आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और तेलुगू देशम पार्टी के अध्यक्ष एन. चंद्रबाबू नायडू को शनिवार सुबह स्किल डेवलपमेंट घोटाले के संबंध में गिरफ़्तार कर लिया गया. चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश के नंदयाल ज़िले के दौरे पर थे जब उन्हें पुलिस ने हिरासत में ले लिया.
मुख्यमंत्री की गिरफ़्तारी के कुछ देर बाद ही विशाखापट्टनम से नायडू सरकार में मंत्री रहे गंता श्रीनिवास राव को भी गिरफ़्तार कर लिया गया.
पुलिस की एक टीम ने उन्हें सुबह छह बजे के क़रीब उनकी बस से उतारा और गिरफ़्तारी का नोटिस दिया.
गिरफ़्तारी के दौरान पार्टी नेताओं और चंद्रबाबू नायडू के वकीलों की पुलिस से बहस भी हुई है. पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 50(1)(1) के तहत गिरफ़्तारी की जानकारी उनके वकीलों को दी.
चंद्रबाबू के वकीलों ने जब पुलिस से पूछा कि बिना बुनियादी सबूतों के कैसे गिरफ़्तारी की जा सकती है तो इसके जवाब में पुलिस की तरफ़ से बताया गया कि अदालत में रिमांड रिपोर्ट जमा कराते समय सभी जानकारी दे दी जाएगी.
आंध्र प्रदेश पुलिस के डीआईजी रघुरामी रेड्डी के नेतृत्व में पुलिस टीम चंद्रबाबू नायडू को गिरफ़्तार करने पहुंची थी.
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के तहत गिरफ़्तारी की जानकारी देते हुए नायडू को बताया गया कि उनकी गिरफ़्तारी अपराध संख्या 28/2021 के तहत की जा रही है.
चंद्रबाबू नायडू पर धोखाधड़ी करने (आईपीसी 420) और आपराधिक साज़िश रचने (आईपीसी 120बी) के आरोप में गिरफ़्तार किया गया.
चंद्रबाबू ने मांगे सबूत
गिरफ़्तारी के दौरान चंद्रबाबू नायडू ने पुलिस से पूछा कि स्किल डेवलपमेंट घोटाले (कौशल विकास मामले) में उनका नाम कहां हैं. इसके जवाब में पुलिस अधिकारियों ने उनसे कहा, ‘हमारे पास सबूत हैं, हमने इन्हें हाई कोर्ट में दे दिया है. रिमांड रिपोर्ट में सभी बातों को शामिल किया गया है.’
गिरफ़्तारी के दौरान चंद्रबाबू के समर्थकों और पुलिस के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई. पुलिस की तरफ़ से डीआईजी रघुरामी रेड्डी ने चंद्रबाबू के वकीलों को समझाया.
पुलिस उन्हें हिरासत में लेकर विजयवाड़ा ले जाना चाहती थी. लेकिन चंद्रबाबू ने कहा कि उन्हें पुलिस सुरक्षा पर भरोसा नहीं है और वो अपने काफ़िले के साथ एनएसजी की निगरानी में जाना चाहते हैं. पूर्व मुख्यमंत्री की इस मांग को पुलिस ने स्वीकार कर लिया.
क्या है स्किल डेवलपमेंट घोटाला?
एपीएसएसडीसी (आंध्र प्रदेश स्टेट स्किल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन) का गठन आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद किया गया था. ये एक पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप है और इसका उद्देश्य राज्य के युवाओं को कौशल देना और प्रशिक्षित करना है. प्रशिक्षण पूरा करने वाले युवाओं को रोज़गार उपलब्ध करवाना भी इसका मक़सद है.
इसके लिए कौशल विकास निगम ने टेक्नोलॉजी कंपनियों के साथ समझौते किये. इनमें सीमेंस और डिज़ाइन टेक सिस्टम्स जैसी कंपनियां भी शामिल हैं.
सीमेंस इंडस्ट्रियल सॉफ़्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड का मुख्यालय नोएडा में हैं. इस कंपनी के साथ समझौते के तहत आंध्र प्रदेश के छह स्थानों पर स्किल डेवलपमेंट केंद्र स्थापित किए गए. यहां युवाओं का कौशल विकास किया जाता है और प्रशिक्षण दिया जाता है.
आंध्र प्रदेश सरकार ने कहा था कि लागत का दस प्रतिशत हिस्सा सरकार देगी और बाक़ी 90 प्रतिशत सीमेंस कंपनी अनुदान के रूप में देगी.
सरकार और सीमेंस के बीच इस समझौते के बाद आंध्र प्रदेश के कई चर्चित इंजीनियरिंग कॉलेजों में उत्कृष्ता केंद्र (एक्सीलेंस सेंटर) की स्थापना की गई. इनमें आदित्य इंजीनियरिंग कॉलेज भी शामिल है.
सीमेंस साल 2017 से ही कौशल विकास निगम के साथ मिलकर काम कर रही है. समझौते के तहत सीमेंस को तकनीकी सहायता उपलब्ध करानी है. लेकिन आरोप हैं कि कंपनी ने इसे मुहैया नहीं कराया.
मामले की जांच कर रही सीआईडी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दस्तावेज़ों में ये दर्ज किया गया कि कंपनी ने तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई थी.
आंध्र प्रदेश सरकार ने स्किल डेवलपमेंट एक्सीलेंस सेंटरों की स्थापना के लिए सीमेंस और डिज़ाइन टेक के साथ 3356 करोड़ रुपये के समझौते किए थे. समझौते के मुताबिक टेक कंपनियों को इस प्रेजेक्ट में 90 फ़ीसदी हिस्सेदारी वहन करनी थी, लेकिन ये बात आगे नहीं बढ़ी.
इस समझौते के तहत स्किल डेवलपमेंट के लिए छह क्लस्टर बनने थे और प्रत्येक क्लस्टर पर 560 रुपये ख़र्च होने थे. तत्कालीन चंद्रबाबू नायडू सरकार ने घोषणा की थी कि वह अपने हिस्से की दस प्रतिशत ज़िम्मेदारी यानी 371 करोड़ रुपये का भुगतान करेगी.
आंध्र प्रदेश सरकार ने अपने हिस्से का भुगतान कर दिया था. आंध्र प्रदेश में सीआईडी ने कौशल विकास के लिए जारी फंड के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए सबसे पहले दिसंबर 2021 में मामला दर्ज किया था.
सीआईडी ने आरोप लगाया था कि सीमेंस ने प्रोजेक्ट की लागत को कृत्रिम रूप से बढ़ा-चढ़ाकर 3300 करोड़ रुपये कर दिया था. इस आरोप में सीमेंस से जुड़े जीवीएस भास्कर पर मुक़दमा भी दर्ज हुआ था.
आंध्र प्रदेश सरकार ने सीमेंस इंडस्ट्रियल सॉफ़्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड को 371 करोड़ रुपये का भुगतान किया था. सीआईडी का आरोप था कि इस सॉफ़्टवेयर की वास्तविक क़ीमत सिर्फ़ 58 करोड़ रुपये थी.
सीआईडी ने इस समझौते में कौशल विकास निगम की तरफ़ से मुख्य भूमिका निभाने वाले गंता सुब्बाराव और लक्ष्मीनारायण समेत कुल 26 लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया था. बाद में इनमें से दस लोगों को गिरफ़्तार भी कर लिया गया था.
अब आंध्र प्रदेश सीआईडी ने इस मामले में चंद्रबाबू नायडू को भी गिरफ़्तार कर लिया है.
Compiled: up18 News