शतरंज की बिसात पर अर्थव्यवस्था लगी हुई है । सह और मात का खेल जारी है । नए नए दांव लग रहे हैं । पक्ष और विपक्ष दोनों अपनी अपनी जीत की घोषणा कर रहे हैं । प्यादा जीता की राजा, अटी पड़ी दर्शक दीर्घा को भी समझ में नहीं आ रहा है । लोकतंत्र की यही तो विडम्बना है । फिर भी वोट तंत्र को अगर मजबूत होना है तो इस खेल को समझना होगा । आम जनता को समझना होगा कि कहीं वह शब्दों के माया जाल में तो नहीं भटक रही है ?
भारत को बनाऊंगा दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत -प्रधानमंत्री का वादा
प्रधानमंत्री ने अभी दिसंबर, 2023 माह में ही अपनी सम्मोहक आवाज और अल्फ़ाज़ में कहा है कि वे अपनी तीसरी पारी में देश को दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनाएंगे । वे कहते हैं कि विकसित भारत की संकल्प यात्रा में आम जनता की भगीदारी बढ़ी है क्योंकि विकास की अमृत धारा बह रही है । जनता की ताकत न केवल बढ़ी है वरन उसकी ताकत सरकार के लिए सम्बल बनी है । स्पष्ट है कि उनकी इस घोषणा में तीन बातें हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं । एक, आज विकास की गंगा बह रही है और जनता उसमे डुबकी लगा रही है । दो, भारत एक विकसित देश होने के पायदान पर खड़ा है और तीन, वे भारत को दुनिया की आर्थिक महा शक्ति बना पाने में सफल होंगे क्योंकि जनता की स्वयं की तीव्र विकास की आकांक्षा; विकास को एक नया सोपान दे पाने की उसकी नेतृत्व क्षमता; ताकत बन उभरी है अब तो । तभी तो हम आज तीन ट्रिलियन से कुछ अधिक की अर्थव्यवस्था बन उभरे हैं विश्व पटल पर और विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था बन सकने में सफल हुए हैं ।
सन 2030 तक सात ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था होगी भारत की -मोदी की गारंटी
सन 2027 तक पांच ट्रिलियन और सन 2030 तक सात ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बना देने की घोषणा भी हो चुकी है अब तो । इन सफलताओं से कौन नहीं चमत्कृत होगा आज, प्रधानमंत्री पूछते हैं । शायद इन्ही सफलताओं का सुफल मिल रहा है सरकार को और वे सरकार की तीसरी पारी शुरू करने के लिए आश्वस्त दिखते हैं अब तो । तभी तो विश्व की पांचवी से सीधे तीसरी अर्थव्यवस्था बना देने का वादा भी वे कर रहे हैं भारत से । वायदों के कई आधार भी हैं ।प्रधानमंत्री बताते हैं कि विपरीत परिस्थितियों में भी अर्थव्यवस्था का स्थिरता के साथ बढ़ना, बुनियादी ढांचे का मजबूत होते जाना, डिजिटल क्षमता का विकास, तकनीकी नवाचार और नवीकरणीय ऊर्जा तकनीक में बढ़ते हमारे कदम, मजबूत करते हैं हमारी अर्थव्यवस्था के पाव को । भारत में एक बड़ी युवा कामकाजी आबादी, वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारी पकड़ को और मजबूती दे रही है । इन्ही आर्थिक कदमों की बिना पर ही तो हम विश्व की एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन पाए हैं। हम उच्च विकास दर प्राप्त कर पाने में समर्थ हुए हैं और एक बड़ी जनसंख्या की बहु आयामी गरीबी को कम कर पाने में सफल रहे हैं ।तो क्या नहीं है और क्या नहीं किया है हमने हाल के वर्षों में, प्रधानमंत्री पूछते और बताते हैं हम सबको ।
प्रधानमंत्री मानते हैं कि सरकार ने अर्धव्यवस्था की बुनियाद इतनी मजबूत बना दी है कि अर्थव्यवस्था का अश्वमेध रथ रोके नहीं रुकेगा और हम विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बन कर रहेंगे । भारत को आर्थिक महाशक्ति में परिवर्तित कर देने की उनकी संकल्पना, हममें से कइयों को न केवल उत्तेजित करती है वरन चमत्कृत भी कर रही है क्योंकि हम विश्व गुरु बन जाने के एक कदम नजदीक पहुंचते प्रतीत हो रहे हैं आज जो । किन्तु उनकी इन घोषणाओं, सफलताओं पर प्रश्न चिन्ह लगाने वालों की भी कमी नहीं है हिंदुस्तान में । इन्हीं में शामिल हैं श्री कपिल सिब्बल भी, जो कहते हैं कि आर्थिक चुनौतिओं से अनजान है केंद्र सरकार और वह जनता को चुनौतिओं से बेखबर भी बना रही है । वे कहते हैं कि देश बच नहीं सकता आर्थिक थपेड़ों से यदि हम शुतुरमुर्ग की चाल और चरित्र अपनाते रहे तो। तो जैसे खग जाने खग की ही भाषा वैसे ही राजनीतिज्ञों की आर्थिक राजनीति भी राजनीतिज्ञ ही समझ सकते हैं । आइये समझें अर्थव्यवस्था की उनकी समझ को ।
आर्थिक चुनौतिओं से अनजान है केंद्र सरकार- कपिल सिब्बल
क्या भूख, गरीबी, असमानता के काल का नाम ही अमृतकाल है?- सिब्बल
श्री कपिल सिब्बल पूछते हैं कि यह कैसा अमृत काल है जिसमें जनता भूख और कुपोषण से बिलबिला रही है । देश में भूख और गरीबी नहीं है तो कोरोना काल बीत जाने के बावजूद आज भी क्यों 80 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या को अनाज बांटना पड़ रहा है केंद्र सरकार को ? यदि अभूतपूर्व विकास हुआ है तो गरीबी भी अभूतपूर्व क्यों बनी हुई है आज के हिंदुस्तान में ? अगर जीडीपी बढ़ी है तो गरीबों के जेब में पैसा क्यों नहीं बढ़ा है ? वे सयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट का हवाला देकर बताते हैं कि भारत की 140 करोड़ की जनसंख्या में से करीब 100 करोड़ लोग (आबादी का लगभग 74 प्रतिशत ) पोषक आहार पर व्यय कर पाने में असमर्थ हैं । यदि विकास हुआ, लोगों की आय बढ़ी तो पोषण पर व्यय करने की क्षमता क्यों नहीं बढ़ी ? यह कैसा विकास है जिसमें 20 करोड़ आबादी कुपोषण की शिकार बनी हुई है ? वस्तुतः एक बड़ी आबादी के पास सम्मानजनक आजीविका का अभाव है और वे पोषक आहार पर खर्च करने में असमर्थ हैं ।
कुपोषण की समस्या से जूझती हमारी जनसंख्या को देखकर भी हम विचलित नहीं हो रहे हैं आज अमृतकाल में भी । तथ्य तो यह है कि देश में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौत के 65 प्रतिशत मामलों के लिए व्यापक और बेलगाम भुखमरी ही जिम्मेदार रही है। अमृतकाल का ढिंढोरा पीटने से वह न कम हुई और न कम होगी । तो इसलिए वे पूछते हैं कि क्या भूख, गरीबी, असमानता के काल का नाम ही अमृतकाल है? श्री सिब्बल, सरकार द्वारा देश में तेजी से बढ़ती जा रही आर्थिक असमानता से आंख चुराने से भी व्यथित और निराश हो रहे हैं । वे निराश हैं और बताते हैं कि सरकार की नीतियों के परिणाम स्वरुप अमीर वर्ग की सम्पन्नता तेजी से बढ़ी है। देश की 76 प्रतिशत संपदा केवल 10 प्रतिशत संपन्न वर्ग के पास है जबकि सबसे विपन्न 20 प्रतिशत आबादी के हिस्से में केवल 13 प्रतिशत संपदा आती है । इसलिए श्री सिब्बल पूछते हैं कि देश की एक प्रतिशत सबसे संपन्न आबादी की ही तेजी से बढ़ती आय और सम्पति का नाम ही विकास है क्या ? वे ऑक्सफ़ैम की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताते हैं कि सरकारी नीतियों के परिणामस्वरूप अरबपतियों की संख्या और उनकी सम्पति बढ़ी है हाल के वर्षों में । सन 2020 में देश में अरबपतियों की संख्या 102 थी जो सन 2022 में बढ़ कर 126 हो गई थी और उनके पास 54.12 लाख करोड़ की सम्पति थी । इसलिए अरबपतिओं की समृद्धि बढ़ने का नाम विकास हो गया है आज । इसके विपरीत गरीब अपना अस्तित्व बचाने की जद्दो जेहद कर रहे हैं और सन 2022 में ही करीब 35 करोड़ गरीब, भूखे पेट रात गुजारने के लिए अभिशप्त थे । हम तब भी तो अमृतकाल के मुहाने पर ही खड़े थे । ऊपर से आर्थिक समानता स्थापित करने का धर्म सरकार ने केवल टैक्स लेने में ही अपना रखा है, वे बताते हैं। चाहे अडानी हों या कि अम्बानी या कोई भिखारी, जीएसटी सबको समान दर से देना ही होगा । उपर्युक्त दो महारथिओं, एक तरफ प्रधानमंत्री और दूसरी तरफ विख्यात वकील, राजनेता और विपक्षी पार्टी के मूर्धन्य पैरोकार श्री सिब्बल द्वारा अर्थव्यवस्था की विवेचना ने हमें एक ऐसे दोराहे पर खड़ा कर दिया है जिसमे निष्कर्ष रूप में हमें अर्थव्यवस्था या तो सम्पन्नता या विपन्नता की ओर, अर्थात दो विपरीत ध्रुवों पर ले जाती हुई दिखाई देती है । प्रधानमंत्री अर्थव्यवस्था की नाव खेवईया हैं। वे बताते हैं कि उनकी आर्थिक नीतियों ने, देश को आर्थिक महाशक्ति बनने के कगार पर खड़ा कर दिया है; सम्पन्नता के द्वार पर लगभग पंहुचा दिया है जिसमें जनता अभी से डुबकी लगा रही है ।
जबकि श्री सिब्बल बताते हैं कि सरकार की आर्थिक नीतियों से गरीब, गरीबी के गंगा सागर को पार नहीं कर पायेगा । उसका डूबना तय है । क्या श्री सिब्बल गलत हैं ? क्या सरकार ही सही है ? शायद नहीं । गरीब की गरीबी बढ़ी या कि देश की सम्पन्नता, इन दो ध्रुवीय सोचो, निष्कर्षों और उन महारथिओं के बीच एक तीसरे महानुभाव, श्री सुब्रह्मण्यम स्वामी जी भी हैं जो हैं तो प्रधानमंत्री जी की पार्टी के ही, किन्तु साथ ही हैं अपनी सोच के स्वामी, एक राजनेता और मूर्धन्य अर्थशास्त्री भी । उनके निष्कर्षों को भी देख और टटोल लिया जाय ।
भारत की अर्थव्यवस्था चमक रही है कहना, एक छलावा मात्र है- स्वामी
श्री सुब्रह्मण्यम स्वामी ने हाल के समय में अपने अनेकों साक्षात्कारों में कहा है कि यह बताना कि भारत की अर्थव्यवस्था चमक रही है, एक नए और ऊंचे सोपान पर पंहुचा चुकी है देश को, कहना केवल एक छलावा मात्र है। वस्तुतः अर्थव्यवस्था की स्थिति बहुत दयनीय है । जीडीपी के 6 से 7 प्रतिशत दर से बढ़ने के आधार पर केंद्र सरकार जिस चमकते भारत की घोषणा कर रही है उस पर वे करारा प्रहार करते हैं और बताते हैं कि वह दर कुछ 4 प्रतिशत प्रतिवर्ष की ही मात्र है और यह दर तो नेहरू काल में भी थी । तो विकास कैसे तेजी से हो रहा है, हुआ है, वे पूछते हैं।
जीडीपी की गणना स्थिर कीमतों पर करनी चाहिए जबकि सरकार की गणना की रीति केवल भ्रम और छलावा पैदा करती है । वे मानते हैं कि बेरोजगारी बढ़ी है, जनता की बचत घटी है, निवेश भी घटा है । इसलिए हिंदुस्तान का वर्तमान के साथ साथ भविष्य भी अंधकार मय ही होगा। वे बताते हैं कि सरकार का भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था सन 2023 तक बना देने का वादा भी मात्र एक वादा ही साबित हुआ है । वस्तुतः श्री स्वामी, सिब्बल जी की अपेक्षा सरकार पर ज्यादा कड़ी चोट करते दिखाई देते हैं और लगता है कि जैसे उनको अपनी सरकार की घोषित उपलब्धिओं पर भरोसा ही नहीं है । उनको भरोसा है तो केवल इस बात का की वर्तमान सरकार, आर्थिक मुद्दों पर असफल रही है और असफल ही रहेगी जब तक की एक नई आर्थिक नीति नहीं अपनाई जाती ।
विकास हुआ ? टटोलिये अपनी जेब को-उत्तर मिल जायगा
हमने राजनीतिज्ञों के सह और मात का खेल देख और सुन लिया। तो हमारा-आपका, सम्पूर्ण अवाम का निष्कर्ष क्या होगा ऐसे में ? आप किसकी बात पर, निष्कर्षों पर ऐतबार करेंगे ? क्या होना चाहिए हमारे परखने का आधार की अर्थव्यवस्था की स्थिति कैसी है ? वर्तमान सरकार के कार्यकाल में देश में अरबपतिओं की संख्या, उनकी सम्पति और देश की सम्पदा में उनका भाग बढ़ा है और आम अवाम का हुआ है नगण्य । तो क्या देश मात्र कुछ अरबपतिओं के लिए है ? फिर भी सरकार मानती है कि सबकी आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है ।
ऐसे में प्रश्न है कि भूख और कुपोषण पर व्यय क्यों घटा ? क्या हम-सब अपने बच्चों का कुपोषण दूर करने पर भी खर्च नहीं करना चाहते हैं ? निश्चय ही ऐसा नहीं है । वस्तुतः आय कम किन्तु कीमतें तेजी से बढ़ी हैं । भारत संपन्न हुआ याकि विपन्न की पहचान करने का सबसे सरल उपाय तो यह होगा कि हम देखें कि हम सब की जेब में पहले की अपेक्षा पैसा बढ़ा कि नहीं, जेबें भारी हुई कि नहीं । इसलिए हमें अपनी-अपनी जेब टटोलनी चाहिए। उत्तर मिल जायगा। पूर्व की अपेक्षा यदि हमारी आमदनी बढ़ी, जेब में पैसा बढ़ा तो विकास हुआ और यदि जेब भारी नहीं हुई, खनकती नहीं तो सम्पन्नता बढ़ी कैसे ? उत्तर मिलने पर शतरंज के खिलाड़ियों को आप सम्यक उत्तर दे सकते हैं ।
(लेखक डी.ए.वी.पी.जी. कॉलेज,वाराणसी के अर्थशास्त्र विभाग में पूर्व प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे हैं)