं कैसे कैसे नामो से ये अनोखे चुनावी अभियान चलाए जाते हैं…..पर तब ज़ुल्म नहीं बढ़ता?
खैर अंत में चलते चलते एक शेर आपको समर्पित:
लश्कर भी तुम्हारा है, सरदार तुम्हारा है ,
तुम झूठ को सच लिख दो अख़बार तुम्हारा है..!”
पर अब ना चूकेगा सच का पारा है,
“अचूक संघर्ष” होने के नाते झूठ को झूठ,
सच को सच लिखने का दावा हमारा है!
-up18news
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