विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पाकिस्तान को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान के साथ बातचीत का दौर खत्म हो गया है। अब पड़ोसी के साथ कैसे रिश्तों की कल्पना करें। उन्होंने कहा कि हर एक्शन का रिएक्शन होता है। भारत निष्क्रिय नहीं है। विदेश मंत्री ने दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कहा कि हम जरुरत पड़ने पर प्रतिक्रिया देंगे।
हम चुप नहीं बैठेंगे
विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा, ‘पाकिस्तान के साथ निर्बाध बातचीत का दौर ख़त्म हो गया है…जहां तक जम्मू-कश्मीर का सवाल है, धारा 370 खत्म हो गई है तो मुद्दा यह है कि हम पाकिस्तान के साथ किस तरह के रिश्ते पर विचार कर सकते हैं… ऐसे में अब सवाल ये है कि हम पाकिस्तान के साथ कैसे रिश्ते चाहते हैं? जयशंकर ने आगे कहा कि हम चुप नहीं बैठेंगे। घटनाक्रम चाहे अच्छा हो या बुरा, हम उस पर प्रतिक्रिया देंगे।
सबकी पड़ोसियों के साथ चुनौतियां
जयशंकर ने पड़ोसी देशों के बीच की उलझनों के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि दो देशों के बीच राजनयिक संबंध, खासकर जब वे भौगोलिक रूप से जुड़े हों, चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। उन्होंने पूछा, ‘पड़ोसी हमेशा एक पहेली होते हैं…मुझे बताइए कि ऐसा कौन सा देश है जिसके पड़ोसियों के साथ चुनौतियां नहीं हैं?’
पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर दिया संकेत
पाकिस्तान पर जयशंकर के ताजा बयान भारत द्वारा अपने पड़ोसी देश के साथ कूटनीतिक संबंधों को लेकर एक बड़े बदलाव का संकेत देते हैं। भारत ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द कर दिया था। उस समय पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व ने इस कदम के लिए भारत की आलोचना की थी। भारत जहां कहता है कि कश्मीर भारतीय उपमहाद्वीप का अभिन्न अंग है, वहीं पाकिस्तान कुछ और ही दावा करता है। भारत वर्षों से कहता रहा है कि कश्मीर नई दिल्ली का एकतरफा मामला है। पाकिस्तान पर आरोप है कि वह उन आतंकवादियों को फंडिंग करता है जो घाटी में शांति भंग करने के लिए अवैध रूप से भारतीय सीमा में घुसपैठ करते हैं।
अफगानिस्तान से अच्छे रिश्ते
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफगानिस्तान का जिक्र करते हुए कहा कि “जहां तक अफगानिस्तान का सवाल है, वहां लोगों के बीच मजबूत रिश्ते हैं। दरअसल, सामाजिक स्तर पर भारत के लिए एक निश्चित सद्भावना है। लेकिन जब हम अफगानिस्तान को देखते हैं तो मुझे लगता है कि शासन कला की बुनियादी बातों को नहीं भूलना चाहिए। यहां अंतर्राष्ट्रीय संबंध काम कर रहे हैं इसलिए जब हम आज अपनी अफगान नीति की समीक्षा करते हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हम अपने सामने मौजूद ‘विरासत में मिली समझदारी’ से भ्रमित नहीं हैं।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अमेरिकी सेना की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है। उन्होंने कहा कि वहीं भारत को बांग्लादेश के साथ आपसी हितों का आधार तलाशना होगा और भारत ‘वर्तमान सरकार’ से निपटेगा। बांग्लादेश की आजादी के बाद से हमारे रिश्ते में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं और यह स्वाभाविक है कि हम मौजूदा सरकार के साथ व्यवहार करेंगे। लेकिन हमें यह भी पहचानना होगा कि राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं और वे विध्वंसकारी हो सकते हैं। और स्पष्ट रूप से यहां हमें हितों की पारस्परिकता पर ध्यान देना होगा।
साभार सहित
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