ज्ञानवापी मामला: 2 घंटे तक चली बहस, अगली तारीख 4 जुलाई हुई मुक़र्रर

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वाराणसी। ज्ञानवापी मामले में आज 2 घंटे तक कोर्ट में सुनवाई चली, जिला जज कोर्ट में होगी अब 4 जुलाई को अगली सुनवाई होगी तथा महत्‍वपूर्ण बात ये है कि वीडियो सबूतों पर कोर्ट बाद में फैसला करेगी।

अदालत में गहमागहमी इसलिए भी बनी हुई थी क्‍योंकि निर्मोही अखाड़ा की ओर से भी ए‍क पक्ष बनने की जानकारी दी गई है। आज सोमवार को जिला जज की अदालत में सुनवाई के अधिकार पर बहस हुई।

दोपहर तय समय पर ढाई बजे के करीब मामले की सुनवाई शुरू हुई तो दोनों पक्षों के वकीलों ने जिला जज की अदालत का रुख किया। सबसे पहले मुस्लिम पक्ष अदालत को मामले की सुनवाई के अधिकार को लेकर जिरह की। वहीं शाम चार बजे तक ज्ञानवापी प्रकरण में जिला जज की अदालत में आज की सुनवाई पूरी कर ली गई। अब भी अदालत में इस मामले की सुनवाई जारी रहेगी। अब अदालत ने चार जुलाई को होगी अगली सुनवाई की तिथि तय की है।

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित मां श्रृंगार गौरी की दैनिक पूजा-अर्चना करने एवं अन्य देवी-देवताओं को संरक्षित करने के जिला जज की अदालत में होने वाली सुनवाई के मामले में पक्षकार बनने के लिए स्वयंभू ज्योर्तिलिंग आदिविश्वेश्वर के वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने पक्षकार बनने के लिए अदालत में अर्जी दी है। जिला जज डा.अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में दो बजे सुनवाई होगी।

वहीं ज्ञानवापी प्रकरण में जिला जज की अदालत में लंबित प्रकरण में पक्ष रखने के कचहरी पहुंचे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हरिशंकर जैन एवं उनके पुत्र वकील विष्णु शंकर जैन के साथ ही वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी एडवोकेट भी दोपहर में अदालत पहुंच गए। दोपहर दो बजे से जिला जज की अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद मामले में अदालत प्रकरण सुन सकती है या नहीं इसपर मुस्लिम पक्ष की दलीलों को सुनेगी।

मस्जिद पक्ष के अधिवक्ता अभय नाथ यादव के द्वारा  पेश की जा रही दलील

मस्जिद पक्ष के अधिवक्ता अभय नाथ यादव ने दलील पेश करते हुवे अदालत से कहा है कि आज आप ज्ञानवापी मस्जिद पर बहस कर रहे अहि। जबकि ये मामला 1991 के “प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट” से बंधा हुआ है। जो वाद ख़ारिज होने योग्य था उस वाद पर बहस चल रही है। अधिवक्ता अभय नाथ यादव ने कहा कि 1991 में “प्लेसेस आफ वरशिप एक्ट” बना जिसके सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद के वाद में भी ज़िक्र करते हुवे इसकी अहमियत समझाया बताया था। इस एक्ट में साफ साफ़ ज़िक्र है कि 15 अगस्त 1947 में जिस पूजा स्थल की जो नवय्य्त थी, वह नवय्य्त नही बदल सकती है। फिर ये पूरा मामला ही उस कानून का उलंघन है। ये वाद चलने योग्य ही नही है।

इसके पूर्व वरिष्ठ अधिवक्ता अभय नाथ यादव की दलीलों और पेश की जा रही सुप्रीम कोर्ट की नजीरो पर कई बार ऐसा हुआ है कि जिला जज स्वयं मुस्कुराने लगे। अभय नाथ यादव के द्वारा तेज़ आवाज़ में दलील पेश किया जा रहा है। एक एक मुद्दे पर बारीकी से अदालत का ध्यान आकर्षित करवाया जा रहा है। अभी तक पेश हुई दलीलों में मस्जिद पक्ष के अधिवक्ता अभय नाथ यादव ने कहा कि वादिनी मुकदमा का कहना है कि उक्त जगह मंदिर की थी। तो वादिनी पक्ष मंदिर की संपत्ति का कोई दस्तावेज़ नही प्रस्तुत कर पा रही है।

अधिवक्ता अभय नाथ यादव ने कहा कि जिस संपत्ति को भगवान् की संपत्ति बताया जा रहा है वह संपत्ति भगवान की कैसे हुई ये बात वादिनी के अधिवक्ता नही बता पा रहे है। जैसे हम और आप ज़मीन खरीद सकते है और ज़मीन के मालिक हो सकते है वैसे ही ज़मीन के मालिक भगवान् भी हो सकते है बशर्ते ज़मीन भगवान् को कोई गिफ्ट करे। हमको कहते है कि हम गलत है। तो फिर ये बताये कि ये कहा सही है। चलिए हम गलत सही। मगर अगर इनके पास ऐसे दस्तावेज़ नही है कि ये सही है तो फिर ये भी गलत हुवे इस स्थिति में हम सही है।

अधिवक्ता अभय नाथ यादव के इस दलील पर जिला जज भी मुस्कुराने लगे और प्रस्तुत दस्तावेज़ का अवलोकन करने लगे। इस दरमियान वरिष्ठ अधिवक्ता अभय नाथ यादव ने दलील पेश करते हुवे सवाल किया कि हमारे फव्वारे को ये लोग शिवलिंग कह रहे है। अगर वह असली शिवलिंग है तो फिर बताये कि 250 वर्षो से जिस जगह पूजा हो रही है वह क्या है ? इस पर अदालत परिसर में शोर शराबे की स्थिति पैदा हो गई जिस पर जिला जज ने हस्तक्षेप कर तुरंत स्थिति सामान्य करवाया है। जिला जज ने कहा कि अदालत की मर्यादा कायम रखना सभी पक्षों का काम है। मै सभी को अपना पक्ष रखने का मौका दूंगा।

इस शोर शराबे के बाद मस्जिद कमिटी के अधिवक्ता अभय नाथ यादव ने सिविल जज के मुकदमा नम्बर 62/36 के आदेश की नजीर अदालत को पेश करते हुवे इस मुद्दे पर दलील समाचार लिखे जाने तक देना शुरू कर दिया है कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है। जिरह जारी है।

-एजेंसी

 


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