अगर उद्धव ने इस्तीफा नहीं दिया होता तो बहाल की जा सकती थी उनकी सरकार: सुप्रीम कोर्ट

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फ्लोर टेस्ट का सामना करना चाहिए था: बेंच

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने कहा कि उद्धव ठाकरे को विधानसभा में बहुमत परीक्षण का सामना करना चाहिए था। उद्धव ठाकरे ने अगर इस्तीफा नहीं दिया होता तो सरकार बहाल की जा सकती थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही कहा कि व्हिप का फैसला पार्टी को ही करना चाहिए। इसके लिए विधायकों की संख्या काफी नहीं है। सिर्फ विधायक तय नहीं कर सकते कि व्हिप कौन होगा। व्हिप को पार्टी से अलग करना ठीक नहीं होगा। इसके साथ ही पार्टी में असंतोष फ्लोर टेस्ट का आधार नहीं हो सकता है।

इस फैसले पर टिकी थी उद्धव गुट की उम्मीद

उद्धव ठाकरे गुट को अरुणाचल प्रदेश पर सुप्रीम कोर्ट के 2016 के एक फैसले से उम्मीद थी। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान इस केस का जिक्र भी हुआ था। फरवरी 2016 में अरुणाचल प्रदेश में कलिखो पुल ने कांग्रेस से बगावत की थी। इसके बाद बीजेपी के समर्थन से वह राज्य के मुख्यमंत्री बन गए थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने चार महीने के अंदर ही कलिखो पुल की बतौर सीएम नियुक्ति को असंवैधानिक करार दिया। इसके बाद पुल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

साफ है कि अगर उद्धव ठाकरे इस्तीफा देने की जल्दी नहीं करते तो उनका चेहरा आज खिल सकता था। ऐसी स्थिति बनती तो सुप्रीम कोर्ट भगत सिंह कोश्यारी के 2022 के उस आदेश को रद्द कर सकता था। कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे से बहुमत साबित करने को कहा था। लेकिन उन्होंने विधानसभा का सामना किए बगैर इस्तीफा दे दिया था। अगर उद्धव ने ऐसा न किया होता तो एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ता, जैसा कि कलिखो पुल के मामले में हुआ था।

उद्धव खेमे ने फ्लोर टेस्ट रद्द करने की मांग की थी

संवैधानिक पीठ के सामने उद्धव ठाकरे गुट ने 22 जुलाई को महाराष्ट्र विधानसभा में हुए फ्लोर टेस्ट को रद्द करने की मांग की थी। उद्धव गुट ने मांग की थी कि पार्टी विरोधी गतिविधि की तारीख से 16 विधायकों को अयोग्य माना जाए। साथ ही एकनाथ शिंदे को ऐसी सूरत में सीएम नहीं बनाया जा सकता था।

शिंदे गुट ने स्पीकर की अयोग्यता की कार्यवाही पर विचार करने की शक्ति के बारे में चिंता जाहिर की है। उद्धव गुट की याचिका में दलील दी गई कि मुख्यमंत्री के रूप में शिंदे की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 164 (1-बी) का उल्लंघन करती है। साथ ही यह दल-बदल कानून का भी उल्लंघन है, क्योंकि इसमें दल-बदल करने वाले विधायकों को संवैधानिक पाप के लिए इनाम दिया जा रहा है।

Compiled: up18 News